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Wednesday 25 May 2016

जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम :

कैफ़ी आज़मी सभागार, निशातगंज, लखनऊ में जनवादी लेखक संघ के तत्वाधान में वरिष्ठ लेखक एवं संपादक डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवं डॉ संध्या सिंह के कुशल सञ्चालन में बृजेश नीरज की काव्यकृति कोहरा सूरज धूपएवं युवा कवि राहुल देव के कविता संग्रह उधेड़बुनका लोकार्पण एवं दोनों कृतियों पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया|

कार्यक्रम के आरम्भ में प्रख्यात समाजवादी लेखक डॉ यू.आर. अनंतमूर्ति को उनके निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी| मंचासीन अतिथियों में युवा कवि एवं आलोचक डॉ अनिल त्रिपाठी, जलेस अध्यक्ष श्री अली बाकर जैदी, समीक्षक श्री चंद्रेश्वर, युवा आलोचक श्री अजित प्रियदर्शी ने कार्यक्रम में दोनों कवियों की कविताओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए| परिचर्चा में सर्वप्रथम कवयित्री सुशीला पुरी ने क्रमशः बृजेश नीरज एवं राहुल देव के जीवन परिचय एवं रचनायात्रा पर प्रकाश डाला| तत्पश्चात राहुल देव ने अपने काव्यपाठ में भ्रष्टाचारम उवाच’, ‘अक्स में मैं और मेरा शहर’, ‘हारा हुआ आदमी’, ‘नशा’, ‘मेरे सृजक तू बताशीर्षक कविताओं का वाचन किया| बृजेश नीरज ने अपने काव्यपाठ में तीन शब्द’, ‘क्या लिखूँ’, ‘चेहरा’, ‘दीवारकविताओं का पाठ किया|

परिचर्चा में युवा आलोचक अजित प्रियदर्शी ने राहुल देव की कविताओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि राहुल की कविताओं में प्रश्नों की व्यापकता की अनुभूति होती है| यही प्रश्न उनकी उधेड़बुन को प्रकट करते हैं| राहुल अपनी छोटी कविताओं में अधिक सशक्त हैं| राहुल अपनी कविताओं में जीवन को जीने का प्रयास करते हैं| डॉ अनिल त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में सर्वप्रथम बृजेश नीरज की रचनाधर्मिता पर अपने विचार प्रकट किए- बृजेश नीरज की कृति समकालीन कविता के दौर की विशिष्ट उपलब्धि है| उनकी कविताओं में लय, कहन, लेखन की शैली दृष्टिगोचर होती है| वे अपना मुहावरा स्वयं गढ़ते हैं| इस काव्य संग्रह का आना इत्तेफ़ाक हो सकता है किन्तु अब यह समकालीन हिंदी कविता की आवश्यकता है| राहुल की छोटी कविताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं| चंद्रेश्वर पाण्डेय ने कहा कि- राहुल देव की कविताओं में तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग खटकता है| राहुल ने अपनी कविताओं में शब्दों को अधिक खर्च किया है, उन्हें इतना उदार नहीं होना चाहिए| कहीं-कहीं पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग हिंदी साहित्य में भाषा की विडंबना को परिलक्षित करता है| बृजेश नीरज संक्षिप्तता के कवि हैं, प्रभावशाली हैं| अपनी पत्नी के नाम को अपने नाम के साथ जोड़कर उन्होंने एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है| उनकी रचनाधर्मिता सराहनीय है|


अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम संयोजक डॉ नलिन रंजन सिंह को साधुवाद देते हुए कहा कि जब मानवीय संवेदनाएँ सूखती जा रही हैं ऐसे समय में ऐसी सार्थक बहस का आयोजन एक ऐतिहासिक क्षण है जिसमें श्री नरेश सक्सेना और श्री विनोद दास जैसे गणमान्य साहित्यकार उपस्थित हों| राहुल की कृति उधेड़बुनएक युवा कवि के अंतस का प्रतिबिम्ब है| एक छटपटाहट लिए यह संग्रह एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है| यह समाज के बनावटी जीवन को उद्घाटित करता है| ‘उधेड़बुनरोमांटिक प्रोटेस्ट का कविता संग्रह है| बृजेश नीरज की कृति कोहरा सूरज धूपमें गंभीरता है| यह एक ऐसे सत्य की खोज़ है जिसमें जीवन के उच्चतर आदर्शों की उद्दामता है, मानवतावाद का बोध कराने की सामर्थ्य है| आज के सन्दर्भों में यह दोनों कृतियाँ महत्त्वपूर्ण और पठनीय हैं

कार्यक्रम में संध्या सिंह, किरण सिंह, दिव्या शुक्ला, विजय पुष्पम पाठक, नरेश सक्सेना, डॉ कैलाश निगम, एस.सी. ब्रह्मचारी, श्री रामशंकर वर्मा, कौशल किशोर, अनीता श्रीवास्तव, डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव, प्रदीप सिंह कुशवाहा, केवल प्रसाद सत्यम, धीरज मिश्र, सूरज सिंह सहित कई अन्य गणमान्य कवि एवं साहित्यकार उपस्थित रहे|

जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम :

लखनऊ 24 अगस्त 2014 कैफ़ी आज़मी सभागार, निशातगंज में जनवादी लेखक संघ के तत्वाधान में वरिष्ठ लेखक एवं संपादक डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवं डॉ संध्या सिंह के कुशल सञ्चालन में बृजेश नीरज की काव्यकृति कोहरा सूरज धूपएवं युवा कवि राहुल देव के कविता संग्रह उधेड़बुनका लोकार्पण एवं दोनों कृतियों पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया|

कार्यक्रम के आरम्भ में प्रख्यात समाजवादी लेखक डॉ यू.आर. अनंतमूर्ति को उनके निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी| मंचासीन अतिथियों में युवा कवि एवं आलोचक डॉ अनिल त्रिपाठी, जलेस अध्यक्ष श्री अली बाकर जैदी, समीक्षक श्री चंद्रेश्वर, युवा आलोचक श्री अजित प्रियदर्शी ने कार्यक्रम में दोनों कवियों की कविताओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए| परिचर्चा में सर्वप्रथम कवयित्री सुशीला पुरी ने क्रमशः बृजेश नीरज एवं राहुल देव के जीवन परिचय एवं रचनायात्रा पर प्रकाश डाला| तत्पश्चात राहुल देव ने अपने काव्यपाठ में भ्रष्टाचारम उवाच’, ‘अक्स में मैं और मेरा शहर’, ‘हारा हुआ आदमी’, ‘नशा’, ‘मेरे सृजक तू बताशीर्षक कविताओं का वाचन किया| बृजेश नीरज ने अपने काव्यपाठ में तीन शब्द’, ‘क्या लिखूँ’, ‘चेहरा’, ‘दीवारकविताओं का पाठ किया|

परिचर्चा में युवा आलोचक अजित प्रियदर्शी ने राहुल देव की कविताओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि राहुल की कविताओं में प्रश्नों की व्यापकता की अनुभूति होती है| यही प्रश्न उनकी उधेड़बुन को प्रकट करते हैं| राहुल अपनी छोटी कविताओं में अधिक सशक्त हैं| राहुल अपनी कविताओं में जीवन को जीने का प्रयास करते हैं| डॉ अनिल त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में सर्वप्रथम बृजेश नीरज की रचनाधर्मिता पर अपने विचार प्रकट किए- बृजेश नीरज की कृति समकालीन कविता के दौर की विशिष्ट उपलब्धि है| उनकी कविताओं में लय, कहन, लेखन की शैली दृष्टिगोचर होती है| वे अपना मुहावरा स्वयं गढ़ते हैं| इस काव्य संग्रह का आना इत्तेफ़ाक हो सकता है किन्तु अब यह समकालीन हिंदी कविता की आवश्यकता है| राहुल की छोटी कविताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं| चंद्रेश्वर पाण्डेय ने कहा कि- राहुल देव की कविताओं में तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग खटकता है| राहुल ने अपनी कविताओं में शब्दों को अधिक खर्च किया है, उन्हें इतना उदार नहीं होना चाहिए| कहीं-कहीं पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग हिंदी साहित्य में भाषा की विडंबना को परिलक्षित करता है| बृजेश नीरज संक्षिप्तता के कवि हैं, प्रभावशाली हैं| अपनी पत्नी के नाम को अपने नाम के साथ जोड़कर उन्होंने एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है| उनकी रचनाधर्मिता सराहनीय है|

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम संयोजक डॉ नलिन रंजन सिंह को साधुवाद देते हुए कहा कि जब मानवीय संवेदनाएँ सूखती जा रही हैं ऐसे समय में ऐसी सार्थक बहस का आयोजन एक ऐतिहासिक क्षण है जिसमें श्री नरेश सक्सेना और श्री विनोद दास जैसे गणमान्य साहित्यकार उपस्थित हों| राहुल की कृति उधेड़बुनएक युवा कवि के अंतस का प्रतिबिम्ब है| एक छटपटाहट लिए यह संग्रह एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है| यह समाज के बनावटी जीवन को उद्घाटित करता है| ‘उधेड़बुनरोमांटिक प्रोटेस्ट का कविता संग्रह है| बृजेश नीरज की कृति कोहरा सूरज धूपमें गंभीरता है| यह एक ऐसे सत्य की खोज़ है जिसमें जीवन के उच्चतर आदर्शों की उद्दामता है, मानवतावाद का बोध कराने की सामर्थ्य है| आज के सन्दर्भों में यह दोनों कृतियाँ महत्त्वपूर्ण और पठनीय हैं

