Thursday 2 October 2014

रचनाकार

मधुकर अष्ठाना
जन्म- 27-10-1939
शिक्षा- एम.ए. (हिंदी साहित्य एवं समाजशास्त्र)
प्रकाशन- सिकहर से भिनसहरा (भोजपुरी गीत संग्रह), गुलशन से बयाबां तक (हिंदी ग़ज़ल संग्रह) पुरस्कृत, वक़्त आदमखोर (नवगीत संग्रह), न जाने क्या हुआ मन को (श्रृंगार गीत/नवगीत संग्रह), मुट्ठी भर अस्थियाँ (नवगीत संग्रह), बचे नहीं मानस के हंस (नवगीत संग्रह), दर्द जोगिया ठहर गया (नवगीत संग्रह), और कितनी देर (नवगीत संग्रह), कुछ तो कीजिये (नवगीत संग्रह) | इसके अतिरिक्त तमाम पत्र-पत्रिकाओं तथा दर्जनों स्तरीय सहयोगी संकलनों में गीत/नवगीत संग्रहीत |
सम्मान-पुरस्कार- अब तक 42 सम्मान व पुरस्कार
विशेष- ‘अपरिहार्य’ त्रैमासिक के अतिरिक्त संपादक, ‘उत्तरायण’ पत्रिका में सहयोगी तथा ‘अभिज्ञानम’ पत्रिका के उपसंपादक | कई विश्वविद्यालयों में व्यक्तित्व व कृतित्व पर लघुशोध व शोध |
वर्तमान में जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी, परिवार कल्याण विभाग, उ.प्र. से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन |
संपर्क सूत्र- ‘विद्यायन’ एस.एस. 108-109 सेक्टर-ई, एल.डी.ए. कालोनी लखनऊ |
उनके एक नवगीत की कुछ पंक्तियाँ-
जग ने जितना दिया
ले लिया
उससे कई गुना
बिन मांगे जीवन में
अपने पन का
जाल बुना |

सबके हाथ-पाँव बन
सब की साधें
शीश धरे
जीते जीते
सबके सपने
हर पल रहे मरे

थोपा गया
माथ पर पर्वत 
हमने कहाँ चुना |

Wednesday 1 October 2014

कविता क्या है- कुमार रवींद्र


     कुमार रवींद्र


कविता क्या है 
यह जो अनहद नाद बज रहा भीतर 

एक रेशमी नदी सुरों की 
अँधियारे में बहती 
एक अबूझी वंशीधुन यह 
जाने क्या-क्या कहती 

लगता 
कोई बच्ची हँसती हो कोने में छिपकर 

या कोई अप्सरा कहीं पर 
ग़ज़ल अनूठी गाती
पता नहीं कितने रंगों से 
यह हमको नहलाती 

चिड़िया कोई हो 
ज्यों उड़ती बाँसवनों के ऊपर 

काठ-हुई साँसों को भी यह 
छुवन फूल की करती 
बरखा की पहली फुहार-सी 
धीरे-धीरे झरती 

किसी आरती की 
सुगंध-सी कभी फैलती बाहर

Sunday 28 September 2014

नाजिम हिकमत की कविताएँ

नाजिम हिकमत

आशावाद
कविताएँ लिखता हूँ मैं
वे छप नहीं पातीं
लेकिन छपेंगी वे.
मैं इंतजार कर रहा हूँ खुश-खैरियत भरे खत का
शायद वो उसी दिन पहुँचे जिस दिन मेरी मौत हो
लेकिन लाजिम है कि वो आएगा.
दुनिया पर सरकारों और पैसे की नहीं
बल्कि अवाम की हुकूमत होगी
अब से सौ साल बाद ही सही
लेकिन ये होगा ज़रूर.
(अंग्रेजी से अनुवाद- दिगम्बर)

