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Tuesday 30 December 2014

स्मृति- यशस्वी साहित्यकार अनंतमूर्ति

          भारतीय साहित्‍य के महान कथाकार यू आर अनंतमूर्ति बेशक दैहिक रूप से हमारे बीच न रहे हों, लेकिन एक यशस्‍वी रचनाकार के रूप में उनकी उपस्थिति साहित्‍य जगत में सदैव अनुभव की जाती रहेगी। वे कन्‍नड़ भाषा के उन युगान्‍तरकारी रचनाकारों में थे, जिन्‍होंने भारतीय चिन्‍तन धारा को नया उन्‍मेष दिया। 21 दिसंबर, 1932 को कर्नाटक के तीर्थहल्‍ली तालुक के छोटे-से कस्‍बे मेलिगे में जन्‍मे अनंतमूर्ति ने अपनी आठ दशक की जीवन-यात्रा में भारतीय साहित्‍य को अमूल्‍य योगदान दिया। साहित्‍य की विभिन्‍न विधाओं में उनकी 20 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हैं, जिनमें 'संस्‍कार', 'भारतीपुर', 'अवस्‍थे' और 'भव' जैसे प्रसिद्ध उपन्‍यासों के अलावा 5 कहानी संग्रह, 3 काव्‍य-संग्रह, एक नाटक और 5 समीक्षा ग्रंथ अपना विशिष्‍ट स्‍थान रखते हैं।

          प्रो अनंतमूर्ति के बारे यह सर्वविदित है कि उनकी पूरी सृजन-यात्रा सामाजिक रूढ़ियों और गैर-बराबरी के विरुद्ध एक विद्रोही मानवतावादी लेखक की रचनात्‍मक यात्रा रही है और अपने लोकतांत्रिक विचारों और मानवीय सिद्धान्‍तों पर कायम रहने वाले एक बेबाक व्‍यक्ति के रूप में मुखर छवि उन्‍हें भारतीय रचनाकारों में अलग पहचान देती है। अपने लेखन में वे लोहिया की समाजवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित रहे, जिसमें जाति और लिंग के आधार पर होने वाले विभाजन की तीखी आलोचना मुखर है, लेकिन इसी के समानान्‍तर उनका लेखन सार्त्र और लॉरेंस के सौन्‍दर्यबोध सहित अन्‍य दर्शनों से भी बहुत से तत्‍व ग्रहण करता रहा है।

          सन् 1965 में प्रकाशित प्रो यू आर अनंतमूर्ति का सर्वाधिक चर्चित उपन्‍यास 'संस्‍कार' अनेकार्थी जटिल रूपकों से परिपूर्ण माना जाता है, जिसमें लेखक ब्राह्मणवादी मूल्‍यों और सामाजिक व्‍यवस्‍था की भर्त्‍सना करता है - उपन्‍यास की कथा एक ऐसे नेक व्‍यक्ति प्राणेशाचार्य के विद्रोह और जीवन-संघर्ष को सामने लाती है, जो उसी सामाजिक व्‍यवस्‍था की उपज है। इसी तरह उनका चौथा उपन्‍यास 'भव' (1994) विचार के स्‍तर पर उनके पिछले कथा-लेखन से तो अलग है ही, उनकी रचना-यात्रा में बदलाव का नया संकेत भी देता है। इस उपन्‍यास के माध्‍यम से लेखक ने सामाजिक रूढ़ियों से टकराव के साथ व्‍यक्ति के मनोलोक की बारीकियों को भी बहुत खूबसूरती से उजागर किया है।  

          प्रो अनंतमूर्ति को अपने रचनात्‍मक योगदान के लिए राष्‍ट्रीय और अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के अनेक पुरस्‍कार और सम्‍मान प्राप्‍त हुए, जिनमें भारतीय ज्ञानपीठ सम्‍मान, साहित्‍य अकादमी सम्‍मान और अनेक विश्‍व-स्‍तरीय सम्‍मान शामिल हैं। उनकी कृतियों के भारतीय भाषाओं में तो अनुवाद हुए ही, फ्रैंच, जर्मन, बुल्‍गेरियन, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद उपलब्‍ध हैं। अपने साहित्यिक अवदान के साथ वे साहित्‍य अकादमी और नेशनल बुक ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष रहे। साथ ही, वे भारतीय फिल्‍म और टीवी प्रशिक्षण संस्‍थान, पुणे के भी चेयरमैन रहे। उनकी कृतियों पर दूरदर्शन और अन्‍य माध्‍यमों पर फिल्‍म निर्माण हुआ, वे दूरदर्शन की कालजयी कथा-श्रृंखला में कोर कमेटी के माननीय सदस्‍य रहे। ऐसे महान् रचनाकार का अवसान निश्‍चय ही एक गहरा अवसाद और खालीपन छोड़ गया है। उनकी पावन स्‍मृति को प्रणाम।  

प्रस्तुति- राहुल देव
rahuldev.bly@gmail.com

Friday 12 December 2014

राहुल देव - परिचय



राहुल देव
जन्म- 20 मार्च 1988
माता- श्रीमती मंजू श्रीवास्तव
पिता- श्रीप्रकाश
शिक्षा- एम.ए. (अर्थशास्त्र), बी.एड.
प्रकाशित– एक कविता संग्रह, पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतरजाल मंचों पर कवितायें/लेख/ कहानियां/ समीक्षाएं आदि|
शीघ्र प्रकाश्य- एक बाल उपन्यास एक कविता संग्रह तथा एक कहानी संग्रह|
सम्मान- अखिल भारतीय वैचारिक मंच, लखनऊ तथा हिंदी सभा, सीतापुर द्वारा पुरुस्कृत|
रूचि- साहित्य अध्ययन, लेखन, भ्रमण
सम्प्रति- उ.प्र. सरकार के एक विभाग में कार्यरत|
संपर्क सूत्र- 9/48 साहित्य सदन, कोतवाली मार्ग, महमूदाबाद (अवध), सीतापुर, उ.प्र. 261203
मो.– 09454112975
ईमेल- rahuldev.bly@gmail.com

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