Wednesday 17 September 2014

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : अगस्त 2014




सन्निधि संगोष्ठी अंक : 17
दिनाँक / माह :  31 अगस्त रविवार 2014
विषय :  सोशल मीडिया और लेखन

 



नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के मकसद से पिछले पंद्रह महीने से लगातार संचालित की जाने वाली संगोष्ठी इस बार ‘सोशल मीडिया और लेखन’ विषय पर केंद्रित थी। ये संगोष्ठी 31 अगस्त रविवार सन्निधि सभागार में डॉ. विमलेश कांति वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी अकादमी, दिल्ली, की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुई .......

स्वागत भाषण के दौरान विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने घोषणा की कि विष्णु प्रबाकर की स्मृति में जो सम्मान शुरू किया गया है, वह अब हर साल दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसी के साथ दिसबंर में काका कालेलकर के जन्मदिन पर भी काका कालेलकर सम्मान दिए जाएंगे।

संगोष्ठी के संचालक और वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि सोशल मीडिया का दायरा केवल संपन्न और पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित है लेकिन यहां संकीर्ण सोच के कारण उत्पन्न त्रासदी की चपेट में वे लोग भी आ जाते हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं होता।

विषय प्रवेशक के रूप में शिवानंद द्विवेदी सेहर ने अपने वक्तव्य में कहा कि फेसबुक और ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मायने दिए लेकिन सोचनीय ये है, कि हम उस स्वतंत्रता का उपयोग कैसे करते है ? सोशल मीडिया के माध्यम से संपादक जो मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे उनके बीच से हट जाने से सीधे अपनी बात कहने और रखने की स्वतंत्रता मिली लेखक को, वो खुलकर बिना काट छांट के अपनी बात कह सकता है, सोशल मीडिया पर लेखन की शुरुआत से होने से संपादकीय नाम की संस्था ध्वस्त हो गई। लेखन उनके दायरे से मुक्त हो गया है।

वहीँ मनोज भावुक जी ने कहा कि सोशल मीडिया पर भी अनुशासन की जरूरत है, अभिव्यकित की जो आज़ादी है वो खतरा ना पैदा करे, संपादक का ना होना वरदान बिलकुल नहीं है, संपादक जब काट छांट करता है तो वो एक लेखक की कला में निखार लाता है, और यहाँ जब संपादक बीच में नहीं है तो हर व्यक्ति दो लाइन लिखकर खुद को एक लेखक या कवि की श्रेणी में रख गौरान्वित महसूस करता है, सोशल मीडिया ने जहां अभिव्यक्ति का मौका दिया है , वहीं लोग भी इसके कारण एक-दूसरे के करीब आए हैं, मैं जब युगांडा जैसी जगह में था तो अपने क्षेत्र के लोगो को ढूँढने में सोशल मीडिया ने और मैंने वहां युगांडा भोजपुरी एसोसिएशन की स्थापना की, तो जनाब ये मीडिया की ताक़त है लेकिन बात यहाँ ताक़त की नहीं नियंत्रण की है .......

अलका सिंह जी ने कहा सोशल मीडिया जहाँ स्त्रियों का शोषण करता है वहीँ शैलजा पाठक जैसी अच्छी लेखिका को प्रोत्साहन भी देता है, सोशल मीडिया ने स्त्रियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ! सोशल मीडिया आज जिस दौर से गुजर रहा है वहां हमें बहुत सी चीजों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है ! जरुरत है आज सोशल मिडिया की दिशा तय करने की आज जो ज्वलंत मुद्दे है उन्हें कैसे स्थान दिया जाए सोशल मीडिया पर ये जानना जरुरी सबसे !
पारुल जैन ने भी स्त्री पक्ष को ही प्रधान रूप में रखकर बात रखी अपनी उन्होंने कहा यहाँ जो वैचारिक स्वतंत्रता मिली है उसका दुरूपयोग ना हो इसको ध्यान में रख चलना है सबको ! शिरेश ने सत्ता के विकेंद्रीकरण को केंद्र में रखकर अपनी बात शुरू की और बहुत हद तक सही दिशा में अपनी बात को रखा ....