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ

घुटनों के बल बैठा-
मैं निहार रहा हूँ धरती,
घास,
कीट-पतंग,
नीले फूलों से लदी छोटी टहनियाँ.
तुम बसंत की धरती हो, मेरी प्रिया,
मैं तुम्हें निहार रहा हूँ.
पीठ के बल लेटा-
मैं देख रहा हूँ आकाश,
पेड़ की डालियाँ,
उड़ान भरते सारस,
एक जागृत सपना.
तुम बसंत के आकाश की तरह हो, मेरी प्रिया,
मैं तुम्हें देख रहा हूँ.
रात में जलाता हूँ अलाव-
छूता हूँ आग,
पानी,
पोशाक,
चाँदी.
तुम सितारों के नीचे जलती आग जैसी हो,
मैं तुम्हें छू रहा हूँ.
मैं काम करता हूँ जनता के बीच-
प्यार करता हूँ जनता से,
कार्रवाई से,
विचार से,
संघर्ष से.
तुम एक शख्शियत हो मेरे संघर्ष में,
मैं तुम से प्यार करता हूँ.
(अनुवाद- दिगम्बर)

जीने के बारे में

जीना कोई हंसी-मजाक नहीं,
तुम्हें पूरी संजीदगी से जीना चाहिए
मसलन, किसी गिलहरी की तरह
मेरा मतलब जिंदगी से परे और उससे ऊपर
किसी भी चीज की तलाश किये बगैर.
मतलब जिना तुम्हारा मुकम्मल कारोबार होना चाहिए.
जीना कोई मजाक नहीं,
इसे पूरी संजीदगी से लेना चाहिए,
इतना और इस हद तक
कि मसलन, तुम्हारे हाथ बंधे हों पीठ के पीछे
पीठ सटी हो दीवार से,
या फिर किसी लेबोरेटरी के अंदर
सफ़ेद कोट और हिफाज़ती चश्मे में ही,
तुम मर सकते हो लोगों के लिए
उन लोगों के लिए भी जिनसे कभी रूबरू नहीं हुए,
हालांकि तुम्हे पता है जिंदगी
सबसे असली, सबसे खूबसूरत शै है.
मतलब, तुम्हें जिंदगी को इतनी ही संजीदगी से लेना है
कि मिसाल के लिए, सत्तर की उम्र में भी
तुम रोपो जैतून के पेड़
और वह भी महज अपने बच्चों की खातिर नहीं,
बल्कि इसलिए कि भले ही तुम डरते हो मौत से
मगर यकीन नहीं करते उस पर,
क्योंकि जिन्दा रहना, मेरे ख्याल से, मौत से कहीं भारी है.
ll
मान लो कि तुम बहुत ही बीमार हो, तुम्हें सर्जरी की जरूरत है
कहने का मतलब उस सफ़ेद टेबुल से
शायद उठ भी न पाओ.
हालाँकि ये मुमकिन नहीं कि हम दुखी न हों
थोड़ा पहले गुजर जाने को लेकर,
फिर भी हम लतीफे सुन कर हँसेंगे,
खिड़की से झांक कर बारीश का नजारा लेंगे
या बेचैनी से
ताज़ा समाचारों का इंतज़ार करेंगे….
फर्ज करो हम किसी मोर्चे पर हैं
रख लो, किसी अहम चीज की खातिर.
उसी वक्त वहाँ पहला भारी हमला हो,
मुमकिन है हम औंधे मुंह गिरें, मौत के मुंह में.
अजीब गुस्से के साथ, हम जानेंगे इसके बारे में,
लेकिन फिर भी हम फिक्रमंद होंगे मौत को लेकर
जंग के नतीजों को लेकर, जो सालों चलता रहेगा.
फर्ज करो हम कैदखाने में हों
और वाह भी तक़रीबन पचास की उम्र में,
और रख लो, लोहे के दरवाजे खुलने में
अभी अठारह साल और बाकी हों.
फिर भी हम जियेंगे बाहरी दुनिया के साथ,
वहाँ के लोगों और जानवरों, जद्दोजहद और हवा के बीच
मतलब दीवारों से परे बाहर की दुनिया में,
मतलब, हम जहाँ और जिस हाल में हों,
हमें इस तरह जीना चाहिए जैसे हम कभी मरेंगे ही नहीं.
यह धरती ठंडी हो जायेगी,
तारों के बीच एक तारा
और सबसे छोटे तारों में से एक,
नीले मखमल पर टंका सुनहरा बूटा
मेरा मतलब है, यह गजब की धरती हमारी.
यह धरती ठंडी हो जायेगी एक दिन,
बर्फ की एक सिल्ली के मानिंद नहीं
या किसी मरे हुए बादल की तरह भी नहीं
बल्कि एक खोंखले अखरोट की तरह चारों ओर लुढकेगी
गहरे काले आकाश में
इस बात के लिये इसी वक्त मातम करना चाहिए तुम्हें
इस दुःख को इसी वक्त महसूस करना होगा तुम्हें
क्योंकि दुनिया को इस हद तक प्यार करना जरुरी है
अगर तुम कहने जा रहे हो कि मैंने जिंदगी जी है”…

