यह यशोदा जी की पहली कविता है।
हे ईश्वर.....
सदियों से बने हुए हो
मूर्ति तुम....
...........
तुम्हें परोस कर
खिलाने का बहाना
अब त्याग दिया
लोगों ने ....
अब
नोच-नोच कर
खाने लगे हैं तुम्हें ही
तुम पर आस्थावान
लोगों को
मोहरा बनाकर .....
- यशोदा