शुभुनाथ शुक्ल जी ने अपने वक्तव्य में कहा सोशल मीडिया और लेखन पर यहाँ तमाम सवाल उठाये गए, मैंने जब 30 साल पहले जब जनसत्ता ज्वाइन किया तब जनसत्ता एक नया प्रयोग था, उसमे पाठकीय पत्र के लिए एक मंच रखा गया जिसका नाम था चौपाल, चौपाल पर इतने पत्र आते थे चौपाल भर जाती थी, सेंकडो पत्र एक ही इशू पर आते थे, हमें कई बार पत्रों को एडिट करना पड़ता था और कई बार रोकना भी पड़ता था, लेकिन आज फेसबुक जैसी संस्था के आने से संपादक जैसी संस्था हट गई है, अब आप अपने मन से जो चाहे लिख सकते है, इसके लाभ भी है और दुर्गुण भी, समाज बनता है लोगो से उनकी सोच से उनके विचारों से, लिखने पढने में गर आपको असीमित वर्ग तक पहुच बनानी है, तो फेसबुक एक शसक्त माध्यम है उसके लिए, और मैंने इसका भरपूर उपयोग किया अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए, इसमें कोई शक नहीं की फेसबुक ने एक नया आयाम दिया है ! राजनेताओं ने फेसबुक का सबसे सही और भरपूर इस्तेमाल किया है ! तो यहाँ असली लेखक वहीं है जो राजनेताओं के प्रभाव से मुक्त हो और इस मंच से अपनी बात जिस तरह से कहना चाहता है कह सके !

पद्मा सचदेव जी ने अपने वक्तव्य में कहा मुझे यहाँ आकर अच्छा इसीलिए लग रहा है यहाँ उपस्थित सभी लोग उसी तरह एकत्र है जैसे आग तापने को लोग इकठ्ठा होते है और सार्थक चर्चा करते है, सोशल मीडिया और लेखन दोनों ही अलग विधाए है, सोशल मीडिया का आज बोलबाला है, सोशल मीडिया में जितने माध्यम है उनकी अपनी अलग ताक़त है, और लिखा हुआ वो जब चाहे बदल भी सकते है, और पुनर्विचार भी कर सकते है, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में कभी कभी सच पूरी तरह उजागर नहीं होता. पर जो भी जितना भर होता है उसका असर तुरंत होता है, सोशल मीडिया में लोगो को भड़काने का काम नहीं होना चाहिए, खबरे तोड़ मरोड़ कर ना दी जाए, भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए, मिडिया की शक्ति का सदुपयोग हो ये सबसे जरुरी है, पहले एक समय में बलात्कार जैसी घटनाएं होती थी, तो उन्हें दबा दिया जाता था, लेकिन आज ऐसी खबरों को छिपाया नहीं जाता बहुत तीव्र प्रतिक्रिया आती है, एक नई सोच नई क्रांति दिखती है, रहा लेखन तो लेखन आपको हमेशा लपेटे रखता है, जाने कब वो लम्हा आ जाए जब आप कुछ लिख पाए, लेखन मिडिया से अलग एक रचनात्मक क्रिया है, कभी यूँ भी लगता है ये एक लम्हा है, जो आपके पास आता है एक छोटे बच्चे की तरह और आँचल पकड़ आपके साथ साथ चलता है, इस लम्हे में आप जितना डूबते है उतनी रचना भीगी हुई होती है, उस लम्हे का इंतज़ार लेखक हमेशा करता है, ये मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ कविता आपके पास आती है , उसमे थोड़ी सोच आप लाते है लेकिन कविता आपके अन्दर जो बहुत समय से घुमड़ता है उसकी देन होती है ! आजकल मुक्त छंद या अजान पहर की कविता प्रचलन में है, पहले हम छंद युक्त कविताएं ही लिखते थे जिसमे मेहनत अधिक थी, कविता खुद अपने आप ही जन्मती है इसे एक शेर के साथ कह अपनी बात ख़त्म करुँगी ..........
कि टूट जाते है कभी मेरे किनारे मुझमे
डूब जाता है कभी मुझमे समंदर मेरा ............