(अनुवाद दिगंबर)

दलित और आदिवासी स्वरों की संवेदना समझनी होगी: नागर

प्रयास संस्थान की ओर से सूचना केंद्र में शनिवार को आयोजित समारोह में वर्ष 2014 का डॉ. घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार जयपुर के ख्यातनाम साहित्यकार भगवान अटलानी को दिया गया। नामचीन लेखक-पत्राकार विष्णु नागर के मुख्य आतिथ्य में हुए कार्यक्रम में उन्हें यह पुरस्कार एकांकी पुस्तक सपनों की सौगातके लिए दिया गया।
समारोह को संबोधित करते हुए नागर ने कहा कि आज हमारा समाज धर्म और जातियों में इस प्रकार बंट गया है कि हम एक-दूसरे से ही खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं लेकिन हमें यह समझना होगा कि यदि परस्पर भरोसा कायम नहीं रहा तो केवल तकनीक और वैज्ञानिक प्रगति के सहारे ही हम सुखी नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों के अन्याय और शोषण के बाद अब दलित और आदिवासी स्वर उठने लगे हैं तो हम उनकी उपेक्षा नहीं कर सकते बल्कि हमें उन स्वरों की संवेदना को समझना चाहिए। जब तक समाज के तमाम तबकों की भागीदारी तय नहीं होगी, समाज और देश की एक बेहतर और संपूर्ण तस्वीर संभव नहीं है। अटलानी के रचनाकर्म पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नागर ने कहा कि वर्तमान में व्यक्ति तमाम तरह के अंतर्विरोधों से घिरा हुआ है और हमारे आचरणों को परिभाषित करने वाली कोई सरल विभाजक रेखा यहाँ नहीं है। व्यवस्था की विसंगतियों ने ईमानदार आदमी के जीवन को दूभर बना दिया है और आदर्शवाद के सहारे हमारी बुनियादी दिक्कतें हल नहीं हो रही हैं। उन्होंने कहा कि आज भारतीय भाषाओं के साथ षड्यंत्र करते हुए यह कहा जा रहा है कि जो भी अच्छा लिखा जा रहा है, वह केवल अंग्रेजी में लिखा जा रहा है। हमें इस साजिश को समझना होगा और इस चुनौती का जवाब अपनी रचनात्मकता और सक्रियता से देना होगा।

