tag:blogger.com,1999:blog-68498144019406966332024-02-02T14:58:58.419+05:30शब्द व्यंजनाएक साहित्यिक पहलAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06758567207132720144noreply@blogger.comBlogger242125tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-66587975971468817222020-02-24T10:04:00.001+05:302020-02-24T10:04:13.529+05:30केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मानहमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्यक्त करता है - कौशल किशोर मित्रता और आत्मीयता का बड़ा कवि - अजीत प्रियदर्शी मुक्तिचक्र और जनवादी लेखक मंच द्वारा प्रदत्त किये जाने वाले जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान 2018 का दो दिवसीय आयोजन बाँदा और कालिंजर में दिनांक 22 दिसम्बर और 23 दिसम्बर को Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-24512835545707582052019-12-12T08:07:00.001+05:302019-12-16T07:31:39.912+05:30आलोचना का विपक्षसाहित्य में ऐसे बहुत से लेखक कवि हैं, जिनका जन संघर्ष से दूर-दूर तक वास्ता नहीं। सरप्लस पूँजी से सैर- सपाटे और मौज-मस्ती करते हैं और अपने कमरे में बैठकर मार्क्स की खूब सारी किताबें पढ़कर जनचेतना का मुलम्मा अपने ऊपर चढ़ाते हैं। गोष्ठियों और मंचों पर खूब भाषण देते हैं। भारतवर्ष में ऐसे नवबुजुर्वा लोकवादियों की कमी नहीं। ये मार्क्सवाद और लोक चेतना का चोला पहनकर अपनी गलत कमाई को सफेद करना Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-91633975995550833762017-07-12T22:21:00.001+05:302017-07-12T22:22:05.785+05:30गोरख पाण्डेय की कविताएँ
तमाम
विद्रूपताओं और अंधे संघर्षों के बावजूद जीवन में उम्मीद और प्यार के पल बिखरे
मिलते हैं. इन्हीं पलों को बुनने वाले कवि का नाम है गोरख पाण्डेय. इनकी कविताओं
में जीवन और समाज की सच्चाईयाँ अपनी पूरी कुरूपता के साथ मौजूद हैं लेकिन इनके बीच
जीवन का सौन्दर्य आशा की किरण बनकर निखर आता है.
प्रस्तुत हैं सौन्दर्य और संघर्ष के कवि गोरख पाण्डेय की कुछ कविताएँ-
सात
सुरों में Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-22227112030907996322016-12-27T22:02:00.000+05:302016-12-27T22:02:04.304+05:30कहानी - जली हुई रस्सी
<!--[if !supportLists]-->- <!--[endif]-->शानी
अपने
बर्फ जैसे हाथों से वाहिद ने गर्दन से उलझा हुआ मफलर निकाला और साफिया की ओर फेंक
दिया। पलक-भर वाहिद की ओर देखकर साफिया ने मफलर उठाया और उसे तह करती हुई धीमे
स्वर में बोली, 'क्या मीलाद में गए थे?'
वाहिद
ने बड़े ठंडे ढंग से स्वीकृतिसूचक सिर हिलाया और पास की खूँटी में कोट टाँग खिड़की
के पास आया। खिड़की के बाहर अँधेरा था, केवल
सन्नाटे की Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-32141508880534178672016-12-27T21:58:00.001+05:302016-12-27T21:58:55.746+05:30सआदत हसन मंटो की लघुकथाएँ
सआदत
हसन मंटो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कहानीकारों में से एक थे. मंटो ने कोई उपन्यास
नहीं लिखा, केवल अपनी कहानियों के दम पर साहित्य में अपनी जगह बना ली. जहाँ एक और
उनकी कहानियों में विभाजन, दंगों और
सांप्रदायिकता पर तीखे कटाक्ष देखने को मिलते हैं वहीँ दूसरी ओर मानवीय संवेदना के
सूत्र भी कथानक में बिखरे होते हैं.
प्रस्तुत
है उनकी पाँच लघु कहानियाँ -
घाटे
का सौदा
दो
दोस्तों ने मिलकर दस-बीसLokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-66298466757185599592016-12-27T21:51:00.002+05:302016-12-27T21:51:34.946+05:30गोपाल सिंह नेपाली की रचनाएँ
मेरा
धन है स्वाधीन कलम
राजा
बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम
मेरा
धन है स्वाधीन कलम
जिसने
तलवार शिवा को दी
रोशनी
उधार दिवा को दी
पतवार
थमा दी लहरों को
खंजर
की धार हवा को दी
अग-जग
के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन कलम
मेरा
धन है स्वाधीन कलम
रस-गंगा
लहरा देती है
मस्ती-ध्वज
फहरा देती है
चालीस
करोड़ों की भोली
किस्मत
पर पहरा देती है
संग्राम-क्रांति
का बिगुल यही है, यही प्यार Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-69845196440183222772016-12-27T21:34:00.001+05:302016-12-27T21:34:53.918+05:30महेंद्र भटनागर की कविताएँ
(1) यथार्थ
.