डॉ विमलेश कांति ने अपने वक्तव्य में कहा आज मुझे यहाँ आकर बहुत सुखद अनुभूति हो रही है यहाँ आज नए मीडियाकर्मी और नई पीढ़ी के लोग अपनी बात कह रहे है हम वृद्ध लोगो के समक्ष ये अच्छी बात है, ईश्वर ने हमें एक मूह दो कान दिए है शायद इसीलिए हम कम बोले और अधिक सुने, गांधी जी भी यहीं कहते थे, मीडिया और लेखन दो ऐसे विषय है, उनमे शक्ति अपरिमित है, लेकिन शक्ति का नियत्रण कैसे हो ? कैसे हम उसे सही मार्ग पर ले जाए, ये सोचने की बात है !

कार्यक्रम का संचालन किरण आर्या और अरुन शर्मा अनंत ने किया। इंडिया अनलिमिटेड की संपादक ज्योत्सना भट्ट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर उपलब्धियों और प्रोत्साहन के लिए भोपाल के डा सौरभ मालवीय(पत्रकारिता), भागलपुर के मनोज सिन्हा(फोटो पत्रकारिता)और साहित्य के लिए प्रज्ञा तिवारी, राजेंद्र सिंह कुंवर फरियादी और कौशल उप्रेती विष्णु प्रभाकर सम्मान से सम्मानित किए गए। इन सभी को ये सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि पदमा सचदेव और साहित्यकार गंगेश गुंजन ने दिया।


प्रस्तुति : किरण आर्या

Tuesday 16 September 2014

संकलन व विशेषांक

शब्द व्यंजनाहिन्दी साहित्य की मासिक ई-पत्रिका है जो हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए दृढ़ संकल्पित है. पत्रिका ने लगातार यह प्रयास किया है कि हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ रचनाकारों के श्रेष्ठ साहित्य से पाठकों को रू-ब-रू कराने के साथ नए रचनाकारों को भी मंच प्रदान करे. नियमित मासिक प्रकाशन के साथ ही पत्रिका समय-समय पर विधा-विशेष तथा विषय-विशेष पर आधारित विशेषांक भी प्रकाशित करेगी जिससे कि उस क्षेत्र में कार्यरत रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाया जा सके. इस तरह के विशेषांक में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं को पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करने का प्रयास होगा.

इसी क्रम में शब्द व्यंजना का नवम्बर अंक कविता विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा. साथ ही, इस अंक में सम्मिलित रचनाकारों की अतुकांत कविताओं का संग्रह पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करना प्रस्तावित है. यह कविता संकलन सारांश समय का नाम से प्रकाशित होगा.

पत्रिका अभी अपने शुरुआती दौर में है और व्यासायिक न होने के कारण अभी पत्रिका के पास ऐसा कोई स्रोत नहीं है जिससे पुस्तक-प्रकाशन के खर्च को वहन किया जा सके इसलिए यह कविता-संग्रह (पुस्तक) रचनाकारों से सहयोग राशि लेकर प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रस्ताव-
कविता-संग्रह में ५० रचनाकारों को सम्मिलित किया जाना प्रस्तावित है.
कविता संग्रह २५६ पेज का होगा. जिसमें प्रत्येक रचनाकार को ४ पेज प्रदान किए जाएँगे.
सहयोग राशि के रूप में रचनाकार को डाक खर्च सहित तीन प्रतियों के मूल्य के रूप में रु० ५५०/- का भुगतान करना होगा.
प्रत्येक रचनाकार को कविता-संग्रह की ३ प्रतियाँ प्रदान की जाएँगी.
इस संग्रह में सम्मिलित होने के लिए रचनाकार अपनी १० अतुकांत कविताएँ, अपने परिचय और फोटो के साथ २० सितम्बर तक इस ई-मेल पते पर भेज सकते हैं-
रचनाएँ भेजते समय शीर्षक संकलन हेतु अवश्य लिखें. यह सुनिशिचित कर लें कि रचनाओं का आकर इतना हो कि ४ पेज में अधिक से अधिक रचनाएँ सम्मिलित की जा सकें. बहुत लम्बी अतुकांत रचनाएँ न भेजें.
इन १० रचनाओं में से संग्रह में प्रकाशित करने हेतु रचनाएँ चयनित की जाएँगी. शेष रचनाओं में से विशेषांक हेतु रचनाओं का चयन किया जाएगा. चयनित रचनाओं के विषय में प्रत्येक रचनाकार को सूचित किया जाएगा.
संग्रह में रचनाकार को वयानुसार स्थान प्रदान किया जाएगा.
संग्रह का लोकार्पण लखनऊ, इलाहाबाद अथवा दिल्ली में किया जाएगा. इस संग्रह का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा तथा समीक्षा कराई जाएगी जिससे रचनाकारों के रचनाकर्म का मूल्यांकन हो सके. संग्रह में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन अन्य सहयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भी सुनिश्चित किया जाएगा जिसकी सूचना रचनाकार को प्रदान की जाएगी. रचनाकारों के रचनाकर्म का व्यापक प्रचार इन्टरनेट की विभिन्न साइटों और ब्लॉग पर भी किया जाएगा.