मुख्य वक्ता एवं प्रख्यात साहित्यकार श्योराज सिंह बेचैन ने कहा कि देश के बौद्धिक जगत में कभी आदिवासी और दलित नहीं रहे और जो लोग रहे, उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं किया लेकिन यह देश दलितों और आदिवासियों का भी है। सैकड़ों सालों से हमने आदिवासी-दलितों के संदर्भ में जो क्षति पहुँचाई है, उसकी पूर्ति की इच्छा भी कभी तो हममें जागनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोई साहित्यकार अपना भोगा हुआ लिखता है तो निस्संदेह उसकी प्रामाणिकता सर्वाधिक कही जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि देश में कोई भी जाति कमजोर होगी, तो देश कमजोर होगा।
पुरस्कार से अभिभूत भगवान अटलानी ने कहा कि आदर्श और यथार्थ के बीच दूरियाँ नहीं होनी चाहिए। तमाम यथार्थ को भोगते हुए और उससे जूझते हुए हमें एक आदर्श स्थापित करना चाहिए ताकि हम समाज को अच्छा बनाने की दिशा में एक योगदान दे सकें। आदर्शों की ऊँचाइयों पर व्यक्ति पहुँचे, मेरा समग्र साहित्य इसी दिशा में एक समर्पण है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात गणितज्ञ डॉ. घासीराम वर्मा ने कहा कि हमें किताबें खरीदकर पढ़ने की प्रवृत्ति खुद में विकसित करनी चाहिए। जिस व्यक्ति के पास दो से अधिक कमीज-पतलून है, उसे अपनी आवश्यकताओं में कटौती कर पुस्तकें खरीदनी और पढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज देश के वैज्ञानिकों ने मंगल पर यान भेजकर बड़ी सफलता अर्जित की है लेकिन उन्हें मीडिया में उतनी तवज्जो नहीं मिल रही, जितनी कुछ दूसरी फिजूल चीजों को मिल रही है। विशिष्ट अतिथि डॉ. श्रीगोपाल काबरा ने आयोजन के लिए प्रयास संस्थान की सराहना की। वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सिंह सामौर ने आभार जताया। इससे पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। प्रयास के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने आयोजकीय रूपरेखा पर प्रकाश डाला। संचालन कमल शर्मा ने किया। समारोह में ख्यातनाम साहित्यकार रत्नकुमार सांभरिया, रियाजत खान, युवा जागृति संस्थान के अध्यक्ष जयसिंह पूनिया, रामेश्वर प्रजापति रामसरा, नरेंद्र सैनी, रामगोपाल बहड़, ओम सारस्वत, हनुमान कोठारी, बाबूलाल शर्मा, उम्मेद गोठवाल, कुमार अजय, डॉ. कृष्णा जाखड़, सुनीति कुमार, विजयकांत, डॉ. रामकुमार घोटड़, माधव शर्मा, उम्मेद धानियां, बजरंग बगड़िया, केसी सोनी, आरके लाटा, सुरेंद्र पारीक रोहित, श्रीचंद राजपाल सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, मीडियाकर्मी एवं नागरिक मौजूद थे। 

Wednesday 17 September 2014

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : अगस्त 2014




सन्निधि संगोष्ठी अंक : 17
दिनाँक / माह :  31 अगस्त रविवार 2014
विषय :  सोशल मीडिया और लेखन

 



नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के मकसद से पिछले पंद्रह महीने से लगातार संचालित की जाने वाली संगोष्ठी इस बार ‘सोशल मीडिया और लेखन’ विषय पर केंद्रित थी। ये संगोष्ठी 31 अगस्त रविवार सन्निधि सभागार में डॉ. विमलेश कांति वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी अकादमी, दिल्ली, की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुई .......

स्वागत भाषण के दौरान विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने घोषणा की कि विष्णु प्रबाकर की स्मृति में जो सम्मान शुरू किया गया है, वह अब हर साल दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसी के साथ दिसबंर में काका कालेलकर के जन्मदिन पर भी काका कालेलकर सम्मान दिए जाएंगे।

संगोष्ठी के संचालक और वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि सोशल मीडिया का दायरा केवल संपन्न और पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित है लेकिन यहां संकीर्ण सोच के कारण उत्पन्न त्रासदी की चपेट में वे लोग भी आ जाते हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं होता।