कार्यक्रम में संध्या सिंह, किरण सिंह, दिव्या शुक्ला, विजय पुष्पम पाठक, नरेश सक्सेना, डॉ कैलाश निगम, एस.सी. ब्रह्मचारी, श्री रामशंकर वर्मा, कौशल किशोर, अनीता श्रीवास्तव, डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव, प्रदीप सिंह कुशवाहा, केवल प्रसाद सत्यम, धीरज मिश्र, सूरज सिंह सहित कई अन्य गणमान्य कवि एवं साहित्यकार उपस्थित रहे|

Thursday 9 April 2015

जनवादी लेखक संघ की विचार गोष्ठी

          जनवादी लेखक संघ लखनऊ की ओर से ‘वर्तमान समय के स्त्री-प्रश्न’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया| परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफ़ेसर सदानंद शाही ने कहा कि आज की स्त्री परंपरा से खींची गयी दहलीज को पार करके बाहर निकल आई है, पुनः उसे उस दहलीज में नहीं धकेला जा सकता| अब बहुत निराशाजनक स्थिति नहीं है| स्त्री-पुरुष सन्दर्भों में देखें तो पशुता की ताकत पुरुष के पास ज्यादा है और मनुष्यता की ताकत स्त्री में ज्यादा है| उन्होंने तमाम मिथकीय प्रसंगों की चर्चा करते हुए स्त्रियों के समक्ष उठने वाले प्रश्नों की चर्चा की|

          अध्यक्षता करते हुए कवयित्री सुशीला पुरी ने कहा कि स्त्री प्रश्न स्त्री के बजाय पुरुषों के लिए जरुरी हैं| यह भी जरुरी है कि हमारा स्त्री विमर्श शहरों तक ही सीमित न रहे, गाँवों तक भी पहुँचे| विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. संध्या सिंह ने आधुनिक सन्दर्भों में स्त्री विमर्श के रैखिक विकास क्रम को प्रस्तुत किया| डॉ. रंजना अनुराग ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पित्रसत्तात्मक समाज में स्त्री सदियों से पीड़ित रही है| अनीता श्रीवास्तव, कुंती मुखर्जी, कवयित्री संध्या सिंह, डॉ. निरांजलि सिन्हा, अनुजा शुक्ला, दिव्या शुक्ला, माधवी मिश्रा, डॉ. अलका प्रमोद, रंजना श्रीवास्तव ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए स्त्री के अधिकारों और समानता के लिए स्वयं संघर्ष करने का आह्वान किया| विजय पुष्पम् पाठक ने परिचर्चा को बहस में तब्दील कर दिया जिससे विषय पर खूब चर्चा हुयी| ऐडवा की सीमा राणा, एस.ऍफ़.आई. के प्रवीण पाण्डेय, कलम सांस्कृतिक मंच के ऋषि श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए| धन्यवाद ज्ञापन नलिन रंजन सिंह ने किया|

          इस अवसर पर गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, प्रताप दीक्षित, राजेंद्र वर्मा, अजीत प्रियदर्शी, ज्ञान प्रकाश चौबे, राहुल देव, बृजेश नीरज, नसीम साकेती, शरदेन्दु मुखर्जी, राजा सिंह, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, अवधेश श्रीवास्तव, राजीव मोहन, गोपाल नारायण श्रीवास्तव, के.के. चतुर्वेदी आदि साहित्य प्रेमी मौजूद थे|

Monday 23 February 2015

“अपनी-अपनी हिस्‍सेदारी“ का लोकार्पण


विश्‍व पुस्‍तक मेले में दिनांक 22 फरवरी, 2015 को हिन्‍दी अकादमी, दिल्‍ली के प्रकाशन सौजन्‍य से मंजुली प्रकाशन द्वारा सद्यय प्रकाशित सुश्री संगीता शर्मा अधिकारी के प्रथम कविता संग्रह अपनी-अपनी हिस्‍सेदारी का लोकार्पण कार्यक्रम प्रात: 11 बजे, लिखावट, कविता और विचार के मंच की ओर से हॉल न0 8, साहित्‍य मंच पर किया गया। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता श्री मिथिलेश श्रीवास्‍तव ने की। आमंत्रित वक्‍ता श्री लक्ष्‍मी शंकर वाजपेयी, श्री अमर नाथ अमर, सुश्री अलका सिन्‍हा, सुश्री पुष्‍पा सिंह विसेन और श्री मनोज कुमार सिंह थे। सभी वक्‍ताओं ने वर्तमान कविता में विशेष रूप से पाए जाने वाले प्रेम, स्‍त्री-विमर्श, घर-परिवार, रिश्‍ते-नाते और समाज-राजनीति से लेकर वैश्विक सरोकारों के बीच उनकी कविताओं को व्‍याख्‍यायित किया तथा नवोदित कवियों में एक अलग तरह के मुहावरे के बीच अपनी पहचान बनाती हुई कविताएँ बताया। साथ ही उन्‍होंने संभावनाओं की जमीन तलाशती कविताओं के लिए युवा कवयित्री सुश्री संगीता शर्माअधिकारी को उनके प्रथम सृजनात्‍मक प्रयास की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ दीं। कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन श्री अरविंद पथिक ने किया। अंत में लिखावट की संयोजिका श्रीमती अनीता श्रीवास्‍तव ने सभी का आभार व्‍यक्‍त करते हुए धन्‍यवाद ज्ञापित किया।  