सहयोग राशि का भुगतान रचनाकार को रचना चयन के उपरान्त करना होगा जिसके सम्बन्ध में रचनाकार को सूचना प्रदान की जाएगी.

संकलन व विशेषांक

शब्द व्यंजना हिन्दी साहित्य की मासिक ई-पत्रिका है जो हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए दृढ़ संकल्पित है. पत्रिका ने लगातार यह प्रयास किया है कि हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ रचनाकारों के श्रेष्ठ साहित्य से पाठकों को रू-ब-रू कराने के साथ नए रचनाकारों को भी मंच प्रदान करे. नियमित मासिक प्रकाशन के साथ ही पत्रिका समय-समय पर विधा-विशेष तथा विषय-विशेष पर आधारित विशेषांक भी प्रकाशित करेगी जिससे कि उस क्षेत्र में कार्यरत रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाया जा सके. इस तरह के विशेषांक में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं को पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करने का प्रयास होगा.

इसी क्रम में शब्द व्यंजना का नवम्बर अंक कविता विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा. साथ ही, इस अंक में सम्मिलित रचनाकारों की अतुकांत कविताओं का संग्रह पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करना प्रस्तावित है. यह कविता संकलन सारांश समय का नाम से प्रकाशित होगा.

पत्रिका अभी अपने शुरुआती दौर में है और व्यासायिक न होने के कारण अभी पत्रिका के पास ऐसा कोई स्रोत नहीं है जिससे पुस्तक-प्रकाशन के खर्च को वहन किया जा सके इसलिए यह कविता-संग्रह (पुस्तक) रचनाकारों से सहयोग राशि लेकर प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रस्ताव-
कविता-संग्रह में ५० रचनाकारों को सम्मिलित किया जाना प्रस्तावित है.
कविता संग्रह २५६ पेज का होगा. जिसमें प्रत्येक रचनाकार को ४ पेज प्रदान किए जाएँगे.
सहयोग राशि के रूप में रचनाकार को डाक खर्च सहित तीन प्रतियों के मूल्य के रूप में रु० ५५०/- का भुगतान करना होगा.
प्रत्येक रचनाकार को कविता-संग्रह की ३ प्रतियाँ प्रदान की जाएँगी.
इस संग्रह में सम्मिलित होने के लिए रचनाकार अपनी १० अतुकांत कविताएँ, अपने परिचय और फोटो के साथ २० सितम्बर तक इस ई-मेल पते पर भेज सकते हैं-
रचनाएँ भेजते समय शीर्षक संकलन हेतु अवश्य लिखें. यह सुनिशिचित कर लें कि रचनाओं का आकर इतना हो कि ४ पेज में अधिक से अधिक रचनाएँ सम्मिलित की जा सकें. बहुत लम्बी अतुकांत रचनाएँ न भेजें.
इन १० रचनाओं में से संग्रह में प्रकाशित करने हेतु रचनाएँ चयनित की जाएँगी. शेष रचनाओं में से विशेषांक हेतु रचनाओं का चयन किया जाएगा. चयनित रचनाओं के विषय में प्रत्येक रचनाकार को सूचित किया जाएगा.
संग्रह में रचनाकार को वयानुसार स्थान प्रदान किया जाएगा.
संग्रह का लोकार्पण लखनऊ, इलाहाबाद अथवा दिल्ली में किया जाएगा. इस संग्रह का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा तथा समीक्षा कराई जाएगी जिससे रचनाकारों के रचनाकर्म का मूल्यांकन हो सके. संग्रह में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन अन्य सहयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भी सुनिश्चित किया जाएगा जिसकी सूचना रचनाकार को प्रदान की जाएगी. रचनाकारों के रचनाकर्म का व्यापक प्रचार इन्टरनेट की विभिन्न साइटों और ब्लॉग पर भी किया जाएगा.