विषय प्रवेशक के रूप में शिवानंद द्विवेदी सेहर ने अपने वक्तव्य में कहा कि फेसबुक और ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मायने दिए लेकिन सोचनीय ये है, कि हम उस स्वतंत्रता का उपयोग कैसे करते है ? सोशल मीडिया के माध्यम से संपादक जो मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे उनके बीच से हट जाने से सीधे अपनी बात कहने और रखने की स्वतंत्रता मिली लेखक को, वो खुलकर बिना काट छांट के अपनी बात कह सकता है, सोशल मीडिया पर लेखन की शुरुआत से होने से संपादकीय नाम की संस्था ध्वस्त हो गई। लेखन उनके दायरे से मुक्त हो गया है।

वहीँ मनोज भावुक जी ने कहा कि सोशल मीडिया पर भी अनुशासन की जरूरत है, अभिव्यकित की जो आज़ादी है वो खतरा ना पैदा करे, संपादक का ना होना वरदान बिलकुल नहीं है, संपादक जब काट छांट करता है तो वो एक लेखक की कला में निखार लाता है, और यहाँ जब संपादक बीच में नहीं है तो हर व्यक्ति दो लाइन लिखकर खुद को एक लेखक या कवि की श्रेणी में रख गौरान्वित महसूस करता है, सोशल मीडिया ने जहां अभिव्यक्ति का मौका दिया है , वहीं लोग भी इसके कारण एक-दूसरे के करीब आए हैं, मैं जब युगांडा जैसी जगह में था तो अपने क्षेत्र के लोगो को ढूँढने में सोशल मीडिया ने और मैंने वहां युगांडा भोजपुरी एसोसिएशन की स्थापना की, तो जनाब ये मीडिया की ताक़त है लेकिन बात यहाँ ताक़त की नहीं नियंत्रण की है .......

अलका सिंह जी ने कहा सोशल मीडिया जहाँ स्त्रियों का शोषण करता है वहीँ शैलजा पाठक जैसी अच्छी लेखिका को प्रोत्साहन भी देता है, सोशल मीडिया ने स्त्रियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ! सोशल मीडिया आज जिस दौर से गुजर रहा है वहां हमें बहुत सी चीजों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है ! जरुरत है आज सोशल मिडिया की दिशा तय करने की आज जो ज्वलंत मुद्दे है उन्हें कैसे स्थान दिया जाए सोशल मीडिया पर ये जानना जरुरी सबसे !
पारुल जैन ने भी स्त्री पक्ष को ही प्रधान रूप में रखकर बात रखी अपनी उन्होंने कहा यहाँ जो वैचारिक स्वतंत्रता मिली है उसका दुरूपयोग ना हो इसको ध्यान में रख चलना है सबको ! शिरेश ने सत्ता के विकेंद्रीकरण को केंद्र में रखकर अपनी बात शुरू की और बहुत हद तक सही दिशा में अपनी बात को रखा ....

शुभुनाथ शुक्ल जी ने अपने वक्तव्य में कहा सोशल मीडिया और लेखन पर यहाँ तमाम सवाल उठाये गए, मैंने जब 30 साल पहले जब जनसत्ता ज्वाइन किया तब जनसत्ता एक नया प्रयोग था, उसमे पाठकीय पत्र के लिए एक मंच रखा गया जिसका नाम था चौपाल, चौपाल पर इतने पत्र आते थे चौपाल भर जाती थी, सेंकडो पत्र एक ही इशू पर आते थे, हमें कई बार पत्रों को एडिट करना पड़ता था और कई बार रोकना भी पड़ता था, लेकिन आज फेसबुक जैसी संस्था के आने से संपादक जैसी संस्था हट गई है, अब आप अपने मन से जो चाहे लिख सकते है, इसके लाभ भी है और दुर्गुण भी, समाज बनता है लोगो से उनकी सोच से उनके विचारों से, लिखने पढने में गर आपको असीमित वर्ग तक पहुच बनानी है, तो फेसबुक एक शसक्त माध्यम है उसके लिए, और मैंने इसका भरपूर उपयोग किया अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए, इसमें कोई शक नहीं की फेसबुक ने एक नया आयाम दिया है ! राजनेताओं ने फेसबुक का सबसे सही और भरपूर इस्तेमाल किया है ! तो यहाँ असली लेखक वहीं है जो राजनेताओं के प्रभाव से मुक्त हो और इस मंच से अपनी बात जिस तरह से कहना चाहता है कह सके !

