Tuesday 9 September 2014

डॉ. कन्हैया सिंह का नागरिक सम्मान

हिन्दी भाषा और साहित्य की समृद्धि जिन तपस्वी साधकों की साधना का प्रतिफल है, उनमें डॉ. कन्हैया सिंह का उल्लेखनीय योगदान है। यद्यपि वे महानगरों से सदैव दूर रहे हैं तथापि पाठालोचन, पाठ संपादन तथा पाठानुसंधान में उन्होंने जो कार्य किया है, वो हिन्दी में अतुलनीय है। पाठालोचन सामान्य साहित्य साधना से संभव नहीं है। पाठालोचन केवल वही तपस्वी साधक कर सकता है, जिसको भाषा की प्रकृति तथा उसका सच्चा ज्ञान उसके पास हो। उक्त उद्गार डॉ. कन्हैया सिंह के नागरिक सम्मान के अवसर पर दिनांक 8 दिसम्बर, 2014 को प्रेस क्लब, लखनऊ के सभागार में हिन्दी के महाकवि, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. विनोद चन्द्र पाण्डेय ने व्यक्त किए।
उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह हिन्दी साहित्य पर असाधारण अधिकार रखने के साथ-साथ मध्यकालीन अवधी के अधिकारी विद्वान हैं। उन्होंने हिन्दी जगत को 40 से अधिक समालोचना की पुस्तकों के साथ-साथ शताधिक शोध निबन्ध देकर हिन्दी को प्रतिष्ठित करने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।
पं0 दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान से सम्मनित वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. कन्हैया सिंह ने इस समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि पाठालोचन एक जटिल कार्य है। पाठालोचन के माध्यम से कवि की मूल चेतना तक पहुँचा जा सकता है। कारण यह है कि अनेक ऐसे शब्द कवि की रचनाओं के साथ जुड़ जाते हैं जो मूल अर्थ को अभिव्यक्त करने में सफल नहीं होते। उन्होंने यह भी कहा कि जायसी के काव्य का जो अनुशीलन मैंने किया है वह अनुशीलन पाठालोचन से अनुप्राणित है। अभी जायसी के काव्य में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर गम्भीरता से कार्य किया जाना है। जायसी हिन्दी का ऐसा महाकवि है जो तत्कालीन इतिहास से सीधे टकराता है और भारतीय भूमि से जुड़कर इस्लाम के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी का समुचित विकास तभी होगा जब हिन्दी में मौलिक शोध कार्य सम्पन्न किए जाएँगे।
इस अवसर पर विषय प्रवर्तन करते हुए उद्बोध सेवा न्यास के सर्वराकार श्री शिवमोहन सिंह ने डॉ. कन्हैया सिंह को उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा प्रदत्त पं. दीन दयाल उपाध्याय सम्मान हेतु अपनी हार्दिक बधाईयाँ देते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह हिन्दी के उन्नायक साहित्यकारों में से एक हैं। उनकी हिन्दी साहित्य साधना अतुलनीय है। उन्होंने जिस लगन के साथ हिन्दी साहित्य की सेवा की है उसके उदाहरण कम मिलते हैं। वे साहित्य के मर्मी पाठक होने के साथ-साथ पाठालोचन के प्रतिष्ठित आचार्य हैं। हिन्दी साहित्य की लम्बी परम्परा में जिन मध्यवर्गीय विद्वानों का योगदान है उनमें कन्हैया सिंह जी बराबर याद किए जाएँगे।
इस अवसर पर कन्हैया सिंह जी के सहयोगी रहे डॉ. वेद प्रकाश आर्य ने कहा कि डॉ. सिंह एक अतिशय गम्भीर और कर्मठ साहित्य साधक हैं। उनकी साहित्य साधना उनके नित्य नियमित जीवन-दर्शन का ही प्रतिफल है। शाखा के स्वयंसेवक के रूप में नित्य 3 बजे उठकर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करने के साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत को अमूल्य कृतियाँ दी हैं। उनके समान साहित्य समीक्षा के ग्रन्थ हिन्दी में बहुत कम मिलते हैं।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नेत्रपाल सिंह ने कहा कि यद्यपि डॉ. कन्हैया सिंह से लम्बा परिचय नहीं है, तथापि मैं उनकी कृतियों के माध्यम से उन्हें एक लम्बी अवधि से जान रहा हूँ। मैं यह बात पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल तथा आचार्य राम चन्द्र शुक्ल के बाद जायसी पर डॉ. कन्हैया सिंह से बढ़कर किसी दूसरे विद्वान की गति नहीं दिखाई देती। डॉ. कन्हैया सिंह ने जायसी के काव्य के मर्म को उद्घाटित करने के साथ-साथ जायसी के काव्य में भारतीय संस्कृति के जिन मूल्यवान तत्वों का उद्घाटन किया है वो सराहनीय है। जायसी के साहित्य के साथ-साथ उनका मध्यकालीन अवधि पर भी असाधारण अधिकार है।
इस अवसर पर शब्दितापत्रिका के संरक्षक डॉ. राम कठिन सिंह ने अपने व्यक्तिगत सम्पर्क और संसर्ग के अनेक प्रसंगों को उल्लेख करते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह को इसके पूर्व भी साहित्य महोपाध्याय, साहित्य भूषण, सुब्रह्मण्यम भारती, गणपति सम्मान, हंस सम्मान, साहित्य गरिमा, भोजपुरी शिरोमणि तथा अन्य ऐसे साहित्यिक सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने जब भी डॉ. कन्हैया सिंह के दर्शन किए हैं तब-तब वे साहित्य साधना में लीन मिले। वे ऐसे जिज्ञासु साहित्य साधक हैं, जो हर क्षण किसी न किसी नई विचारधारा को आत्मसात कर उसके अनुरूप साहित्य के मूल्यवान तत्वों की खोज करते हैं।
डॉ. राम कठिन सिंह ने इस समारोह में उपस्थित सभी साहित्यकारों तथा नागरिकों को कृतज्ञता ज्ञापित की।
इस समारोह का समापन विशिष्ट कवियों की संगोष्ठी के साथ सम्पन्न हुआ। कवि गोष्ठी में गीतकार डॉ. सुरेश, रवि मोहन अवस्थी, लोकगीतकार विनम्र सेन, अवनीन्द्र मिश्र, रामकिशोर तिवारी, वेद प्रकाश आर्य, निर्मल दर्शन आदि ने कविता पाठ किया।

प्रस्तुति- राम कठिन सिंह

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