Sunday 4 January 2015

जनवादी लेखक संघ का सातवाँ राज्य सम्मलेन मुरादाबाद में संपन्न

  जनवादी लेखक संघ का सातवाँ राज्य सम्मलेन 13 दिसम्बर को मुरादाबाद में संपन्न हुआ| सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए जलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रख्यात साहित्यकार दूधनाथ सिंह ने कहा कि दक्षिणपंथ ने कभी भी कोई बड़ा लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी नहीं पैदा किया और न ही कर सकता है। हमारी जनता प्राय: मिथ्या चेतना की शिकार हुई है और इसी के चलते दक्षिणपन्थ का यह दौर दौरा आया है जो ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा |
उन्होंने यह भी कहा कि भोजपुरी, अवधी आदि बोलियों को भाषा की तरह दर्जा नहीं दिया जा सकता। केदार नाथ सिंह भोजपुरी की बड़ी वकालत करते हैं लेकिन वो भोजपुरी में एक अच्छी कविता लिख कर दिखाएँ।संगीनों से आप सब कुछ कर सकते हैं सिवा उन पर बैठने के' - इस कथन से शुरू करके युवा आलोचक और जलेस के उपमहासचिव संजीव कुमार ने मौजूदा हालात के बारे में प्रासंगिक बातें जलेस के राज्य सम्मेलन में कहीं। उन्होंने प्रो. बत्रा की भी क्लास ली और उनके विचारों से आने वाले समय में शिक्षा पर पड़ने जा रहे प्रभावों से सचेत किया| गीतकार माहेश्वर तिवारी ने भी जलेस के उ.प्र. राज्य सम्मेलन के उदघाटन सत्र में प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया | नलिन रंजन सिंह ने 'मौजूदा हालात में साहित्य के सरोकार और लेखक की भूमिका' पर बोलते हुए महत्वपूर्ण बातें कहीं। नमिता सिंह,चंचल चौहान,ओंकार सिंह,मुशर्रफ अली,रमेश कुमार एवं प्रदीप सक्सेना ने भी अपने विचार रखे| सांगठनिक सत्र में सचिव प्रदीप सक्सेना ने रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस पर विस्तार से चर्चा हुयी | 
  सांगठनिक सत्र में लेखकों के नए नेतृत्व का चुनाव हुआ। चुनाव में नमिता सिंह (अलीगढ) को  अध्यक्ष, प्रदीप सक्सेना (अलीगढ) को सचिव और नलिन रंजन सिंह (लखनऊ) को कार्यकारी सचिव चुना गया| कुल छः उपाध्यक्ष चुने गए जिनके नाम इस प्रकार हैं- हरीश चन्द्र पांडे (इलाहाबाद), सुधीर सिंह (इलाहाबाद), अनिल कुमार सिंह (फैजाबाद), शौक अमरोहवी (अमरोहा), मुनीश त्यागी (मेरठ) और प्रमोद कुमार (गोरखपुर)| इस अवसर पर चुने गए चार उप सचिव इस प्रकार हैं- रमेश कुमार (अलीगढ), संतोष चतुर्वेदी (इलाहाबाद), उमा शंकर परमार (बाँदा) और तारिक छतारी (अलीगढ) | मुशर्रफ़ अली (मुरादाबाद) को कोषाध्यक्ष चुना गया| नए संरक्षक मंडल में शेखर जोशी, दूधनाथ सिंह, काजी अब्दुल सत्तार, गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, विनोद दत्ता और माहेश्वर तिवारी को चुना गया। केशव तिवारी (बाँदा), संध्या सिंह (लखनऊ), टिकेन्द्र शाद (मथुरा), वेद प्रकाश (गोरखपुर), प्रियंवद (नॉएडा), अजय बिसारिया (अलीगढ), अली बाकर जैदी (लखनऊ), ओंकार सिंह (मुरादाबाद), एम् पी सिंह (वाराणसी)  अता रहीम और के.के. नाज़ को कार्यकारिणी में और अजित प्रियदर्शी (लखनऊ), रामवीर सिंह, तस्लीम सुहैल, हनीफ मदार (मथुरा), ज्ञान प्रकाश चौबे (लखनऊ),प्रेमनंदन (फतेहपुर), रामपाल सिंह (मुरादाबाद), सुरेश चन्द्र, पी के सिंह (बाँदा)और अमरनाथ मधुर को राज्य पार्षद चुना गया।
  शाम को काव्य संध्या का आयोजन किया गया जिसमें नलिन रंजन सिंह, ज्ञान प्रकाश चौबे, के.पी.सिंह, संतोष चतुर्वेदी, अजित प्रियदर्शी, महेंद्र प्रताप, संध्या सिंह, सुजीत कुमार सिंह, शिवानन्द मिश्रा, अजय कुमार पाण्डेय आदि ने प्रतिभागिता की |
                                                                                          प्रस्तुति- नलिन रंजन सिंह                                                                  कार्यकारी सचिव                                                                 उ.प्र.जनवादी लेखक संघ 