पद्मा सचदेव जी ने अपने वक्तव्य में कहा मुझे यहाँ आकर अच्छा इसीलिए लग रहा है यहाँ उपस्थित सभी लोग उसी तरह एकत्र है जैसे आग तापने को लोग इकठ्ठा होते है और सार्थक चर्चा करते है, सोशल मीडिया और लेखन दोनों ही अलग विधाए है, सोशल मीडिया का आज बोलबाला है, सोशल मीडिया में जितने माध्यम है उनकी अपनी अलग ताक़त है, और लिखा हुआ वो जब चाहे बदल भी सकते है, और पुनर्विचार भी कर सकते है, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में कभी कभी सच पूरी तरह उजागर नहीं होता. पर जो भी जितना भर होता है उसका असर तुरंत होता है, सोशल मीडिया में लोगो को भड़काने का काम नहीं होना चाहिए, खबरे तोड़ मरोड़ कर ना दी जाए, भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए, मिडिया की शक्ति का सदुपयोग हो ये सबसे जरुरी है, पहले एक समय में बलात्कार जैसी घटनाएं होती थी, तो उन्हें दबा दिया जाता था, लेकिन आज ऐसी खबरों को छिपाया नहीं जाता बहुत तीव्र प्रतिक्रिया आती है, एक नई सोच नई क्रांति दिखती है, रहा लेखन तो लेखन आपको हमेशा लपेटे रखता है, जाने कब वो लम्हा आ जाए जब आप कुछ लिख पाए, लेखन मिडिया से अलग एक रचनात्मक क्रिया है, कभी यूँ भी लगता है ये एक लम्हा है, जो आपके पास आता है एक छोटे बच्चे की तरह और आँचल पकड़ आपके साथ साथ चलता है, इस लम्हे में आप जितना डूबते है उतनी रचना भीगी हुई होती है, उस लम्हे का इंतज़ार लेखक हमेशा करता है, ये मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ कविता आपके पास आती है , उसमे थोड़ी सोच आप लाते है लेकिन कविता आपके अन्दर जो बहुत समय से घुमड़ता है उसकी देन होती है ! आजकल मुक्त छंद या अजान पहर की कविता प्रचलन में है, पहले हम छंद युक्त कविताएं ही लिखते थे जिसमे मेहनत अधिक थी, कविता खुद अपने आप ही जन्मती है इसे एक शेर के साथ कह अपनी बात ख़त्म करुँगी ..........
कि टूट जाते है कभी मेरे किनारे मुझमे
डूब जाता है कभी मुझमे समंदर मेरा ............

डॉ विमलेश कांति ने अपने वक्तव्य में कहा आज मुझे यहाँ आकर बहुत सुखद अनुभूति हो रही है यहाँ आज नए मीडियाकर्मी और नई पीढ़ी के लोग अपनी बात कह रहे है हम वृद्ध लोगो के समक्ष ये अच्छी बात है, ईश्वर ने हमें एक मूह दो कान दिए है शायद इसीलिए हम कम बोले और अधिक सुने, गांधी जी भी यहीं कहते थे, मीडिया और लेखन दो ऐसे विषय है, उनमे शक्ति अपरिमित है, लेकिन शक्ति का नियत्रण कैसे हो ? कैसे हम उसे सही मार्ग पर ले जाए, ये सोचने की बात है !

