Monday 14 October 2013

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा की कविता

हिंदी दिवस 


जो अनुभूतियां 
कभी हम जीते थे 
अब उन्हीं के 
स्मृति कलश सजाकर
प्रतीक रूप में चुन चुनकर
नित दिवस मनाते हैं

परम्परा तो स्वस्थ है
भावनाओं के 
इस रेगिस्तान में
इसी बहाने
मंद बयार का एहसास
ये दिवस दे जाते हैं।


 
          प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

Tuesday 8 October 2013

शशि पुरवार की लघुकथा

 मानसिक पतन 
       भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और  आगे की सीट पर सामान रखा था कि  किसी के जोर-जोर से  रोने की आवाज आई, मैंने देखा  एक भद्र महिला छाती पीट -पीट  कर जोर-जोर से रो रही थी.
"
मेरा बच्चा मर गया...हाय क्या करूँ ........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं हैंमदद करो बाबूजी! कोई तो मेरी मदद करो! मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर......हाय मै  क्या करूँ!"
       उसका करूण  रूदन सभी के  दिल को बैचेन कर रहा था, सभी यात्रियों  ने पैसे  जमा करके उसे दिए,
"
बाई, जो हो गया उसे नहीं बदल सकते, धीरज रखो." 
"
हाँ बाबू जी, भगवान आप सबका भला करे. आपने एक दुखियारी की मदद की".....
       ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी. मुझसे रहा नहीं गया. मैंने सोचा पूरे  पैसे देकर मदद कर  देती हूँ, ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए. जल्दी से पर्स लिया और  उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी. पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास  पहुँची तो कदम वहीं रूक गए.
       दृश्य ऐसा था कि  एक मैली चादर पर एक6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था. उस  महिला ने पहले अपने आंसू पोछेबच्चे की प्यारी सी मुस्कान के साथ बलैयां ली, फिर सारे पैसे गिने और  अपनी पोटली को  कमर में खोसा फिर  बच्चे से बोली- "अभी आती हूँ यहीं बैठना, कहीं नहीं जाना" और पुनः उसी  रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी.
       मैं अवाक् सी देखती रह गयी   थके क़दमों से पुनः अपनी सीट पर आकर  बैठ गयी. यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं. लोग  कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए. बच्चे की इतनी बड़ी  झूठी कसम भी खा लेते है. आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन गया है .
         

                                           ------शशि पुरवार


                                         


जलगाँव (महाराष्ट्र)
पिन-- 425001 

Friday 4 October 2013

संकलन

सभी मित्रों को मेरा नमस्कार!
आज आपके समक्ष कुछ लिंक्स लेकर उपस्थित हूँ. तो देखिये, आज के लिंक्स-


28 सितम्बर : 46 वीं पुण्य तिथि पर विशेष -विनोद साव (अमर किरण में 28 सितम्बर 1989 को प्रकाशित) साहित्यकार का सबसे अच्छा...


लाशों पर टेबुल सजे, बैठे भारत पाक | 
काली कॉफ़ी पीजिये, कट जाने दो नाक | 
कट जाने दो नाक, करें हमले वे दैनिक | 
मरती जनता आम, मरें...


मानव शरीर में स्थित बहतर हजार नाड़ियों का उदगम केन्द्र " नाभिचक्र" का योग और आयुर्वेद में बड़ा महत्व है ! नाभिमण्डल हमारे...


तीन कुशाओं को बाँधकर ग्रन्थी लगाकर कुशाओं का अग्रभाग पूर्व में रखते हुए दाहिने हाथ में जलादि लेकर संकल्प पढ़ें।...


बत्तख और भैंस/बाल कहानी: तालाब की लहराती लहरों में किलकारियां करती हुई भैंस को देख पास में तैरती बत्तख ने पूछा- ''बहन आज बहुत खुश लग रही हो,क्या बात...


आज बस इतना ही!
नमस्कार!

Saturday 21 September 2013

गौरव या हीनता??

