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Tuesday 19 April 2016

लघुकथा- प्रतीक्षा

                                                                          - श्रीप्रकाश
जाड़े के दिन थे और शाम का समय था। मैं जिस मकान में रहता था उसके सामने ही मेरे परिचितों की चप्पल-जूते की दुकानें थीं। मैं भी कभी-कभी मन बहलाने के उद्देश्य से उन दुकानों पर बैठा करता था। उस दिन जब मैं एक दूकान पर बैठा था, ग्राहकों की भीड़ थी। सहसा उसी भीड़ में से एक गोरे-चिट्टे आदमी ने चप्पल की डिमांड की। कई जोड़ी चप्पल देखने के उपरांत उसने दाम ज्यादा होने की वजह से चप्पल नहीं खरीदी और कुछ देर यूँ ही बैठा रहा। शक्ल-सूरत देखकर मैंने अनुमान लगाते हुए पूछा, ‘क्या आप अध्यापक हैं?’ उसने हाँ में उत्तर दिया और अपने को भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के संगीत शिक्षक के रूप में अपना पूरा परिचय दिया।
शिक्षक होने के नाते मैं उसे अपने कमरे पर लाया और यथासामर्थ्य आवभगत की। उसने बात ही बात में कहा- ‘कल मुझे एक संगीत के कार्यक्रम में कानपुर जाना है किन्तु मेरी मौजूदा चप्पल टूटी होने के कारण कार्यक्रम में जाना उचित नहीं लगता। मैंने मानवीयता को ध्यान में रखते हुए अपनी कुछ दिन पहले खरीदी गयी नई चप्पल दे दी। उसने संकोच के साथ चप्पल पहन ली; और दो दिन बाद आने पर नई चप्पल ले लूँगा तब आपकी चप्पल वापस कर दूंगा, इस वायदे के साथ उसने अपनी पुरानी चप्पल कमरे पर छोड़ दी और मेरी चप्पल पहन कर चला गया।
मैं बाहर तक उसको विदा करने आया। चूँकि वह वय में मुझसे बड़ा था और अपने को ब्राह्मण बताया इसलिए मैंने चरणस्पर्श कर उसको विदा किया।
किन्तु मैं आज तक उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ!
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संपर्क- 9/48 साहित्य सदन, कोतवाली मार्ग, महमूदाबाद (अवध), सीतापुर 261203

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