सहयोग राशि का भुगतान रचनाकार को रचना चयन के उपरान्त करना होगा जिसके सम्बन्ध में रचनाकार को सूचना प्रदान की जाएगी.

Sunday 14 September 2014

जलेस द्वारा आयोजित लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम


24 अगस्त 2014 को कैफ़ी आज़मी सभागार, निशातगंज, लखनऊ में जनवादी लेखक संघ की लखनऊ इकाई के तत्वाधान में वरिष्ठ लेखक एवं संपादक डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवं डॉ संध्या सिंह के कुशल सञ्चालन में कवि बृजेश नीरज की काव्यकृति कोहरा सूरज धूपएवं युवा कवि राहुल देव के कविता संग्रह उधेड़बुनका लोकार्पण एवं दोनों कृतियों पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

कार्यक्रम में सर्वप्रथम प्रख्यात समाजवादी लेखक डॉ यू.आर. अनंतमूर्ति को उनके निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी। मंचासीन अतिथियों में कवि एवं आलोचक डॉ अनिल त्रिपाठी, जलेस अध्यक्ष डा अली बाकर जैदी, लेखक चंद्रेश्वर, युवा आलोचक अजित प्रियदर्शी ने कार्यक्रम में दोनों कवियों की कविताओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। परिचर्चा में सर्वप्रथम कवयित्री सुशीला पुरी ने क्रमशः बृजेश नीरज एवं राहुल देव के जीवन परिचय एवं रचनायात्रा पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात राहुल देव ने अपने काव्यपाठ में भ्रष्टाचारम उवाच’, ‘अक्स में मैं और मेरा शहर’, ‘हारा हुआ आदमी’, ‘नशा’, ‘मेरे सृजक तू बताशीर्षक कविताओं का वाचन किया। बृजेश नीरज ने अपने काव्यपाठ में तीन शब्द’, ‘क्या लिखूं’, ‘चेहरा’, ‘दीवारकविताओं का पाठ किया।

परिचर्चा में युवा आलोचक अजित प्रियदर्शी ने राहुल देव की कविताओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि इनकी कविताओं में प्रश्नों की व्यापकता की अनुभूति होती है। यही प्रश्न उनकी उधेड़बुन को प्रकट करते हैं। राहुल अपनी छोटी कविताओं में अधिक सशक्त हैं। राहुल अपनी कविताओं में जीवन को जीने का प्रयास करते हैं। डॉ अनिल त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में सर्वप्रथम श्री बृजेश नीरज की रचनाधर्मिता पर अपने विचार प्रकट किए- बृजेश नीरज की कृति समकालीन कविता के दौर की विशिष्ट उपलब्धि है। उनकी कविताओं में लय, कहन, लेखन की शैली दृष्टिगोचर होती है। वे अपना मुहावरा स्वयं गढ़ते हैं। इस काव्य संग्रह का आना इत्तेफ़ाक हो सकता है किन्तु अब यह समकालीन हिंदी कविता की आवश्यकता है। राहुल की छोटी कविताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। समीक्षक चंद्रेश्वर ने कहा कि राहुल देव की कविताओं में तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग खटकता है। राहुल ने अपनी कविताओं में शब्दों को अधिक खर्च किया है, उन्हें इतना उदार नहीं होना चाहिए। कहीं-कहीं पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग हिंदी साहित्य में भाषा की विडंबना को परिलक्षित करता है। बृजेश नीरज संक्षिप्तता के कवि हैं, प्रभावशाली हैं। अपनी पत्नी के नाम को अपने नाम के साथ जोड़कर उन्होंने एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाधर्मिता सराहनीय है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम संयोजक डॉ नलिन रंजन सिंह को साधुवाद देते हुए कहा कि जब मानवीय संवेदनाएं सूखती जा रही हैं ऐसे समय में ऐसी सार्थक बहस का आयोजन एक ऐतिहासिक क्षण है जिसमें श्री नरेश सक्सेना और श्री विनोद दास जैसे गणमान्य साहित्यकार भी उपस्थित हों। राहुल की कृति उधेड़बुनएक युवा कवि के अंतस का प्रतिबिम्ब है। एक छटपटाहट लिए यह संग्रह एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यह समाज के बनावटी जीवन को उद्घाटित करता है। उधेड़बुनरोमांटिक प्रोटेस्ट का कविता संग्रह है। बृजेश नीरज की कृति कोहरा, सूरज, धूपमें गंभीरता है। यह एक ऐसे सत्य की खोज़ है जिसमें जीवन के उच्चतर आदर्शों की उद्दामता है, मानवतावाद का बोध कराने की सामर्थ्य है। आज के सन्दर्भों में यह दोनों कृतियाँ महत्त्वपूर्ण और पठनीय हैं।


