कविता सिर्फ भावाभिव्यक्ति नहीं होती बल्कि वह कवि की दृष्टि और अनुभूतियों से भी पाठक का परिचय कराती है। रचना में कवि का अस्तित्व तमाम बंधनों को तोड़कर बाहर प्रस्फुटित होता है। उसके द्वारा चुने गए शब्द उसके भावों को जीते हैं और उस चित्र को साक्षात पाठक के समक्ष जीवंत करते हैं जो कहीं दूर उसके मन के भीतर रचा-बसा और दबा होता है। छत्तीसगढ़ के कोरबा शहर में जन्मी और वर्तमान में कनाडा में रह रही नवोदित रचनाकार मानोशी का अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित कविता संग्रह ‘उन्मेष’ मुझे प्राप्त हुआ। बंगाली साहित्य ने उन्हें साहित्य के प्रति प्रेरित किया। गायन में संगीत विशारद की उपाधि प्राप्त चुकी मानोशी के गीतों में उनका संगीत ज्ञान स्पष्ट परिलक्षित होता है। गीतों में उनकी पकड़ इतनी सशक्त है कि भाव स्वयं शब्द का रूप लेकर अभिव्यक्त हो जाते हैं। यह उदाहरण देखें-
‘इक सितारा माथ पर जो, उमग तुमने जड़ दिया था
और भॅंवरा रूप बनकर, अधर से रस पी लिया था
उस समय के मद भरे पल, ज्यों नशे में जी रही हूँ'
उन्मेष में संग्रहीत 30 गीतों, 21 गज़लों, 10 मुक्तछंद, 8 हाइकू रचनायें, 6 क्षणिकाएं और दोहों में कवियित्री के सृजन की विविधता के रंग बिखरे हैं।सभीविधाओंमेंइनकीकलमबहुतहीमजबूतीसेचलीहै।उन्हें विषयों के लिये श्रम नहीं करना पड़ता। अपने आस-पास के अनुभवों की उनके पास ऐसी विरासत है जो सहज ही उनकी रचनाओं में व्यक्त हो जाती है। विद्रुपताओं को भी उन्होंने एक सुन्दर रूप दिया है। वे कोई घिसा-पिटा मुहावरा लेकर नहीं चलतीं। उन्होंने प्रकृति की निकटता में जीवन की सच्चाइयों को बहुत ही सहजता से स्वीकार किया है। उनकी अनुभूतियों का पटल बहुत ही विस्तृत है। प्राकृतिक अनुभूतियों से लेकर जीवन की सूक्ष्मतम संवेदनाओं और दर्शन का स्पर्श पाठक को इनकी रचनायें पढ़ते समय होता है।
प्राकृतिक सौंदर्य को जिस खूबसूरती से उन्होंने उकेरा है, उतनी गहनता और संलग्नता बहुत कम देखने को मिलती है। जैसे कोई चित्रकार कैनवास पर दृश्यों को उकेरता है, वही कार्य मानोषी ने अपनी कलम से किया है-
उनकी रचनाओं में भाषा और शिल्प सहज है। उनमें भाषा को लेकर विशेष आग्रह नहीं दिखता। सहजता से आए शब्द रचना के अंग हैं जो पाठक को अनुभूतियों के संसार में विचरण करने में सहायक हैं। प्रवाह में कोई भी शब्द बाधक नहीं बनता। सहज भाषा, सार्थक प्रतीकों और बिम्ब प्रयोगों ने रचनाओं की सम्प्रेषणीयता में वृद्धि की है। ये पंक्तियाँ देखें-
एक चटखारेदार उदाहरण और देखें-
रचना में किसी पंक्ति की शुरूआत यदि कारक से की जाए तो आभास यह मिलता है कि किसी वाक्य को तोड़कर दो पंक्तियाँ बना दी गयी हैं। खासकर, गीतों में इससे बचने का प्रयास जरूर करना चाहिए लेकिन लेखन की सतत प्रक्रिया में इस तरह की चीजें रह ही जाती हैं-
में सनते बच्चे, कच्छे में'
भाव संप्रेषण इनकी विशेषता है लेकिन कहीं-कहीं भाव उस तेजी से नहीं पहुँचते। पाठक को रूकना पड़ता है, ठहरना और सोचना होता है।
अनुभूतियों के विविध आयामों को जिस तरह उनकी रचनाओं में स्थान मिला है वह उनकी रचनाओं और इस संग्रह की उपलब्धि है। उनकी रचनायें तार्किकता के आधार पर बजबजाती भावुकता को अपने से दूर धकेलती हैं। मिथकों को नकारते हुए उन्होंने जीवन के सत्य को स्वीकारा है-
'छूटे हाथों से खुशी, जैसे फिसले धूल।
ढूँढा अपने हर तरफ, बस इतनी सी भूल।'
उनकी छंदमुक्त रचनायें सीधे बात करती हैं, बिना कोई ओट लिए-
भीतर की पीड़ा को उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रतिष्ठित कर समाज को दिशा देने की सफल चेष्ठा की है। जीवन के अस्तित्व के सवाल को बहुत खूबी के साथ उनकी रचना में उकेरा गया है। यथार्थ से परिचित कराती उनकी ये पंक्तियाँ-
जहाँ ‘मैं’ समाप्त होता है
आओ उस शून्य को पा लें अब।'
जीवन के विभिन्न पहलू उनकी रचनाओं में बहुत प्रमुखता से उभरे हैं-
'तेरा मेरा रिश्ता क्या है
दर्द का आखिर किस्सा क्या है'
उनका दर्द जब बयां होता है तो अपना सा लगता है। यह उनके रचनाकर्म की सशक्तता है।
'कहीं बहुत कुछ भीग रहा था।
पुराने उघड़े लम्हों की दास्ताँ,
एक छोटा सा लम्हा टपक पड़ा'
मानोषी संघर्षों के सत्य को स्वीकारते हुए भी जीवन के प्रति सकारात्मक हैं।
'कुछ मिले काँटे मगर उपवन मिला
क्या यही कम है कि यह जीवन मिला?'
एक और उदाहरण देखें-
'दो क्षण के इस जीवन में क्या
द्वेष द्वंद को सींच रहे हो'
सबसे कठिन दिनों के एकाकीपन को कितनी सुन्दरता से शब्द मिले हैं-
अब देखो एकांत मनाने जग उन्माथ नहीं देता है'
अपने को पहचानने की छटपटाहट उनकी रचनाओं में भी मुखरित हुई है-
ख़ुद को पहचानने की कोशिश करती हूँ'
प्रकृति के सानिध्य में पकी और जीवन को करीब से जीती मानोशी की रचनायें पाठक को एक सुखद अनुभव दे जाती हैं।
अंजुमन प्रकाशन ने इस पुस्तक को बहुत सुन्दर रूप दिया है। प्रूफ की कोई त्रुटि नहीं है। प्रिन्टिंग की गुणवत्ता बहुत ही उच्च कोटि की है। इसके लिए अंजुमन प्रकाशन विशेष तौर पर बधाई के पात्र हैं।
!! पुस्तक विवरण !! कवियत्री - मानोशी प्रकाशन वर्ष - 2013 ISBN - 13 - 9788192774602 पृष्ठ संख्या - 112 बाईंडिंग - हार्ड बाउंड प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद
- बृजेश नीरज