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Sunday 4 January 2015

जनवादी लेखक संघ का सातवाँ राज्य सम्मलेन मुरादाबाद में संपन्न

  जनवादी लेखक संघ का सातवाँ राज्य सम्मलेन 13 दिसम्बर को मुरादाबाद में संपन्न हुआ| सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए जलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रख्यात साहित्यकार दूधनाथ सिंह ने कहा कि दक्षिणपंथ ने कभी भी कोई बड़ा लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी नहीं पैदा किया और न ही कर सकता है। हमारी जनता प्राय: मिथ्या चेतना की शिकार हुई है और इसी के चलते दक्षिणपन्थ का यह दौर दौरा आया है जो ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा|
उन्होंने यह भी कहा कि भोजपुरी, अवधी आदि बोलियों को भाषा की तरह दर्जा नहीं दिया जा सकता। केदार नाथ सिंह भोजपुरी की बड़ी वकालत करते हैं लेकिन वो भोजपुरी में एक अच्छी कविता लिख कर दिखाएँ।संगीनों से आप सब कुछ कर सकते हैं सिवा उन पर बैठने के' -इस कथन से शुरू करके युवा आलोचक और जलेस के उपमहासचिव संजीव कुमार ने मौजूदा हालात के बारे में प्रासंगिक बातें जलेस के राज्य सम्मेलन में कहीं। उन्होंने प्रो. बत्रा की भी क्लास ली और उनके विचारों से आने वाले समय में शिक्षा पर पड़ने जा रहे प्रभावों से सचेत किया| गीतकार माहेश्वर तिवारी ने भी जलेस के उ. प्र. राज्य सम्मेलन के उदघाटन सत्र में प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया| नलिन रंजन सिंह ने 'मौजूदा हालात में साहित्य के सरोकार और लेखक की भूमिका' पर बोलते हुए महत्वपूर्ण बातें कहीं। नमिता सिंह,चंचल चौहान,ओंकार सिंह,मुशर्रफ अली,रमेश कुमार एवं प्रदीप सक्सेना ने भी अपने विचार रखे| सांगठनिक सत्र में सचिव प्रदीप सक्सेना ने रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस पर विस्तार से चर्चा हुयी| 
  सांगठनिक सत्र में लेखकों के नए नेतृत्व का चुनाव हुआ। चुनाव में नमिता सिंह (अलीगढ) को  अध्यक्ष, प्रदीप सक्सेना (अलीगढ) को सचिव और नलिन रंजन सिंह (लखनऊ) को कार्यकारी सचिव चुना गया| कुल छः उपाध्यक्ष चुने गए जिनके नाम इस प्रकार हैं- हरीश चन्द्र पांडे (इलाहाबाद), सुधीर सिंह (इलाहाबाद), अनिल कुमार सिंह (फैजाबाद), शौक अमरोहवी (अमरोहा), मुनीश त्यागी (मेरठ) और प्रमोद कुमार (गोरखपुर)| इस अवसर पर चुने गए चार उप सचिव इस प्रकार हैं- रमेश कुमार (अलीगढ), संतोष चतुर्वेदी (इलाहाबाद), उमा शंकर परमार (बाँदा) और तारिक छतारी (अलीगढ)| मुशर्रफ़ अली (मुरादाबाद) को कोषाध्यक्ष चुना गया| नए संरक्षक मंडल में शेखर जोशी, दूधनाथ सिंह, काजी अब्दुल सत्तार, गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, विनोद दत्ता और माहेश्वर तिवारी को चुना गया। केशव तिवारी (बाँदा), संध्या सिंह (लखनऊ), टिकेन्द्र शाद (मथुरा), वेद प्रकाश (गोरखपुर), प्रियंवद (नॉएडा), अजय बिसारिया (अलीगढ), अली बाकर जैदी (लखनऊ), ओंकार सिंह (मुरादाबाद), एम् पी सिंह (वाराणसी)  अता रहीम और के.के. नाज़ को कार्यकारिणी में और अजित प्रियदर्शी (लखनऊ), रामवीर सिंह, तस्लीम सुहैल, हनीफ मदार (मथुरा), ज्ञान प्रकाश चौबे (लखनऊ), प्रेमनंदन (फतेहपुर), रामपाल सिंह (मुरादाबाद), सुरेश चन्द्र, पी के सिंह (बाँदा)और अमरनाथ मधुर को राज्य पार्षद चुना गया।
  शाम को काव्य संध्या का आयोजन किया गया जिसमें नलिन रंजन सिंह, ज्ञान प्रकाश चौबे, के.पी.सिंह, संतोष चतुर्वेदी, अजित प्रियदर्शी, महेंद्र प्रताप, संध्या सिंह, सुजीत कुमार सिंह, शिवानन्द मिश्रा, अजय कुमार पाण्डेय आदि ने प्रतिभागिता की|