अंत में धन्यवाद ज्ञापन डा अली बाकर जैदी ने किया। कार्यक्रम में नरेश सक्सेना, संध्या सिंह, किरण सिंह, दिव्या शुक्ला, विजय पुष्पम पाठक, डॉ कैलाश निगम, एस.सी. ब्रह्मचारी, रामशंकर वर्मा, कौशल किशोर, अनीता श्रीवास्तव, नसीम साकेती, प्रताप दीक्षित, भगवान स्वरुप कटियार, एस के मेहँदी, डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव, प्रदीप सिंह कुशवाहा, हेमंत कुमार, मनोज शुक्ल, केवल प्रसाद सत्यम, धीरज मिश्र, हफीज किदवई, सूरज सिंह सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्ति एवं साहित्यकार उपस्थित रहे।

दो मुक्तक

 मनोज शुक्ल "मनुज"

जाति धर्म से बढ़कर जिसको प्रिय है देश वही नेता है


जिसके मन में लालच, भय न रहा अवशेष वही नेता है



जो नेता सुभाष, आजाद, भगत सी कुर्बानी दे सकता हो



जो विकास, सुख, शांति का ले आये सन्देश वही नेता है 




मन्दिर मन्दिर, मस्जिद मस्जिद ढूँढा मुझको ना धर्म मिला 


टहला घूमा मैं धर्म नगर मुझको न कृष्ण का कर्म मिला



धार्मिक उन्मादों दंगों ने जाने कितने जीवन निगले 



मुझको तो मानवता में ही मानव जीवन का मर्म मिला 






Tuesday 9 September 2014

डॉ. कन्हैया सिंह का नागरिक सम्मान

हिन्दी भाषा और साहित्य की समृद्धि जिन तपस्वी साधकों की साधना का प्रतिफल है, उनमें डॉ. कन्हैया सिंह का उल्लेखनीय योगदान है। यद्यपि वे महानगरों से सदैव दूर रहे हैं तथापि पाठालोचन, पाठ संपादन तथा पाठानुसंधान में उन्होंने जो कार्य किया है, वो हिन्दी में अतुलनीय है। पाठालोचन सामान्य साहित्य साधना से संभव नहीं है। पाठालोचन केवल वही तपस्वी साधक कर सकता है, जिसको भाषा की प्रकृति तथा उसका सच्चा ज्ञान उसके पास हो। उक्त उद्गार डॉ. कन्हैया सिंह के नागरिक सम्मान के अवसर पर दिनांक 8 दिसम्बर, 2014 को प्रेस क्लब, लखनऊ के सभागार में हिन्दी के महाकवि, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. विनोद चन्द्र पाण्डेय ने व्यक्त किए।
उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह हिन्दी साहित्य पर असाधारण अधिकार रखने के साथ-साथ मध्यकालीन अवधी के अधिकारी विद्वान हैं। उन्होंने हिन्दी जगत को 40 से अधिक समालोचना की पुस्तकों के साथ-साथ शताधिक शोध निबन्ध देकर हिन्दी को प्रतिष्ठित करने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।
पं0 दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान से सम्मनित वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. कन्हैया सिंह ने इस समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि पाठालोचन एक जटिल कार्य है। पाठालोचन के माध्यम से कवि की मूल चेतना तक पहुँचा जा सकता है। कारण यह है कि अनेक ऐसे शब्द कवि की रचनाओं के साथ जुड़ जाते हैं जो मूल अर्थ को अभिव्यक्त करने में सफल नहीं होते। उन्होंने यह भी कहा कि जायसी के काव्य का जो अनुशीलन मैंने किया है वह अनुशीलन पाठालोचन से अनुप्राणित है। अभी जायसी के काव्य में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर गम्भीरता से कार्य किया जाना है। जायसी हिन्दी का ऐसा महाकवि है जो तत्कालीन इतिहास से सीधे टकराता है और भारतीय भूमि से जुड़कर इस्लाम के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी का समुचित विकास तभी होगा जब हिन्दी में मौलिक शोध कार्य सम्पन्न किए जाएँगे।