राह का
नहीं है अंत
चलते रहेंगे हम!
.
दूर तक फैला
अँधेरा
नहीं होगा ज़रा भी कम!
.
टिमटिमाते दीप-से
अहर्निश
जलते रहेंगे हम!
.
साँसें मिली हैं
मात्र गिनती की
अचानक एक दिन
धड़कन हृदय की जायगी थम!
समझते-बूझते सब
मृत्यु को छलते रहेंगे हम!
.
हर चरण पर
मंज़िलें होती कहाँ हैं?
ज़िन्दगी में
कंकड़ों के ढेर हैं
मोती कहाँ हैं?
(2) लमहा
एक लमहा
सिर्फ़ एक लमहा
एकाएक छीन लेता है
Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-68079706919582731562016-12-26T22:59:00.001+05:302016-12-26T22:59:13.009+05:30विजय पुष्पम पाठक की कविता
सदियों
से यही होता आया था
चुप
रहकर सुनती रही थी
शिकायतें,
लान्छनाएँ
बोलने
की अनुमति
न
ही अवसर दिया गया
आदत
ही छूट गयी प्रतिवाद की
अपना
पक्ष रखने की
घर
की चारदीवारी
कब
बन गयी नियति
आसमान
आँगन भर में सिमट गया
तीज-त्यौहार
आते रहे
शादी-ब्याह
देते रहे
गीतों
में अपनी व्यथा व्यक्त करने का अवसर
घिसे
बिछुए चित्रित करते रहे
पावों
के लगते चक्कर
कालिख
ने भर दी हथेलियोंLokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-85030000635481920502016-12-26T22:49:00.000+05:302016-12-26T22:49:20.042+05:30कहानी - बिंदा
<!--[if !supportLists]-->-
<!--[endif]-->महादेवी वर्मा
भीत-सी
आँखों वाली उस दुर्बल, छोटी और अपने-आप ही सिमटी-सी बालिका पर
दृष्टि डालकर मैंने सामने बैठे सज्जन को, उनका
भरा हुआ प्रवेशपत्र लौटाते हुए कहा - 'आपने
आयु ठीक नहीं भरी है। ठीक कर दीजिए,
नहीं
तो पीछे कठिनाई पड़ेगी।' 'नहीं, यह तो गत आषाढ़ में चौदह की हो चुकी', सुनकर मैंने कुछ विस्मित भाव से अपनी उस
भावी विद्यार्थिनी को Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-74362941123715598512016-12-26T22:45:00.000+05:302016-12-26T22:45:27.978+05:30जाँ निसार अख़्तर
जाँ
निसार अख़्तर
जन्म:-
14
फ़रवरी 1914
निधन:-
19
अगस्त 1976
जन्म
स्थान:- ग्वालियर, मध्य प्रदेश, भारत
कुछ
प्रमुख कृतियाँ:- नज़रे-बुताँ, सलासिल, जाँविदां, घर आँगन, ख़ाके-दिल, तनहा सफ़र की रात, जाँ
निसार अख़्तर-एक जवान मौत
आवाज़
दो हम एक हैं
एक
है अपना जहाँ, एक है अपना वतन
अपने
सभी सुख एक हैं, अपने सभी ग़म एक हैं
आवाज़
दो हम एक हैं.