प्रस्तुति- नलिन रंजन सिंह
कार्यकारी सचिव

उ.प्र. जनवादी लेखक संघ  

Sunday 14 December 2014

अभिनव अरुण को ‘’आगमन साहित्य सम्मान‘’

          आगमन वार्षिक सम्मान समारोह रविवार दिनांक 23 नवम्बर 14 को कैलाश हॉस्पिटल, नोएडा के प्रेक्षागृह  में आयोजित किया गया | कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ० केशरी लाल वर्मा (चेयरमैन, तकनीकी एवं वैज्ञानिक शब्दावली आयोग एवं निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली) ने की  तथा "काव्य-संध्या" सत्र की अध्यक्षता मशहूर शायर डॉ० गुलज़ार देहलवी एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रो० लल्लन प्रसाद ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ० मधुप मोह्टा (वरिष्ठ साहित्यकार एवं भारतीय विदेश सेवा) तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सर्वश्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई (उपमहानिदेशक, आकाशवाणी, नई दिल्ली), डॉ० हरि सुमन विष्ट (सचिव, हिंदी अकादमी, दिल्ली), डॉ० रमा सिंह (वरिष्ठ गीतकार एवं कवयित्री) एवं आलोक यादव (क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त, बरेली) उपस्थित रहे। इस अवसर पर आकाशवाणी वाराणसी में वरिष्ठ उद्घोषक एवं युवा ग़ज़लकार अभिनव अरुण को साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए ‘’आगमन साहित्य सम्मान २०१४‘’ प्रदान किया गया इस अवसर पर 4 पुस्तकों एवं 1 एल्बम का लोकार्पण भी  हुआ। देशभर से 20 से अधिक कवि-कवयित्रियों व साहित्यकारों को सम्मानित किया गया तथा 70 से अधिक रचनाकारों ने काव्यपाठ किया। कार्यक्रम का सञ्चालन लोकप्रिय गीतकार डॉ० अशोक मधुप, आकाशवाणी उदघोषिका सुश्री अल्पना सुहाषिनी एवं
हास्य व्यंग्य कवयित्री सुश्री बलजीत कौर ने किया। कार्यक्रम का संयोजन आगमन समूह के संस्थापक एवं संयोजक श्री पवन जैन एवं श्री एम० के० चोपड़ा द्वारा किया गया। श्री मनोज कामदेव ने सभी आए हुए अतिथियों, साहित्यकारों, कवियों एवं पत्रकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
                                                                       -       
अभिनव अरुण

‘सारांश समय का’ लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्रमें 'शब्द व्यंजना' और 'सन्निधि संगोष्ठी' के संयुक्त तत्वाधान में 'सारांश समय का' कविता-संकलन का लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया.


कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसून लतांत ने की, जबकि लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्य अतिथि एवं रमणिका गुप्ता, डॉ. धनंजय सिंह, अतुल प्रभाकर विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित थे. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत थे तथा संचालन
महिमा श्री ने किया.
इस आयोजन में बड़ी संख्या में कवि, लेखक तथा साहित्य प्रेमी सम्मिलित हुए. कार्यक्रम दोपहर ढाई बजे से शाम सात बजे तक चला.
'सारांश समय का' कविता संकलन का संपादन बृजेश नीरज और अरुण अनंत ने किया है.  इस संकलन में अस्सी रचनाकारों की बेहतरीन कविताएँ सम्मिलित हैं जिसकी सराहना अतिथियों ने की. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कविताओं के चयन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संकलन हिन्दी साहित्य के लिए शुभ संकेत देता है. इसमें कई मुक्कमल कविताएँ हैँ. उन्होंने संकलन में सम्मिलित कई कविताओं का सस्वर पाठ कर रचनाकारों को प्रोत्साहित किया. 
उन्होंने कहा कि १२५ करोड़ के देश में अगर ८० लाख लोग भी यदि कवि हो जाएँ तो समाज बेहतर हो जाएगा.  कविता अभी संकट में हैकई विधाएँ लुप्त हो रही है उन पर भी काम होना चाहिए. वाचिक परम्परा समाप्त हो रही है, पहले एक शेर, एक कविता भी हलचल मचा देती थी. बिना साधन के जहाँ बिजली भी नहीं थी उस गाँव में भी कविता पढ़ी जाती थी. आज शब्दों की चाट परोसी जाती है.  हिन्दी में मंच पर हल्के स्तर की कविताऐं कही जाती हैं. एक अलग ही तरह का गणित है. गम्भीर रचनाकारों ने मंच से दूरी बना ली है. साहित्य का विघटन हुआ है. साम्प्रदायिकता पैदा की गई है. इससे कविता को बड़ा नुकसान हुआ है. उर्दू में ये बंटवारा नहीं है, मंच से दूरी नहीं है. निदा फ़ाज़ली ग़ज़ल पढ़ने मस्कट भी जाते हैं.


मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत का कहना था कि कविता अणु से अनंत की यात्रा है. कविता की विशेषता और लिखने से पहले की रचनाकारों की संवेदनाओं के घनीभूत होने की आवश्यकता के बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि कविता पाठक के सीधे ह्रदय तक पहुँचती है और हर पाठक अपनी तरह से उसकी अभिव्यंजना करता है. पाठक कविता के लिए तथ्य समाज से लेता है और स्वयं के साथ समाज को भी रचना के साथ जोड़ता है. कविता में जो असर और क्षमता है वह किसी अन्य विधा में नहीं है. कविता में जन समाज को आंदोलित करने की क्षमता है. स्वतंत्रता काल हो या आपातकाल कवियों ने अपनी लेखनी से समाज को झकझोरा भी और दिशा भी दी. समाज में व्याप्त संताप, पीड़ा, दुःख को कवियों ने बखूबी रेखांकित किया. उन्होंने कहा रचना सयास नहीं लिखी जाती है, ये उतरती है, माजिल होती है, प्रकट होती है. अपनी बात को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से जन-जीवन के कृष्णपक्ष को ही बड़ी संख्या में रेखांकित करने की परम्परा चल पड़ी है. देश और समाज में भोग गया यथार्थ इन रचनाओं में है पर अगर रचना को कालजयी करना है तो जीवन के शुक्लपक्ष को भी रेखांकित करना होगा.

रमणिका गुप्ता ने अपनी बात कहते हुए कहा आज जन सरोकार का चलन है उसी विषय को माध्यम बनाकर लिखा जाना चाहिए. लोगों तक आपकी बात पहुँचेगी, लोगों के विचारों में परिवर्तन आएगा. उन्होंने कहा मैं आदिवासीयों, पीड़ित दलितों और स्त्रियों के बीच उनके समस्याओं के निवारण के लिए लम्बे समय से काम कर रही हूँ आप भी इन सरोकारों को लेकर लिखें.
आयोजन दो सत्रों में चला. लोकार्पण सत्र में डॉ धनजंय सिंह, अतुल कुमार, लतांत प्रसून व संग्रह के सम्पादक द्वय बृजेश नीरज और अरुन अनंत ने भी अपनी बात रखी.


लोकार्पण के बाद काव्य गोष्ठी में कवि और कवियत्रियों ने उत्साह के साथ अपनी प्रस्तुति दी. आयोजन की उपलब्धि रही कि हर विधा में रचना पढ़ी गयी. गीत, नवगीत, ग़ज़ल, घनाक्षरी, कुंडलिया, अतुकांतपद्य की सभी प्रचलित विधाओं की रचनाएँ सुनी और सुनायी गईं. कार्यक्रम के अंत में किरण आर्या ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