Thursday 4 December 2014

‘लाल डोरा और अन्य कहानियाँ’ का लोकार्पण

       
6 नवम्बर, 2014 को 7वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला, इलाहाबाद में प्रो. राजेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कथाकार महेन्द्र भीष्म के कहानी संग्रह लाल डोरा और अन्य कहानियाँका लोकार्पण व परिचर्चा संपन्न हुई।  मुख्य वक्ता श्री प्रकाश मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि महेन्द्र भीष्म को मैंने उनकी कृतियों से जाना है। महेन्द्र भीष्म समाज के अछूते वर्ग को क्रेन्द्रित करते हुए अपनी रचनाएँ गढ़ते हैं। मुख्य अतिथि डॉ. अनिल मिश्र के अनुसार कथाकार महेन्द्र भीष्म संवेदनशील कथाकार हैं. उनकी कहानियाँ पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर करने का माद्दा रखती हैं।  हेल्प यू ट्रस्ट के प्रमुख न्यासी श्री हर्ष अग्रवाल ने महेन्द्र भीष्म के उपन्यास किन्नर कथाका जिक्र करते हुए कहा कि इस उपन्यास ने किन्नरों के प्रति लोगों का नजरिया बदल दिया। कथा संग्रह लाल डोराकी कहानियाँ चमत्कृत करती हैं और मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों की याद दिला जाती हैं।  रेवान्त की संपादिका अनीता श्रीवास्तव ने लाल डोरामें संग्रहीत कहानियों को केन्द्र में लेते हुए कहा कि सामाजिक यथार्थवाद की बुनियाद पर टिकी महेन्द्र भीष्म की कहानियाँ जीवन के अनेक मोड़, अनेक उतार-चढ़ाव के ग्राफ को दर्शाती हुई संवेदना को प्रगाढ़ करती हैं।प्रकृति के समीप होते हुए भी भीष्म की कहानियाँ भाषा और शिल्प की दृष्टि से कसी हुई हैं।  महेन्द्र भीष्म ने अपनी रचनाधर्मिता पर बोलते हुए कहा कि लेखन मेरे लिए जहाँ सामाजिक प्रतिबद्धता है वहीं लिखना मेरे लिए ठीक वैसे ही है जैसे जिन्दा रहने के लिए साँस लेना।
       कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. राजेन्द्र कुमार ने कहा कि कहानी की विषय-वस्तु के क्षेत्र में महेन्द्र भीष्म काफी समृद्धिशाली हैं। लेखक को बधाई देते हुए उन्होंने आगे कहा कि कथाकार महेन्द्र भीष्म से साहित्य जगत को बहुत उम्मीदें हैं। अच्छी बात यह है कि वे अनछुए विषयों को छू रहे हैं और अच्छा लिख रहे हैं।
       कार्यक्रम का संचालन संजय पुरूषार्थी ने किया।


Wednesday 3 December 2014

‘सारांश समय का’ लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्रमें 'शब्द व्यंजना' और 'सन्निधि संगोष्ठी' के संयुक्त तत्वाधान में 'सारांश समय का' कविता-संकलन का लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसून लतांत ने की, जबकि लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्य अतिथि एवं रमणिका गुप्ता, डॉ. धनंजय सिंह, अतुल प्रभाकर विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित थे. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत थे तथा संचालन
महिमा श्री ने किया.
इस आयोजन में बड़ी संख्या में कवि, लेखक तथा साहित्य प्रेमी सम्मिलित हुए. कार्यक्रम दोपहर ढाई बजे से शाम सात बजे तक चला.
'सारांश समय का' कविता संकलन का संपादन बृजेश नीरज और अरुण अनंत ने किया है.  इस संकलन में अस्सी रचनाकारों की बेहतरीन कविताएँ सम्मिलित हैं जिसकी सराहना अतिथियों ने की. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कविताओं के चयन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संकलन हिन्दी साहित्य के लिए शुभ संकेत देता है. इसमें कई मुक्कमल कविताएँ हैँ. उन्होंने संकलन में सम्मिलित कई कविताओं का सस्वर पाठ कर रचनाकारों को प्रोत्साहित किया. 
उन्होंने कहा कि १२५ करोड़ के देश में अगर ८० लाख लोग भी यदि कवि हो जाएँ तो समाज बेहतर हो जाएगा.  कविता अभी संकट में हैकई विधाएँ लुप्त हो रही है उन पर भी काम होना चाहिए. वाचिक परम्परा समाप्त हो रही है, पहले एक शेर, एक कविता भी हलचल मचा देती थी. बिना साधन के जहाँ बिजली भी नहीं थी उस गाँव में भी कविता पढ़ी जाती थी. आज शब्दों की चाट परोसी जाती है.  हिन्दी में मंच पर हल्के स्तर की कविताऐं कही जाती हैं. एक अलग ही तरह का गणित है. गम्भीर रचनाकारों ने मंच से दूरी बना ली है. साहित्य का विघटन हुआ है. साम्प्रदायिकता पैदा की गई है. इससे कविता को बड़ा नुकसान हुआ है. उर्दू में ये बंटवारा नहीं है, मंच से दूरी नहीं है. निदा फ़ाज़ली ग़ज़ल पढ़ने मस्कट भी जाते हैं.


मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत का कहना था कि कविता अणु से अनंत की यात्रा है. कविता की विशेषता और लिखने से पहले की रचनाकारों की संवेदनाओं के घनीभूत होने की आवश्यकता के बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि कविता पाठक के सीधे ह्रदय तक पहुँचती है और हर पाठक अपनी तरह से उसकी अभिव्यंजना करता है. पाठक कविता के लिए तथ्य समाज से लेता है और स्वयं के साथ समाज को भी रचना के साथ जोड़ता है. कविता में जो असर और क्षमता है वह किसी अन्य विधा में नहीं है. कविता में जन समाज को आंदोलित करने की क्षमता है. स्वतंत्रता काल हो या आपातकाल कवियों ने अपनी लेखनी से समाज को झकझोरा भी और दिशा भी दी. समाज में व्याप्त संताप, पीड़ा, दुःख को कवियों ने बखूबी रेखांकित किया. उन्होंने कहा रचना सयास नहीं लिखी जाती है, ये उतरती है, माजिल होती है, प्रकट होती है. अपनी बात को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से जन-जीवन के कृष्णपक्ष को ही बड़ी संख्या में रेखांकित करने की परम्परा चल पड़ी है. देश और समाज में भोग गया यथार्थ इन रचनाओं में है पर अगर रचना को कालजयी करना है तो जीवन के शुक्लपक्ष को भी रेखांकित करना होगा.

रमणिका गुप्ता ने अपनी बात कहते हुए कहा आज जन सरोकार का चलन है उसी विषय को माध्यम बनाकर लिखा जाना चाहिए. लोगों तक आपकी बात पहुँचेगी, लोगों के विचारों में परिवर्तन आएगा. उन्होंने कहा मैं आदिवासीयों, पीड़ित दलितों और स्त्रियों के बीच उनके समस्याओं के निवारण के लिए लम्बे समय से काम कर रही हूँ आप भी इन सरोकारों को लेकर लिखें.
आयोजन दो सत्रों में चला. लोकार्पण सत्र में डॉ धनजंय सिंह, अतुल कुमार, लतांत प्रसून व संग्रह के सम्पादक द्वय ब्रिजेश नीरज और अरुन अनंत ने भी अपनी बात रखी.


लोकार्पण के बाद काव्य गोष्ठी में कवि और कवियत्रियों ने उत्साह के साथ अपनी प्रस्तुति दी. आयोजन की उपलब्धि रही कि हर विधा में रचना पढ़ी गयी. गीत, नवगीत, ग़ज़ल, घनाक्षरी, कुंडलिया, अतुकांतपद्य की सभी प्रचलित विधाओं की रचनाएँ सुनी और सुनायी गईं. कार्यक्रम के अंत में किरण आर्या ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

- महिमा श्री


Thursday 27 November 2014

'सारांश समय का' लोकार्पण समारोह

'शब्द व्यंजना' और 'सन्निधि संगोष्ठी' के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 22/11/2014 को अपराह्न 01.30 बजे से सायं 6:00 बजे तक कमरा न. 203, अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में 'सारांश समय का' साझा कविता-संकलन का विमोचन/ लोकार्पण समारोह तथा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। 
बृजेश नीरज जी व अरुन शर्मा अनंत जी द्वारा सम्पादित 80 रचनाकारों की पुस्तक की एक सहभागी आपकी दोस्त "नीलू 'नीलपरी" भी है।
मुख्य अतिथि रमणिका गुप्ता जी, लक्ष्मीशंकर बाजपेयी जी, धनञ्जय सिंह जी, प्रसून लतांत जी रहे। मंच की संचालिका महिमा ने अपना कार्य बखूबी निभाया। किरण आर्या के संयोजन से सारा समारोह बहुत अच्छा बन पड़ा। कविता, शायरी, ग़ज़ल, कुण्डलिया आदि की स्वर लहरी से समां बंध गया। उपस्थित रचनाकारों के साथ हमने भी काव्य पाठ किया।
वरिष्ठ कवि और मेरे बाबा धनञ्जय सिंह जी और बृजेश नीरज जी से प्रथम बार मिलना बहुत सुखद रहा। मेरे फेसबुक मामू अशोक अरोरा जी की उपस्थिति सुखकर लगी।