सादर वन्दे सुहृद मित्रों... हिन्दी दिवस...हिन्दी पखवाड़ा...फिर धीरे धीरे जोश टांय-टांय फिस्स! शुभप्रभात, शुभरात्रि, शुभदिन सभी को good morning, good night & good day दबाने लगे। आज बच्चों के लिए (क्योंकि बच्चे हिन्दी के शब्दों से परिचित नहीं या फिर उनका अंग्रेजी शब्दकोष बढाने के लिए) बेचारे बुजुर्गों और शुद्ध हिंदीभाषी लोगों को भी अंग्रेजी बोलने के लिए अपनी जिव्हा को अप्रत्याशित ढंग से तोड़ना मरोड़ना पड़ता ही है। उन्हें गांधी जी का वक्तव्य कौन स्मरण कराए जो कहा करते थे- ''मैं अंग्रेजी को प्यार करता हूँ लेकिन अंग्रेजी यदि उसका स्थान हड़पना चाहती है, जिसकी वह हकदार नहीं है तो मैं सख्त नफरत करूंगा।'' अध्ययन का समय ही कहाँ है अब किसी के पास जो महापुरुषों के सुवचनों को संज्ञान में आये। ईश्वर ही बचाए समाज को। 14सितम्बर 1949 को संविधान सभा मे एकमत होकर निर्णय लिया गया कि भारत की राजभाषा हिन्दी होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय को प्रतिपादित करने तथा हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए ''राष्ट्र-भाषा प्रचार समिति वर्धा'' के अनुरोध पर 1953 से सम्पूर्ण भारत में 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज,राष्ट्रीय पशु,पक्षी आदि की तरह राष्ट्रीय भाषा भी होनी चाहिए,लेकिन किताना दुखद है कि हम हिंदी को देश की प्रथम भाषा बनाने में सक्षम नहीं हो पाए हैं। हिंदी भारत की प्रथम भाषा बने भी तो कैसे जब देश के प्रथम नागरिक तक आज हिंदी को नकार अंग्रेजी में सम्बोधन करते हैं,जहां के नागरिक हिंदी के माध्यम से शिक्षा दिलाने में हीनता का अनुभव करते हैं,रिक्शाचालक भी रिक्शे पर अंग्रेजी में लिखवाकर छाती चौड़ी करते हैं। ज्यादा क्या कहें हमारे संविधान में ही देश की पहचान एक विदेशी भाषा में है-India that is Bharat'. विचारणीय है जहां वैश्विक मंच पर सभी देश अपनी भाषा के आधार पर डंका बजा रहे हों और अकेले हम...विदेशी भाषा में सस्वयं का परिचित करा रहे हों,तो हमे गुलाम अथवा गूंगे देश का वासी ही कहा जाएगा। विद्वानों ने कहा है कि जिस देश की कोई भाषा नहीं है वह देश गूंगा है। ऐसा सुनकर,अपना सिक्का खोंटा समझ हमें सर ही झुका लेना पड़ेगा। आज चीन जैसे देश राष्ट्र भाषा का आधार लेकर विकास की दौड़ में अग्रसर हैं,और भारत में खुद ही अपनी भाषा को रौंदा जा रहा है। अंग्रेजी शिक्षितजन अपनी भाष,संस्कृति,परिवेश और परम्पराओं से कटते जा रहे हैं और ऐसा कर वे स्वयं को विशिष्ट समझ रहे हैं। कैसी विडम्बना है आज हीनता ही गौरव का विषय बन गई है। ऐसी दशा में मुक्ति भला कैसे सम्भव है? आज अंधी दौड़ में हम भूल गये हैं कि स्वामी विवेकानन्द जी अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान होते हुए भी अपनी मात्रभाषा हिंदी के बूते शिकागो में विश्व को भारतीय संस्कृति के सामने नतनस्तक कर दिया। बहुत पहले नहीं 1999 में माननीय अटल बिहारी बाजपेई(तत्कालीन विदेश मंत्री) ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में सम्बोधित कर हमारे राष्ट्र को गौरान्वित किया था। अंग्रेजी के पक्षधर गाँधी जी के सामने अपनी जिव्हा दमित ही रखते थे। अंग्रेजी के बढते अधिपत्य और मातृ-भाषा की अवहेलना के विरुद्ध 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आवाज उठाई गई थी। श्री केशवचन्द्र सेन, महर्षि दयानन्द सरस्वती,महात्मा गाँधी, राजर्षि पुरुषोत्तमदास,डा. राममनोहर लोहिया आदि देशभक्तों का एक स्वर मे कहना था-''हमें अंग्रेजी हुकूमत की तरह भारतीय संस्कृति को दबाने वाली अंग्रेजी भाषा को यहां से निकाल बाहर करना चाहिए।'' ये हिंदी सेवी महारथी जीवन के अन्तिम क्षणों तक हिंदी-अस्मिता के रक्षार्थ संघर्ष करते रहे। दुरभाग्वश वे भी मैकाले के मानस पुत्रों के मकड़जाल से हिंदी को मुक्त नहीं करा सके और राजकाज के रूप में पटरानी अंग्रेजी ही बनी हुई है,जबकि भारती संविधान इसे सह-भाष का स्थान देता है। मन्तव्य अंग्रेजी या किसी भाषा को आहत करने का नहीं हिंद-प्रेमियों बस हम भविष्य की आहट पहचानें, अंग्रेजी अथवा किसी भी विदेशी भाषा को जानें,सम्मान करें परन्तु उसे अपनी अस्मिता या विकास का पर्याय कतई न समझें। वास्तव में राष्ट्रभाषा की अवहेलना देश-प्रेम,संस्कृति और हमारी परम्पराओं से हमे प्रछिन्न करती है। अपनी मातृ-भाषा का प्रयोग हम गर्व से करें,हिंदी के लिए संघर्ष करने वाली मनीषियों की आत्माओं का आशीर्वाद हमारे साथ है। जय हो! सादर -वन्दना