इस अवसर पर विषय प्रवर्तन करते हुए उद्बोध सेवा न्यास के सर्वराकार श्री शिवमोहन सिंह ने डॉ. कन्हैया सिंह को उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा प्रदत्त पं. दीन दयाल उपाध्याय सम्मान हेतु अपनी हार्दिक बधाईयाँ देते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह हिन्दी के उन्नायक साहित्यकारों में से एक हैं। उनकी हिन्दी साहित्य साधना अतुलनीय है। उन्होंने जिस लगन के साथ हिन्दी साहित्य की सेवा की है उसके उदाहरण कम मिलते हैं। वे साहित्य के मर्मी पाठक होने के साथ-साथ पाठालोचन के प्रतिष्ठित आचार्य हैं। हिन्दी साहित्य की लम्बी परम्परा में जिन मध्यवर्गीय विद्वानों का योगदान है उनमें कन्हैया सिंह जी बराबर याद किए जाएँगे।
इस अवसर पर कन्हैया सिंह जी के सहयोगी रहे डॉ. वेद प्रकाश आर्य ने कहा कि डॉ. सिंह एक अतिशय गम्भीर और कर्मठ साहित्य साधक हैं। उनकी साहित्य साधना उनके नित्य नियमित जीवन-दर्शन का ही प्रतिफल है। शाखा के स्वयंसेवक के रूप में नित्य 3 बजे उठकर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करने के साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत को अमूल्य कृतियाँ दी हैं। उनके समान साहित्य समीक्षा के ग्रन्थ हिन्दी में बहुत कम मिलते हैं।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नेत्रपाल सिंह ने कहा कि यद्यपि डॉ. कन्हैया सिंह से लम्बा परिचय नहीं है, तथापि मैं उनकी कृतियों के माध्यम से उन्हें एक लम्बी अवधि से जान रहा हूँ। मैं यह बात पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल तथा आचार्य राम चन्द्र शुक्ल के बाद जायसी पर डॉ. कन्हैया सिंह से बढ़कर किसी दूसरे विद्वान की गति नहीं दिखाई देती। डॉ. कन्हैया सिंह ने जायसी के काव्य के मर्म को उद्घाटित करने के साथ-साथ जायसी के काव्य में भारतीय संस्कृति के जिन मूल्यवान तत्वों का उद्घाटन किया है वो सराहनीय है। जायसी के साहित्य के साथ-साथ उनका मध्यकालीन अवधि पर भी असाधारण अधिकार है।
इस अवसर पर शब्दितापत्रिका के संरक्षक डॉ. राम कठिन सिंह ने अपने व्यक्तिगत सम्पर्क और संसर्ग के अनेक प्रसंगों को उल्लेख करते हुए कहा कि डॉ. कन्हैया सिंह को इसके पूर्व भी साहित्य महोपाध्याय, साहित्य भूषण, सुब्रह्मण्यम भारती, गणपति सम्मान, हंस सम्मान, साहित्य गरिमा, भोजपुरी शिरोमणि तथा अन्य ऐसे साहित्यिक सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने जब भी डॉ. कन्हैया सिंह के दर्शन किए हैं तब-तब वे साहित्य साधना में लीन मिले। वे ऐसे जिज्ञासु साहित्य साधक हैं, जो हर क्षण किसी न किसी नई विचारधारा को आत्मसात कर उसके अनुरूप साहित्य के मूल्यवान तत्वों की खोज करते हैं।
डॉ. राम कठिन सिंह ने इस समारोह में उपस्थित सभी साहित्यकारों तथा नागरिकों को कृतज्ञता ज्ञापित की।
इस समारोह का समापन विशिष्ट कवियों की संगोष्ठी के साथ सम्पन्न हुआ। कवि गोष्ठी में गीतकार डॉ. सुरेश, रवि मोहन अवस्थी, लोकगीतकार विनम्र सेन, अवनीन्द्र मिश्र, रामकिशोर तिवारी, वेद प्रकाश आर्य, निर्मल दर्शन आदि ने कविता पाठ किया।