                                                                   - महिमा श्री


Thursday 4 December 2014

‘लाल डोरा और अन्य कहानियाँ’ का लोकार्पण

       
6 नवम्बर, 2014 को 7वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला, इलाहाबाद में प्रो. राजेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कथाकार महेन्द्र भीष्म के कहानी संग्रह लाल डोरा और अन्य कहानियाँका लोकार्पण व परिचर्चा संपन्न हुई।  मुख्य वक्ता श्री प्रकाश मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि महेन्द्र भीष्म को मैंने उनकी कृतियों से जाना है। महेन्द्र भीष्म समाज के अछूते वर्ग को क्रेन्द्रित करते हुए अपनी रचनाएँ गढ़ते हैं।मुख्य अतिथि डॉ. अनिल मिश्र के अनुसार कथाकार महेन्द्र भीष्म संवेदनशील कथाकार हैं. उनकी कहानियाँ पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर करने का माद्दा रखती हैं।  हेल्प यू ट्रस्ट के प्रमुख न्यासी श्री हर्ष अग्रवाल ने महेन्द्र भीष्म के उपन्यास किन्नर कथाका जिक्र करते हुए कहा कि इस उपन्यास ने किन्नरों के प्रति लोगों का नजरिया बदल दिया। कथा संग्रह लाल डोराकी कहानियाँ चमत्कृत करती हैं और मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों की याद दिला जाती हैं।  रेवान्त की संपादिका अनीता श्रीवास्तव ने लाल डोरामें संग्रहीत कहानियों को केन्द्र में लेते हुए कहा कि सामाजिक यथार्थवाद की बुनियाद पर टिकी महेन्द्र भीष्म की कहानियाँ जीवन के अनेक मोड़, अनेक उतार-चढ़ाव के ग्राफ को दर्शाती हुई संवेदना को प्रगाढ़ करती हैं।प्रकृति के समीप होते हुए भी भीष्म की कहानियाँ भाषा और शिल्प की दृष्टि से कसी हुई हैं।  महेन्द्र भीष्म ने अपनी रचनाधर्मिता पर बोलते हुए कहा कि लेखन मेरे लिए जहाँ सामाजिक प्रतिबद्धता है वहीं लिखना मेरे लिए ठीक वैसे ही है जैसे जिन्दा रहने के लिए साँस लेना।
       कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. राजेन्द्र कुमार ने कहा कि कहानी की विषय-वस्तु के क्षेत्र में महेन्द्र भीष्म काफी समृद्धिशाली हैं। लेखक को बधाई देते हुए उन्होंने आगे कहा कि कथाकार महेन्द्र भीष्म से साहित्य जगत को बहुत उम्मीदें हैं। अच्छी बात यह है कि वे अनछुए विषयों को छू रहे हैं और अच्छा लिख रहे हैं।
       कार्यक्रम का संचालन संजय पुरूषार्थी ने किया।


त्रिलोक सिंह ठकुरेला को राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान

साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को पंचवटी लोक सेवा समिति द्वारा हिन्दी पखवाड़े के समापन अवसर पर राष्ट्र-भाषा हिन्दी के संवर्द्धन में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। मोहन गार्डन स्थित रेड रोज माडल स्कूल, मोहन गार्डन में राष्ट्रपति के भाषा सहायक रहे डॉ. परमानंद पांचाल के सान्निध्य में आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि डॉ. महेश चंद शर्मा (पूर्व महापौर और दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष)अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान डॉ.विमलेश कांति वर्मा तथा डा. किशोर श्रीवास्तव (संयुक्त निदेशक समाज कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार), समारोह के अध्यक्ष शिक्षाविद् श्री परमानंद अग्रवाल तथा पंचवटी लोकसेवा समिति के संरक्षक डा.अम्बरीश कुमार ने त्रिलोक सिंह ठकुरेला (आबू रोड)को शॉल, सम्मान-पत्र, स्मृति-चिन्ह एवं  सद्साहित्य भेंट कर सम्मानित किया। अन्य हिन्दी सेवियों में मेहताब आजाद (देवबंद), डा. कीर्तिवर्धन (मुजफ्फरनगर), डा. माहे तलत सिद्दीकी (लखनऊ), डॉ. संगीता सक्सेना (जयपुर), डा. गीतांजलि गीत (छिंदवाडा), दिनेश बैंस (झांसी), सुरेन्द्र साधक (दिल्ली), प्रख्यात गजलकार अशोक वर्मा (दिल्ली), कमल मॉडल सी.सै. स्कूल, मोहन गार्डन की श्रीमती रजनी अरोडा तथा श्रीमती नीलम सहित अनेक विद्वानों को राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान प्रदान किया। श्री महेश चंद शर्मा ने राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं देववाणी संस्कृत के प्रति निष्क्रियता तथा अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार तथा आम जनता से इस ओर ध्यान देने की अपील की। डॉ.विमलेश कांति वर्मा ने हिंदी को राष्ट्र एकता की सबसे मजबूत कड़ी बताते हुए इसके अधिकाधिक प्रयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने पंचवटी लोकसेवा समिति द्वारा राष्ट्रभाषा को प्रोत्साहित करने की सराहना करते हुए सभी सम्मानित छात्रों एवं साहित्यकारों के प्रति अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित कीं। श्री अम्बरीश कुमार ने सभी से आत्मचिंतन करने तथा हिन्दी में ही हस्ताक्षर करने का संकल्प लेने का आह्वान किया तो समारोह में उपस्थित सैकड़ों हिन्दी प्रेमियों ने करतल ध्वनि से उनका अनुसरण करने की पुष्टि की। 
इससे पूर्व कार्यक्रम का आगाज रेड रोज माडल स्कूल के छात्रों द्वारा वंदेमातरम तथा सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण डा किशोर श्रीवास्तव द्वारा संचालित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन रहा।  
इस अवसर पर अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा क्षेत्र के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम संयोजक डा. विनोद बब्बर ने देश के विभिन्न भागों से आए अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि सभी के हृदय में हिंदी भाषा के प्रति जो समर्पण है वह विश्वास दिलाता है कि हिंदी सदा फलती-फूलती  रहेगी।

