Monday 14 October 2013

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा की कविता

हिंदी दिवस 


जो अनुभूतियां 
कभी हम जीते थे 
अब उन्हीं के 
स्मृति कलश सजाकर
प्रतीक रूप में चुन चुनकर
नित दिवस मनाते हैं

परम्परा तो स्वस्थ है
भावनाओं के 
इस रेगिस्तान में
इसी बहाने
मंद बयार का एहसास
ये दिवस दे जाते हैं।


 
          प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

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