राहुल पुरुषोत्तम द्वारा कैमरे में कैद की कुछ फ़ोटो साझा कर रही हूँ।
- नीलू नीलपरी 









Wednesday 17 September 2014

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : अगस्त 2014




सन्निधि संगोष्ठी अंक : 17
दिनाँक / माह :  31 अगस्त रविवार 2014
विषय :  सोशल मीडिया और लेखन

 



नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के मकसद से पिछले पंद्रह महीने से लगातार संचालित की जाने वाली संगोष्ठी इस बार ‘सोशल मीडिया और लेखन’ विषय पर केंद्रित थी। ये संगोष्ठी 31 अगस्त रविवार सन्निधि सभागार में डॉ. विमलेश कांति वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी अकादमी, दिल्ली, की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुई .......

स्वागत भाषण के दौरान विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने घोषणा की कि विष्णु प्रबाकर की स्मृति में जो सम्मान शुरू किया गया है, वह अब हर साल दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसी के साथ दिसबंर में काका कालेलकर के जन्मदिन पर भी काका कालेलकर सम्मान दिए जाएंगे।

संगोष्ठी के संचालक और वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि सोशल मीडिया का दायरा केवल संपन्न और पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित है लेकिन यहां संकीर्ण सोच के कारण उत्पन्न त्रासदी की चपेट में वे लोग भी आ जाते हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं होता।

विषय प्रवेशक के रूप में शिवानंद द्विवेदी सेहर ने अपने वक्तव्य में कहा कि फेसबुक और ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मायने दिए लेकिन सोचनीय ये है, कि हम उस स्वतंत्रता का उपयोग कैसे करते है ? सोशल मीडिया के माध्यम से संपादक जो मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे उनके बीच से हट जाने से सीधे अपनी बात कहने और रखने की स्वतंत्रता मिली लेखक को, वो खुलकर बिना काट छांट के अपनी बात कह सकता है, सोशल मीडिया पर लेखन की शुरुआत से होने से संपादकीय नाम की संस्था ध्वस्त हो गई। लेखन उनके दायरे से मुक्त हो गया है।

वहीँ मनोज भावुक जी ने कहा कि सोशल मीडिया पर भी अनुशासन की जरूरत है, अभिव्यकित की जो आज़ादी है वो खतरा ना पैदा करे, संपादक का ना होना वरदान बिलकुल नहीं है, संपादक जब काट छांट करता है तो वो एक लेखक की कला में निखार लाता है, और यहाँ जब संपादक बीच में नहीं है तो हर व्यक्ति दो लाइन लिखकर खुद को एक लेखक या कवि की श्रेणी में रख गौरान्वित महसूस करता है, सोशल मीडिया ने जहां अभिव्यक्ति का मौका दिया है , वहीं लोग भी इसके कारण एक-दूसरे के करीब आए हैं, मैं जब युगांडा जैसी जगह में था तो अपने क्षेत्र के लोगो को ढूँढने में सोशल मीडिया ने और मैंने वहां युगांडा भोजपुरी एसोसिएशन की स्थापना की, तो जनाब ये मीडिया की ताक़त है लेकिन बात यहाँ ताक़त की नहीं नियंत्रण की है .......

अलका सिंह जी ने कहा सोशल मीडिया जहाँ स्त्रियों का शोषण करता है वहीँ शैलजा पाठक जैसी अच्छी लेखिका को प्रोत्साहन भी देता है, सोशल मीडिया ने स्त्रियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ! सोशल मीडिया आज जिस दौर से गुजर रहा है वहां हमें बहुत सी चीजों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है ! जरुरत है आज सोशल मिडिया की दिशा तय करने की आज जो ज्वलंत मुद्दे है उन्हें कैसे स्थान दिया जाए सोशल मीडिया पर ये जानना जरुरी सबसे !
पारुल जैन ने भी स्त्री पक्ष को ही प्रधान रूप में रखकर बात रखी अपनी उन्होंने कहा यहाँ जो वैचारिक स्वतंत्रता मिली है उसका दुरूपयोग ना हो इसको ध्यान में रख चलना है सबको ! शिरेश ने सत्ता के विकेंद्रीकरण को केंद्र में रखकर अपनी बात शुरू की और बहुत हद तक सही दिशा में अपनी बात को रखा ....