कार्यक्रम का संचालन किरण आर्या और अरुन शर्मा अनंत ने किया। इंडिया अनलिमिटेड की संपादक ज्योत्सना भट्ट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर उपलब्धियों और प्रोत्साहन के लिए भोपाल के डा सौरभ मालवीय(पत्रकारिता), भागलपुर के मनोज सिन्हा(फोटो पत्रकारिता)और साहित्य के लिए प्रज्ञा तिवारी, राजेंद्र सिंह कुंवर फरियादी और कौशल उप्रेती विष्णु प्रभाकर सम्मान से सम्मानित किए गए। इन सभी को ये सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि पदमा सचदेव और साहित्यकार गंगेश गुंजन ने दिया।


प्रस्तुति : किरण आर्या

Tuesday 16 September 2014

संकलन व विशेषांक

शब्द व्यंजनाहिन्दी साहित्य की मासिक ई-पत्रिका है जो हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए दृढ़ संकल्पित है. पत्रिका ने लगातार यह प्रयास किया है कि हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ रचनाकारों के श्रेष्ठ साहित्य से पाठकों को रू-ब-रू कराने के साथ नए रचनाकारों को भी मंच प्रदान करे. नियमित मासिक प्रकाशन के साथ ही पत्रिका समय-समय पर विधा-विशेष तथा विषय-विशेष पर आधारित विशेषांक भी प्रकाशित करेगी जिससे कि उस क्षेत्र में कार्यरत रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाया जा सके. इस तरह के विशेषांक में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं को पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करने का प्रयास होगा.

इसी क्रम में शब्द व्यंजना का नवम्बर अंक कविता विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा. साथ ही, इस अंक में सम्मिलित रचनाकारों की अतुकांत कविताओं का संग्रह पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करना प्रस्तावित है. यह कविता संकलन सारांश समय का नाम से प्रकाशित होगा.

पत्रिका अभी अपने शुरुआती दौर में है और व्यासायिक न होने के कारण अभी पत्रिका के पास ऐसा कोई स्रोत नहीं है जिससे पुस्तक-प्रकाशन के खर्च को वहन किया जा सके इसलिए यह कविता-संग्रह (पुस्तक) रचनाकारों से सहयोग राशि लेकर प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रस्ताव-
कविता-संग्रह में ५० रचनाकारों को सम्मिलित किया जाना प्रस्तावित है.
कविता संग्रह २५६ पेज का होगा. जिसमें प्रत्येक रचनाकार को ४ पेज प्रदान किए जाएँगे.
सहयोग राशि के रूप में रचनाकार को डाक खर्च सहित तीन प्रतियों के मूल्य के रूप में रु० ५५०/- का भुगतान करना होगा.
प्रत्येक रचनाकार को कविता-संग्रह की ३ प्रतियाँ प्रदान की जाएँगी.
इस संग्रह में सम्मिलित होने के लिए रचनाकार अपनी १० अतुकांत कविताएँ, अपने परिचय और फोटो के साथ २० सितम्बर तक इस ई-मेल पते पर भेज सकते हैं-
रचनाएँ भेजते समय शीर्षक संकलन हेतु अवश्य लिखें. यह सुनिशिचित कर लें कि रचनाओं का आकर इतना हो कि ४ पेज में अधिक से अधिक रचनाएँ सम्मिलित की जा सकें. बहुत लम्बी अतुकांत रचनाएँ न भेजें.
इन १० रचनाओं में से संग्रह में प्रकाशित करने हेतु रचनाएँ चयनित की जाएँगी. शेष रचनाओं में से विशेषांक हेतु रचनाओं का चयन किया जाएगा. चयनित रचनाओं के विषय में प्रत्येक रचनाकार को सूचित किया जाएगा.
संग्रह में रचनाकार को वयानुसार स्थान प्रदान किया जाएगा.
संग्रह का लोकार्पण लखनऊ, इलाहाबाद अथवा दिल्ली में किया जाएगा. इस संग्रह का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा तथा समीक्षा कराई जाएगी जिससे रचनाकारों के रचनाकर्म का मूल्यांकन हो सके. संग्रह में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन अन्य सहयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भी सुनिश्चित किया जाएगा जिसकी सूचना रचनाकार को प्रदान की जाएगी. रचनाकारों के रचनाकर्म का व्यापक प्रचार इन्टरनेट की विभिन्न साइटों और ब्लॉग पर भी किया जाएगा.