प्रस्तुति ---  श्रीमती साधना ठकुरेला

Sunday 28 September 2014

दलित और आदिवासी स्वरों की संवेदना समझनी होगी: नागर

प्रयास संस्थान की ओर से सूचना केंद्र में शनिवार को आयोजित समारोह में वर्ष 2014 का डॉ. घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार जयपुर के ख्यातनाम साहित्यकार भगवान अटलानी को दिया गया। नामचीन लेखक-पत्राकार विष्णु नागर के मुख्य आतिथ्य में हुए कार्यक्रम में उन्हें यह पुरस्कार एकांकी पुस्तक सपनों की सौगातके लिए दिया गया।
समारोह को संबोधित करते हुए नागर ने कहा कि आज हमारा समाज धर्म और जातियों में इस प्रकार बंट गया है कि हम एक-दूसरे से ही खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं लेकिन हमें यह समझना होगा कि यदि परस्पर भरोसा कायम नहीं रहा तो केवल तकनीक और वैज्ञानिक प्रगति के सहारे ही हम सुखी नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों के अन्याय और शोषण के बाद अब दलित और आदिवासी स्वर उठने लगे हैं तो हम उनकी उपेक्षा नहीं कर सकते बल्कि हमें उन स्वरों की संवेदना को समझना चाहिए। जब तक समाज के तमाम तबकों की भागीदारी तय नहीं होगी, समाज और देश की एक बेहतर और संपूर्ण तस्वीर संभव नहीं है। अटलानी के रचनाकर्म पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नागर ने कहा कि वर्तमान में व्यक्ति तमाम तरह के अंतर्विरोधों से घिरा हुआ है और हमारे आचरणों को परिभाषित करने वाली कोई सरल विभाजक रेखा यहाँ नहीं है। व्यवस्था की विसंगतियों ने ईमानदार आदमी के जीवन को दूभर बना दिया है और आदर्शवाद के सहारे हमारी बुनियादी दिक्कतें हल नहीं हो रही हैं। उन्होंने कहा कि आज भारतीय भाषाओं के साथ षड्यंत्र करते हुए यह कहा जा रहा है कि जो भी अच्छा लिखा जा रहा है, वह केवल अंग्रेजी में लिखा जा रहा है। हमें इस साजिश को समझना होगा और इस चुनौती का जवाब अपनी रचनात्मकता और सक्रियता से देना होगा।