ये
वक़्त खोने का नहीं, Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-12505836153794583382016-12-26T22:41:00.002+05:302016-12-26T22:41:44.728+05:30जयशंकर प्रसाद
जयशंकर
प्रसाद
जन्म:
30 जनवरी 1889
निधन:
14 जनवरी 1937
जन्म
स्थान: वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ
प्रमुख कृतियाँ: कामायनी, आँसू, कानन-कुसुम, प्रेम
पथिक, झरना, लहर
अरुण
यह मधुमय देश
अरुण
यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ
पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता
एक सहारा।
सरस
तामरस गर्भ विभा पर
नाच
रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका
जीवन हरियाली पर
मंगल
कुंकुम सारा।।
Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-85157398175707152682016-12-26T22:30:00.003+05:302016-12-26T22:30:59.282+05:30बाल कहानी - गिरगिट का सपना
- मोहन राकेश
एक गिरगिट था। अच्छा, मोटा-ताजा। काफी हरे
जंगल में रहता था। रहने के लिए एक घने पेड़ के नीचे अच्छी-सी जगह बना रखी थी
उसने। खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। आसपास जीव-जन्तु बहुत मिल जाते थे। फिर भी
वह उदास रहता था। उसका ख्याल था कि उसे कुछ और होना चाहिए था। और हर चीज, हर जीव का अपना एक
रंग था। पर उसका अपना कोई एक रंग था ही नहीं। थोड़ी देर पहले नीले थे, अब हरे हो गए। हरे से
बैंगनी।Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-55766952174793110102016-12-26T22:28:00.001+05:302016-12-26T22:28:19.651+05:30मनोहर अभय के नवगीत
(1)
और तरसाते रहे
कुनवा परस्ती में लगी थी धूप बूढ़ी
कुनमुने किसलय ठगे
फूल थे बासी / और मुरझाते रहे .
नवगीत लिखना चाहते
लिख गए कव्वालियाँ
शर्मसारी पर निरंतर
पिट रही थीं तालियाँ
वे सुरक्षा पंक्ति में / और&Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-14910555920508752152016-12-26T22:19:00.003+05:302016-12-26T22:19:35.259+05:30कहानी - आख़िरी बातचीत
- लू शुन
पिताजी
बहुत मुश्किल से ही साँस ले पा रहे थे। यहाँ तक कि उनकी सीने की धड़कन भी मुझे
सुनाई नहीं दे रही थी। मगर अब शायद ही कोई उनकी कुछ मदद कर सकता था। मैं बार-बार
यही सोच रहा था कि अच्छा हो, यदि वे इसी तरह शान्तिपूर्वक परलोक चले
जाएँ। पर तभी अचानक मुझे लगा कि मुझे इस तरह की बातें नहीं सोचनी चाहिएँ। मुझे ऎसा
लगने लगा मानो मैंने इस तरह की बात सोचकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो। Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-73292046357525039232016-12-24T19:07:00.001+05:302016-12-24T19:07:52.985+05:30सामाजिक दायित्व निर्वहन में समकालीन कविता की भूमिका
- डॉ. गोपाल नारायन
श्रीवास्तव
समाजिक दायित्व के निर्वहन में समकालीन
कविता की भूमिका पर विचार करने के पूर्व यह समझना आवश्यक प्रतीत होता है कि
समकालीन कविता क्या है और सामाजिक दायत्वि क्या है। समकालीन कविता की कोई सार्वभौम
परिभाषा नहीं है। अनेक Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-44321182564341271912016-12-24T18:57:00.004+05:302016-12-24T19:01:15.699+05:30त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलियाँ
(१)
रत्नाकर
सबके लिये, होता एक समान।
बुद्धिमान
मोती चुने, सीप चुने नादान।।
सीप
चुने नादान, अज्ञ मूँगे पर मरता।
जिसकी
जैसी चाह, इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला‘ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं
मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर।।
(२)
धीरे
धीरे समय ही, भर देता है घाव।
मंजिल
पर जा पहुँचती, डगमग होती नाव।।
डगमग
होती नाव, अन्ततः मिले किनारा।
मन
की मिटती पीर, टूटती तम की कारा।
‘ठकुरेला‘ कविरायLokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-20844984876296911982016-12-24T18:55:00.004+05:302016-12-24T18:56:22.262+05:30त्रिलोक सिंह ठकुरेला - परिचय
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
जन्म-तिथि -- 01 -10 -1966
जन्म-स्थान -- नगला मिश्रिया (हाथरस)
पिता -- श्री खमानी सिंह
माता - श्रीमती देवी
प्रकाशित कृतियाँ -- नया सवेरा (बाल-साहित्य)
काव्यगंधा
(कुण्डलिया संग्रह)
सम्पादन -- Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-22768968555821785132016-09-12T21:28:00.000+05:302016-09-12T21:28:03.519+05:30
दिलबाग विर्क
शिक्षा – एम. ए. हिंदी, इतिहास, ज्ञानी, बी.एड., उर्दू में सर्टिफिकेट कोर्स, हिंदी में नेट क्वालीफाइड
कार्यक्षेत्र – अध्यापन, लेक्चरर हिंदी ( स्कूल कैडर )
प्रकाशित पुस्तकें –
हिंदी में -
1. चंद आसूं, चंद अलफ़ाज़ ( गजलनुमा कविताएँ )
2. निर्णय के क्षण ( कविता संग्रह ) – हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकुला के सौजन्य से