प्रस्तुति- राम कठिन सिंह

रचनाकार- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

त्रिलोक  सिंह ठकुरेला

परिचय 
जन्म-तिथि --   01 -10 -1966
जन्म-स्थान --  नगला मिश्रिया (हाथरस)
पिता --  श्री खमानी सिंह 
माता -  श्रीमती देवी 
प्रकाशित कृतियाँ -- नया सवेरा (बाल-साहित्य)
                             काव्यगंधा (कुण्डलिया संग्रह)
सम्पादन  --  आधुनिक हिंदी लघुकथाएं 
                      कुण्डलिया छंद  के  सात  हस्ताक्षर 
                      कुण्डलिया  कानन 
सम्मान/पुरस्कार -- राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 'शंभू दयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार'
पंजाब कला, साहित्य अकादमी, जालंधर (पंजाब) द्वारा 'विशेष अकादमी सम्मान
विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ गांधीनगर (बिहार) द्वारा 'विद्या-वाचस्पति'
हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा 'वाग्विदाम्वर सम्मान
 राष्ट्रभाषा स्वाभिमान ट्रस्ट (भारत) गाज़ियाबाद (उ प्र) द्वारा 'बाल साहित्य भूषण ' 
निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, बस्ती (उ प्र) द्वारा 'राष्ट्रीय साहित्य गौरव सम्मान '
हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्, खगड़िया (बिहार) द्वारा 'स्वर्ण सम्मान
विशिष्टता  -- कुण्डलिया छंद के उन्नयन, विकास और पुनर्स्थापना हेतु  कृतसंकल्प एवं समर्पित 

सम्प्रति  -- उत्तर - पश्चिम रेलवे में इंजीनियर 
संपर्क  -- बँगला संख्या - 99,  रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड- 307026  ( राजस्थान)
चल-वार्ता -- 09460714267 / 07891857409 
ई-मेल  --  trilokthakurela@gmail.com

त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया

अपनी भाषा हो सखे, भारत की पहचान।
अपनी भाषा से सदा, बढ़ता अपना मान।।
बढ़ता अपना मान, सहज संवाद कराती।
मिटते कई विभेद, एकता का गुण लाती।
ठकुरेलाकविराय, यही जन-जन की आशा।
फूले-फले सदैव, हमारी हिन्दी भाषा।।


जीवन के भवितव्य को, कौन सका है टाल।
किन्तु प्रबुद्धों ने सदा, कुछ हल लिए निकाल।।
कुछ हल लिए निकाल, असर कुछ कम हो जाता।
नहीं सताती धूप, शीश पर हो जब छाता।
ठकुरेलाकविराय, ताप कम होते मन के।
खुल जाते हैं द्वार, जगत में नव जीवन के।।

ताली बजती है तभी, जब मिलते दो हाथ।
एक एक ग्यारह बनें, अगर खड़े हों साथ।।
अगर खड़े हों साथ, अधिक ही ताकत होती।
बनता सुन्दर हार, मिलें जब धागा, मोती।
ठकुरेलाकविराय, सुखी हो जाता माली।
खिलते फूल अनेक, खुशी में बजती ताली।।

जीवन जीना है कला, जो जाता पहचान।
विकट परिस्थिति भी उसे, लगती है आसान।।
लगती है आसान, नहीं दुख से घबराता।
ढूँढे मार्ग अनेक, और बढ़ता ही जाता।
ठकुरेलाकविराय, नहीं होता विचलित मन।
सुख-दुख, छाया-धूप, सहज बन जाता जीवन।।

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

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