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ISSN : 2349-7122

Sunday, 28 September 2014

नाजिम हिकमत की कविताएँ

नाजिम हिकमत

आशावाद
कविताएँ लिखता हूँ मैं
वे छप नहीं पातीं
लेकिन छपेंगी वे.
मैं इंतजार कर रहा हूँ खुश-खैरियत भरे खत का
शायद वो उसी दिन पहुँचे जिस दिन मेरी मौत हो
लेकिन लाजिम है कि वो आएगा.
दुनिया पर सरकारों और पैसे की नहीं
बल्कि अवाम की हुकूमत होगी
अब से सौ साल बाद ही सही
लेकिन ये होगा ज़रूर.
(अंग्रेजी से अनुवाद- दिगम्बर)

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ

घुटनों के बल बैठा-
मैं निहार रहा हूँ धरती,
घास,
कीट-पतंग,
नीले फूलों से लदी छोटी टहनियाँ.
तुम बसंत की धरती हो, मेरी प्रिया,
मैं तुम्हें निहार रहा हूँ.
पीठ के बल लेटा-
मैं देख रहा हूँ आकाश,
पेड़ की डालियाँ,
उड़ान भरते सारस,
एक जागृत सपना.
तुम बसंत के आकाश की तरह हो, मेरी प्रिया,
मैं तुम्हें देख रहा हूँ.
रात में जलाता हूँ अलाव-
छूता हूँ आग,
पानी,
पोशाक,
चाँदी.
तुम सितारों के नीचे जलती आग जैसी हो,
मैं तुम्हें छू रहा हूँ.
मैं काम करता हूँ जनता के बीच-
प्यार करता हूँ जनता से,
कार्रवाई से,
विचार से,
संघर्ष से.
तुम एक शख्शियत हो मेरे संघर्ष में,
मैं तुम से प्यार करता हूँ.
(अनुवाद- दिगम्बर)

जीने के बारे में

जीना कोई हंसी-मजाक नहीं,
तुम्हें पूरी संजीदगी से जीना चाहिए
मसलन, किसी गिलहरी की तरह
मेरा मतलब जिंदगी से परे और उससे ऊपर
किसी भी चीज की तलाश किये बगैर.
मतलब जिना तुम्हारा मुकम्मल कारोबार होना चाहिए.
जीना कोई मजाक नहीं,
इसे पूरी संजीदगी से लेना चाहिए,
इतना और इस हद तक
कि मसलन, तुम्हारे हाथ बंधे हों पीठ के पीछे
पीठ सटी हो दीवार से,
या फिर किसी लेबोरेटरी के अंदर
सफ़ेद कोट और हिफाज़ती चश्मे में ही,
तुम मर सकते हो लोगों के लिए
उन लोगों के लिए भी जिनसे कभी रूबरू नहीं हुए,
हालांकि तुम्हे पता है जिंदगी
सबसे असली, सबसे खूबसूरत शै है.
मतलब, तुम्हें जिंदगी को इतनी ही संजीदगी से लेना है
कि मिसाल के लिए, सत्तर की उम्र में भी
तुम रोपो जैतून के पेड़
और वह भी महज अपने बच्चों की खातिर नहीं,
बल्कि इसलिए कि भले ही तुम डरते हो मौत से
मगर यकीन नहीं करते उस पर,
क्योंकि जिन्दा रहना, मेरे ख्याल से, मौत से कहीं भारी है.
ll
मान लो कि तुम बहुत ही बीमार हो, तुम्हें सर्जरी की जरूरत है
कहने का मतलब उस सफ़ेद टेबुल से
शायद उठ भी न पाओ.
हालाँकि ये मुमकिन नहीं कि हम दुखी न हों
थोड़ा पहले गुजर जाने को लेकर,
फिर भी हम लतीफे सुन कर हँसेंगे,
खिड़की से झांक कर बारीश का नजारा लेंगे
या बेचैनी से
ताज़ा समाचारों का इंतज़ार करेंगे….
फर्ज करो हम किसी मोर्चे पर हैं
रख लो, किसी अहम चीज की खातिर.
उसी वक्त वहाँ पहला भारी हमला हो,
मुमकिन है हम औंधे मुंह गिरें, मौत के मुंह में.
अजीब गुस्से के साथ, हम जानेंगे इसके बारे में,
लेकिन फिर भी हम फिक्रमंद होंगे मौत को लेकर
जंग के नतीजों को लेकर, जो सालों चलता रहेगा.
फर्ज करो हम कैदखाने में हों
और वाह भी तक़रीबन पचास की उम्र में,
और रख लो, लोहे के दरवाजे खुलने में
अभी अठारह साल और बाकी हों.
फिर भी हम जियेंगे बाहरी दुनिया के साथ,
वहाँ के लोगों और जानवरों, जद्दोजहद और हवा के बीच
मतलब दीवारों से परे बाहर की दुनिया में,
मतलब, हम जहाँ और जिस हाल में हों,
हमें इस तरह जीना चाहिए जैसे हम कभी मरेंगे ही नहीं.
यह धरती ठंडी हो जायेगी,
तारों के बीच एक तारा
और सबसे छोटे तारों में से एक,
नीले मखमल पर टंका सुनहरा बूटा
मेरा मतलब है, यह गजब की धरती हमारी.
यह धरती ठंडी हो जायेगी एक दिन,
बर्फ की एक सिल्ली के मानिंद नहीं
या किसी मरे हुए बादल की तरह भी नहीं
बल्कि एक खोंखले अखरोट की तरह चारों ओर लुढकेगी
गहरे काले आकाश में
इस बात के लिये इसी वक्त मातम करना चाहिए तुम्हें
इस दुःख को इसी वक्त महसूस करना होगा तुम्हें
क्योंकि दुनिया को इस हद तक प्यार करना जरुरी है
अगर तुम कहने जा रहे हो कि मैंने जिंदगी जी है”…

(अनुवाद दिगंबर)

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