शुभुनाथ शुक्ल जी ने अपने वक्तव्य में कहा सोशल मीडिया और लेखन पर यहाँ तमाम सवाल उठाये गए, मैंने जब 30 साल पहले जब जनसत्ता ज्वाइन किया तब जनसत्ता एक नया प्रयोग था, उसमे पाठकीय पत्र के लिए एक मंच रखा गया जिसका नाम था चौपाल, चौपाल पर इतने पत्र आते थे चौपाल भर जाती थी, सेंकडो पत्र एक ही इशू पर आते थे, हमें कई बार पत्रों को एडिट करना पड़ता था और कई बार रोकना भी पड़ता था, लेकिन आज फेसबुक जैसी संस्था के आने से संपादक जैसी संस्था हट गई है, अब आप अपने मन से जो चाहे लिख सकते है, इसके लाभ भी है और दुर्गुण भी, समाज बनता है लोगो से उनकी सोच से उनके विचारों से, लिखने पढने में गर आपको असीमित वर्ग तक पहुच बनानी है, तो फेसबुक एक शसक्त माध्यम है उसके लिए, और मैंने इसका भरपूर उपयोग किया अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए, इसमें कोई शक नहीं की फेसबुक ने एक नया आयाम दिया है ! राजनेताओं ने फेसबुक का सबसे सही और भरपूर इस्तेमाल किया है ! तो यहाँ असली लेखक वहीं है जो राजनेताओं के प्रभाव से मुक्त हो और इस मंच से अपनी बात जिस तरह से कहना चाहता है कह सके !

पद्मा सचदेव जी ने अपने वक्तव्य में कहा मुझे यहाँ आकर अच्छा इसीलिए लग रहा है यहाँ उपस्थित सभी लोग उसी तरह एकत्र है जैसे आग तापने को लोग इकठ्ठा होते है और सार्थक चर्चा करते है, सोशल मीडिया और लेखन दोनों ही अलग विधाए है, सोशल मीडिया का आज बोलबाला है, सोशल मीडिया में जितने माध्यम है उनकी अपनी अलग ताक़त है, और लिखा हुआ वो जब चाहे बदल भी सकते है, और पुनर्विचार भी कर सकते है, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में कभी कभी सच पूरी तरह उजागर नहीं होता. पर जो भी जितना भर होता है उसका असर तुरंत होता है, सोशल मीडिया में लोगो को भड़काने का काम नहीं होना चाहिए, खबरे तोड़ मरोड़ कर ना दी जाए, भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए, मिडिया की शक्ति का सदुपयोग हो ये सबसे जरुरी है, पहले एक समय में बलात्कार जैसी घटनाएं होती थी, तो उन्हें दबा दिया जाता था, लेकिन आज ऐसी खबरों को छिपाया नहीं जाता बहुत तीव्र प्रतिक्रिया आती है, एक नई सोच नई क्रांति दिखती है, रहा लेखन तो लेखन आपको हमेशा लपेटे रखता है, जाने कब वो लम्हा आ जाए जब आप कुछ लिख पाए, लेखन मिडिया से अलग एक रचनात्मक क्रिया है, कभी यूँ भी लगता है ये एक लम्हा है, जो आपके पास आता है एक छोटे बच्चे की तरह और आँचल पकड़ आपके साथ साथ चलता है, इस लम्हे में आप जितना डूबते है उतनी रचना भीगी हुई होती है, उस लम्हे का इंतज़ार लेखक हमेशा करता है, ये मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ कविता आपके पास आती है , उसमे थोड़ी सोच आप लाते है लेकिन कविता आपके अन्दर जो बहुत समय से घुमड़ता है उसकी देन होती है ! आजकल मुक्त छंद या अजान पहर की कविता प्रचलन में है, पहले हम छंद युक्त कविताएं ही लिखते थे जिसमे मेहनत अधिक थी, कविता खुद अपने आप ही जन्मती है इसे एक शेर के साथ कह अपनी बात ख़त्म करुँगी ..........
कि टूट जाते है कभी मेरे किनारे मुझमे
डूब जाता है कभी मुझमे समंदर मेरा ............

डॉ विमलेश कांति ने अपने वक्तव्य में कहा आज मुझे यहाँ आकर बहुत सुखद अनुभूति हो रही है यहाँ आज नए मीडियाकर्मी और नई पीढ़ी के लोग अपनी बात कह रहे है हम वृद्ध लोगो के समक्ष ये अच्छी बात है, ईश्वर ने हमें एक मूह दो कान दिए है शायद इसीलिए हम कम बोले और अधिक सुने, गांधी जी भी यहीं कहते थे, मीडिया और लेखन दो ऐसे विषय है, उनमे शक्ति अपरिमित है, लेकिन शक्ति का नियत्रण कैसे हो ? कैसे हम उसे सही मार्ग पर ले जाए, ये सोचने की बात है !

कार्यक्रम का संचालन किरण आर्या और अरुन शर्मा अनंत ने किया। इंडिया अनलिमिटेड की संपादक ज्योत्सना भट्ट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर उपलब्धियों और प्रोत्साहन के लिए भोपाल के डा सौरभ मालवीय(पत्रकारिता), भागलपुर के मनोज सिन्हा(फोटो पत्रकारिता)और साहित्य के लिए प्रज्ञा तिवारी, राजेंद्र सिंह कुंवर फरियादी और कौशल उप्रेती विष्णु प्रभाकर सम्मान से सम्मानित किए गए। इन सभी को ये सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि पदमा सचदेव और साहित्यकार गंगेश गुंजन ने दिया।


प्रस्तुति : किरण आर्या

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

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