Wednesday 18 September 2013

पतवार

सभी मित्रों को मेरा नमस्कार!
आप सब के लिए कुछ चुनिन्दा लिंक्स लेकर आज उपस्थित हूँ. तो, आइये सीधे चलते हैं लिंक्स पर-

भाग्य विधाता भारत की, पतवार भारती हिन्दी है। 
 अंचल अंचल की उन्नति का, द्वार भारती हिन्दी है।...


माँ सम हिन्दी भारती, आँचल में भर प्यार। 
चली विजय-रथ वाहिनी, सात समंदर पार।   
सकल भाव इस ह्रदय के, हिन्दी पर कुर...


वो बार- बार घड़ी देखती और बेचैनी से दरवाजे  की तरफ देखने लगती| ५ बजे ही आ जाना था उसे अभी तक नही आया, कोचिंग के टीचर को भी फोन कर चुकी...


डा0 जगदीश व्योम 
राजा मूँछ मरोड़ रहा है 
सिसक रही हिरनी 
बड़े-बड़े सींगों वाला मृग 
राजा ने मारा 
किसकी यहाँ मजाल 
कहे राजा को...




देवों में जो पूज्य प्रथम है, शीघ्र सँवारे सबके काम। 
मंगल मूरत गणपति देवा, है वो पावन प्यारा नाम।...

अब आज्ञा दीजिये!
नमस्कार!

Sunday 8 September 2013

जय जय भारत: श्रद्धान्जलि

सादर अभिनन्दन सुहृद साहित्य प्रेमियों...
        मित्रों कहते हैं न कि अभिव्यक्ति पूर्णरूप से स्वतन्त्र होती है। लेकिन आप सहमत हैं इससे? भले ही स्वतन्त्र हो परन्तु सलमान रुश्दी, तसलीमा
नसरीन जैसे कई महान साहित्यकारों को प्रतिबन्ध की कठोरतम् बेड़ियों से लड़ना पड़ा, देश छोड़ना पड़ा, अज्ञातवास, भूमिगत रहना पड़ा...और भी न जाने क्या क्या! लेकिन लेखनी/अभिव्यक्ति में किंचित भी कमजोरी की झलक नहीं दिखाई पड़ी। दोस्तों कोई गुण, विशेषतय: साहित्यधर्मिता को कभी कोई भी परिस्थित पंगु नहीं बना सकती।
       ऐसी ही हमारे देश की प्रतिष्ठित लेखिका सुष्मिता बनर्जी, संघर्ष कभी जिनके पथ के रोड़े-नहीं बन पाए। सुष्मिता तालिबान मुक्ति के पश्चात लिखी गई पुस्तक 'काबुलीवालाज बंगाली वाइफ' बहुचर्चित रही। गत गुरुवार को उनकी अफगान में बहुत दर्दनाक ढंग से काल के गाल में ढूंस दिया गया। आज मैंनें उनकी ही याद में कुछ ऐसे ही साहित्य/साहित्यकारों को शामिल करने का प्रयास किया जिन्होंने विदेश में पैठ ही नही बनाई बल्कि सम्मान भी पाया। आशा है, आप उन्हें अपना स्नेह और शुभकामनाएं जरूर समर्पित करेंगे, जिससे हमारे आत्मीय साहित्यकार जहां भी रहें सकुशल रहें और विश्व में भारत की पताका फहर सके है-



 युवा कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ से बातचीत 
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 'कठपुतलियाँ' 'शालभंजिका' &...


: समय से बात   "निकट" ने 22 जून 2013 को अपने सात वर्ष पूरे किए.  
पत्रिका को बहुत स्नेह मिला.


भाषा समस्या/ गोविंद सिंह यह महज एक संयोग ही है
  एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने राजभाषा हिन्दी को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जबकि...

''सत्साहित्य सामने रखा हुआ महकता उद्यान है''

        मित्रों सुष्मिता जी स्वयं तो कांटों का सफर पूर्णकर हमारे बीचसे विदा हो गईं परन्तु महकता हुआ उद्यान हमारे मध्य छोड़ गईं। देश आपको सलाम करते हुए श्रद्धान्जलि अर्पित करताहै।
अब आज्ञा दीजिए- 
वंदेमातरम्

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...