3. माला के मोती ( हाइकु संग्रह )
4. आओ संभालें भारत ( षटपदीय ) – हरियाणाLokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-33897779341056041562016-05-25T18:43:00.002+05:302018-05-08T09:30:10.516+05:30जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम :
कैफ़ी आज़मी सभागार, निशातगंज, लखनऊ में जनवादी लेखक संघ के तत्वाधान में वरिष्ठ लेखक एवं संपादक डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवं डॉ संध्या सिंह के कुशल सञ्चालन में बृजेश नीरज की काव्यकृति ‘कोहरा सूरज धूप’ एवं युवा कवि राहुल देव के कविता संग्रह ‘उधेड़बुन’ का लोकार्पण एवं दोनों कृतियों पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया|
कार्यक्रम के आरम्भ में प्रख्यात समाजवादी लेखक डॉ यू.आर. Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-40313839320475820412016-05-25T18:43:00.001+05:302016-05-25T18:43:08.550+05:30जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम :
लखनऊ 24 अगस्त 2014 कैफ़ी आज़मी सभागार, निशातगंज में जनवादी लेखक
संघ के तत्वाधान में वरिष्ठ लेखक एवं संपादक डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव की
अध्यक्षता एवं डॉ संध्या सिंह के कुशल सञ्चालन में बृजेश नीरज की काव्यकृति ‘कोहरा सूरज धूप’ एवं युवा कवि राहुल देव
के कविता संग्रह ‘उधेड़बुन’ का लोकार्पण एवं दोनों कृतियों पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया|
कार्यक्रम
के आरम्भ में प्रख्यात समाजवादी लेखक डॉLokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-64089339024448189572016-05-14T11:27:00.001+05:302017-04-11T19:05:35.351+05:30लोकोदय आलोचना श्रंखला पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है। मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुक, पैकेजिंग और मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर ‘स्पेस क्रिएट’ करने के लिए Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-29805244458339828132016-05-14T11:27:00.000+05:302016-05-14T11:27:08.143+05:30लोकोदय आलोचना श्रंखला
पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी
साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है।
मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल
पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुक, पैकेजिंग और
मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े
के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर ‘स्पेस क्रिएट’ करने के लिएLokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-18518031360394646952016-05-14T11:25:00.003+05:302016-05-14T11:25:38.634+05:30लोकोदय साहित्य श्रंखला
लोकधर्मी साहित्यिक परम्परा से समकाल को जोड़ना
आज के समय की जरूरत है इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा 'लोकोदय साहित्य श्रृंखला' प्रारम्भ करने का निर्णय
लिया गया है। इसके अन्तर्गत लोकधर्मी कविता, लोकगीत, लोककथा, लोककला इत्यादि पर आधारित संकलन प्रकाशित किए जाएँगे। इस श्रृंखला का प्रारम्भ
लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलन के रूप में किया जाएगा।
लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलनों की इस श्रृंखला
का नाम 'कविता Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-63746684781916514752016-05-14T11:24:00.000+05:302017-04-11T19:05:35.369+05:30लोकोदय साहित्य श्रंखला लोकधर्मी साहित्यिक परम्परा से समकाल को जोड़ना आज के समय की जरूरत है इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा 'लोकोदय साहित्य श्रृंखला' प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है। इसके अन्तर्गत लोकधर्मी कविता, लोकगीत, लोककथा, लोककला इत्यादि पर आधारित संकलन प्रकाशित किए जाएँगे। इस श्रृंखला का प्रारम्भ लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलन के रूप में किया जाएगा।लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलनों की इस श्रृंखला का नाम 'कविता आज' Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6849814401940696633.post-27513570711318290182016-04-19T11:33:00.000+05:302017-04-11T19:05:35.384+05:30प्रदीप कुशवाहा की कविता मेरे पन्ने ------------ प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहाजीवन पृष्ठ मेरेहाथों में तेरेखुली किताब की तरहकुछ चिपके पन्ने कह रहेदास्तान पढ़ने कोहै अभी बाक़ीलौट आया हूँ फिरचाहता हूँरुकूँ अभीहवा के तेज झोंकेजीवन पृष्ठों कोतेजी से बदलते हुएचिपका हूँदीवार के साथबूझेगा अब कौनन है मधुशालान उसमे साकी Lokoday Prakashanhttp://www.blogger.com/profile/04254082225227056408noreply@blogger.com0