मुख्य वक्ता एवं प्रख्यात साहित्यकार श्योराज सिंह बेचैन ने कहा कि देश के बौद्धिक जगत में कभी आदिवासी और दलित नहीं रहे और जो लोग रहे, उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं किया लेकिन यह देश दलितों और आदिवासियों का भी है। सैकड़ों सालों से हमने आदिवासी-दलितों के संदर्भ में जो क्षति पहुँचाई है, उसकी पूर्ति की इच्छा भी कभी तो हममें जागनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोई साहित्यकार अपना भोगा हुआ लिखता है तो निस्संदेह उसकी प्रामाणिकता सर्वाधिक कही जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि देश में कोई भी जाति कमजोर होगी, तो देश कमजोर होगा।
पुरस्कार से अभिभूत भगवान अटलानी ने कहा कि आदर्श और यथार्थ के बीच दूरियाँ नहीं होनी चाहिए। तमाम यथार्थ को भोगते हुए और उससे जूझते हुए हमें एक आदर्श स्थापित करना चाहिए ताकि हम समाज को अच्छा बनाने की दिशा में एक योगदान दे सकें। आदर्शों की ऊँचाइयों पर व्यक्ति पहुँचे, मेरा समग्र साहित्य इसी दिशा में एक समर्पण है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात गणितज्ञ डॉ. घासीराम वर्मा ने कहा कि हमें किताबें खरीदकर पढ़ने की प्रवृत्ति खुद में विकसित करनी चाहिए। जिस व्यक्ति के पास दो से अधिक कमीज-पतलून है, उसे अपनी आवश्यकताओं में कटौती कर पुस्तकें खरीदनी और पढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज देश के वैज्ञानिकों ने मंगल पर यान भेजकर बड़ी सफलता अर्जित की है लेकिन उन्हें मीडिया में उतनी तवज्जो नहीं मिल रही, जितनी कुछ दूसरी फिजूल चीजों को मिल रही है। विशिष्ट अतिथि डॉ. श्रीगोपाल काबरा ने आयोजन के लिए प्रयास संस्थान की सराहना की। वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सिंह सामौर ने आभार जताया। इससे पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। प्रयास के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने आयोजकीय रूपरेखा पर प्रकाश डाला। संचालन कमल शर्मा ने किया। समारोह में ख्यातनाम साहित्यकार रत्नकुमार सांभरिया, रियाजत खान, युवा जागृति संस्थान के अध्यक्ष जयसिंह पूनिया, रामेश्वर प्रजापति रामसरा, नरेंद्र सैनी, रामगोपाल बहड़, ओम सारस्वत, हनुमान कोठारी, बाबूलाल शर्मा, उम्मेद गोठवाल, कुमार अजय, डॉ. कृष्णा जाखड़, सुनीति कुमार, विजयकांत, डॉ. रामकुमार घोटड़, माधव शर्मा, उम्मेद धानियां, बजरंग बगड़िया, केसी सोनी, आरके लाटा, सुरेंद्र पारीक रोहित, श्रीचंद राजपाल सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, मीडियाकर्मी एवं नागरिक मौजूद थे। 