सहयोग राशि का भुगतान रचनाकार को रचना चयन के उपरान्त करना होगा जिसके सम्बन्ध में रचनाकार को सूचना प्रदान की जाएगी.

संकलन व विशेषांक

शब्द व्यंजना हिन्दी साहित्य की मासिक ई-पत्रिका है जो हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए दृढ़ संकल्पित है. पत्रिका ने लगातार यह प्रयास किया है कि हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ रचनाकारों के श्रेष्ठ साहित्य से पाठकों को रू-ब-रू कराने के साथ नए रचनाकारों को भी मंच प्रदान करे. नियमित मासिक प्रकाशन के साथ ही पत्रिका समय-समय पर विधा-विशेष तथा विषय-विशेष पर आधारित विशेषांक भी प्रकाशित करेगी जिससे कि उस क्षेत्र में कार्यरत रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाया जा सके. इस तरह के विशेषांक में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं को पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करने का प्रयास होगा.

इसी क्रम में शब्द व्यंजना का नवम्बर अंक कविता विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा. साथ ही, इस अंक में सम्मिलित रचनाकारों की अतुकांत कविताओं का संग्रह पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करना प्रस्तावित है. यह कविता संकलन सारांश समय का नाम से प्रकाशित होगा.

पत्रिका अभी अपने शुरुआती दौर में है और व्यासायिक न होने के कारण अभी पत्रिका के पास ऐसा कोई स्रोत नहीं है जिससे पुस्तक-प्रकाशन के खर्च को वहन किया जा सके इसलिए यह कविता-संग्रह (पुस्तक) रचनाकारों से सहयोग राशि लेकर प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रस्ताव-
कविता-संग्रह में ५० रचनाकारों को सम्मिलित किया जाना प्रस्तावित है.
कविता संग्रह २५६ पेज का होगा. जिसमें प्रत्येक रचनाकार को ४ पेज प्रदान किए जाएँगे.
सहयोग राशि के रूप में रचनाकार को डाक खर्च सहित तीन प्रतियों के मूल्य के रूप में रु० ५५०/- का भुगतान करना होगा.
प्रत्येक रचनाकार को कविता-संग्रह की ३ प्रतियाँ प्रदान की जाएँगी.
इस संग्रह में सम्मिलित होने के लिए रचनाकार अपनी १० अतुकांत कविताएँ, अपने परिचय और फोटो के साथ २० सितम्बर तक इस ई-मेल पते पर भेज सकते हैं-
रचनाएँ भेजते समय शीर्षक संकलन हेतु अवश्य लिखें. यह सुनिशिचित कर लें कि रचनाओं का आकर इतना हो कि ४ पेज में अधिक से अधिक रचनाएँ सम्मिलित की जा सकें. बहुत लम्बी अतुकांत रचनाएँ न भेजें.
इन १० रचनाओं में से संग्रह में प्रकाशित करने हेतु रचनाएँ चयनित की जाएँगी. शेष रचनाओं में से विशेषांक हेतु रचनाओं का चयन किया जाएगा. चयनित रचनाओं के विषय में प्रत्येक रचनाकार को सूचित किया जाएगा.
संग्रह में रचनाकार को वयानुसार स्थान प्रदान किया जाएगा.
संग्रह का लोकार्पण लखनऊ, इलाहाबाद अथवा दिल्ली में किया जाएगा. इस संग्रह का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा तथा समीक्षा कराई जाएगी जिससे रचनाकारों के रचनाकर्म का मूल्यांकन हो सके. संग्रह में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन अन्य सहयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भी सुनिश्चित किया जाएगा जिसकी सूचना रचनाकार को प्रदान की जाएगी. रचनाकारों के रचनाकर्म का व्यापक प्रचार इन्टरनेट की विभिन्न साइटों और ब्लॉग पर भी किया जाएगा.

सहयोग राशि का भुगतान रचनाकार को रचना चयन के उपरान्त करना होगा जिसके सम्बन्ध में रचनाकार को सूचना प्रदान की जाएगी.

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...