Tuesday 9 September 2014

डॉ. कन्हैया सिंह का नागरिक सम्मान

हिन्दी भाषा और साहित्य की समृद्धि जिन तपस्वी साधकों की साधना का प्रतिफल है, उनमें डॉ. कन्हैया सिंह का उल्लेखनीय योगदान है। यद्यपि वे महानगरों से सदैव दूर रहे हैं तथापि पाठालोचन, पाठ संपादन तथा पाठानुसंधान में उन्होंने जो कार्य किया है, वो हिन्दी में अतुलनीय है। पाठालोचन सामान्य साहित्य साधना से संभव नहीं है। पाठालोचन केवल वही तपस्वी साधक कर सकता है, जिसको भाषा की प्रकृति तथा उसका सच्चा ज्ञान उसके पास हो। उक्त उद्गार डॉ. कन्हैया सिंह के नागरिक सम्मान के अवसर पर दिनांक 8 दिसम्बर, 2014 को प्रेस क्लब, लखनऊ के सभागार में हिन्दी के महाकवि, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. विनोद चन्द्र पाण्डेय ने व्यक्त किए।
उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह हिन्दी साहित्य पर असाधारण अधिकार रखने के साथ-साथ मध्यकालीन अवधी के अधिकारी विद्वान हैं। उन्होंने हिन्दी जगत को 40 से अधिक समालोचना की पुस्तकों के साथ-साथ शताधिक शोध निबन्ध देकर हिन्दी को प्रतिष्ठित करने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।
पं0 दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान से सम्मनित वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. कन्हैया सिंह ने इस समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि पाठालोचन एक जटिल कार्य है। पाठालोचन के माध्यम से कवि की मूल चेतना तक पहुँचा जा सकता है। कारण यह है कि अनेक ऐसे शब्द कवि की रचनाओं के साथ जुड़ जाते हैं जो मूल अर्थ को अभिव्यक्त करने में सफल नहीं होते। उन्होंने यह भी कहा कि जायसी के काव्य का जो अनुशीलन मैंने किया है वह अनुशीलन पाठालोचन से अनुप्राणित है। अभी जायसी के काव्य में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर गम्भीरता से कार्य किया जाना है। जायसी हिन्दी का ऐसा महाकवि है जो तत्कालीन इतिहास से सीधे टकराता है और भारतीय भूमि से जुड़कर इस्लाम के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी का समुचित विकास तभी होगा जब हिन्दी में मौलिक शोध कार्य सम्पन्न किए जाएँगे।
इस अवसर पर विषय प्रवर्तन करते हुए उद्बोध सेवा न्यास के सर्वराकार श्री शिवमोहन सिंह ने डॉ. कन्हैया सिंह को उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा प्रदत्त पं. दीन दयाल उपाध्याय सम्मान हेतु अपनी हार्दिक बधाईयाँ देते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह हिन्दी के उन्नायक साहित्यकारों में से एक हैं। उनकी हिन्दी साहित्य साधना अतुलनीय है। उन्होंने जिस लगन के साथ हिन्दी साहित्य की सेवा की है उसके उदाहरण कम मिलते हैं। वे साहित्य के मर्मी पाठक होने के साथ-साथ पाठालोचन के प्रतिष्ठित आचार्य हैं। हिन्दी साहित्य की लम्बी परम्परा में जिन मध्यवर्गीय विद्वानों का योगदान है उनमें कन्हैया सिंह जी बराबर याद किए जाएँगे।
इस अवसर पर कन्हैया सिंह जी के सहयोगी रहे डॉ. वेद प्रकाश आर्य ने कहा कि डॉ. सिंह एक अतिशय गम्भीर और कर्मठ साहित्य साधक हैं। उनकी साहित्य साधना उनके नित्य नियमित जीवन-दर्शन का ही प्रतिफल है। शाखा के स्वयंसेवक के रूप में नित्य 3 बजे उठकर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करने के साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत को अमूल्य कृतियाँ दी हैं। उनके समान साहित्य समीक्षा के ग्रन्थ हिन्दी में बहुत कम मिलते हैं।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नेत्रपाल सिंह ने कहा कि यद्यपि डॉ. कन्हैया सिंह से लम्बा परिचय नहीं है, तथापि मैं उनकी कृतियों के माध्यम से उन्हें एक लम्बी अवधि से जान रहा हूँ। मैं यह बात पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल तथा आचार्य राम चन्द्र शुक्ल के बाद जायसी पर डॉ. कन्हैया सिंह से बढ़कर किसी दूसरे विद्वान की गति नहीं दिखाई देती। डॉ. कन्हैया सिंह ने जायसी के काव्य के मर्म को उद्घाटित करने के साथ-साथ जायसी के काव्य में भारतीय संस्कृति के जिन मूल्यवान तत्वों का उद्घाटन किया है वो सराहनीय है। जायसी के साहित्य के साथ-साथ उनका मध्यकालीन अवधि पर भी असाधारण अधिकार है।
इस अवसर पर शब्दितापत्रिका के संरक्षक डॉ. राम कठिन सिंह ने अपने व्यक्तिगत सम्पर्क और संसर्ग के अनेक प्रसंगों को उल्लेख करते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह को इसके पूर्व भी साहित्य महोपाध्याय, साहित्य भूषण, सुब्रह्मण्यम भारती, गणपति सम्मान, हंस सम्मान, साहित्य गरिमा, भोजपुरी शिरोमणि तथा अन्य ऐसे साहित्यिक सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने जब भी डॉ. कन्हैया सिंह के दर्शन किए हैं तब-तब वे साहित्य साधना में लीन मिले। वे ऐसे जिज्ञासु साहित्य साधक हैं, जो हर क्षण किसी न किसी नई विचारधारा को आत्मसात कर उसके अनुरूप साहित्य के मूल्यवान तत्वों की खोज करते हैं।
डॉ. राम कठिन सिंह ने इस समारोह में उपस्थित सभी साहित्यकारों तथा नागरिकों को कृतज्ञता ज्ञापित की।
इस समारोह का समापन विशिष्ट कवियों की संगोष्ठी के साथ सम्पन्न हुआ। कवि गोष्ठी में गीतकार डॉ. सुरेश, रवि मोहन अवस्थी, लोकगीतकार विनम्र सेन, अवनीन्द्र मिश्र, रामकिशोर तिवारी, वेद प्रकाश आर्य, निर्मल दर्शन आदि ने कविता पाठ किया।

प्रस्तुति- राम कठिन सिंह

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...