जनवादी लेखक संघ लखनऊ की ओर से ‘वर्तमान समय के स्त्री-प्रश्न’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया| परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफ़ेसर सदानंद शाही ने कहा कि आज की स्त्री परंपरा से खींची गयी दहलीज को पार करके बाहर निकल आई है, पुनः उसे उस दहलीज में नहीं धकेला जा सकता| अब बहुत निराशाजनक स्थिति नहीं है| स्त्री-पुरुष सन्दर्भों में देखें तो पशुता की ताकत पुरुष के पास ज्यादा है और मनुष्यता की ताकत स्त्री में ज्यादा है| उन्होंने तमाम मिथकीय प्रसंगों की चर्चा करते हुए स्त्रियों के समक्ष उठने वाले प्रश्नों की चर्चा की|
अध्यक्षता करते हुए कवयित्री सुशीला पुरी ने कहा कि स्त्री प्रश्न स्त्री के बजाय पुरुषों के लिए जरुरी हैं| यह भी जरुरी है कि हमारा स्त्री विमर्श शहरों तक ही सीमित न रहे, गाँवों तक भी पहुँचे| विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. संध्या सिंह ने आधुनिक सन्दर्भों में स्त्री विमर्श के रैखिक विकास क्रम को प्रस्तुत किया| डॉ. रंजना अनुराग ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पित्रसत्तात्मक समाज में स्त्री सदियों से पीड़ित रही है| अनीता श्रीवास्तव, कुंती मुखर्जी, कवयित्री संध्या सिंह, डॉ. निरांजलि सिन्हा, अनुजा शुक्ला, दिव्या शुक्ला, माधवी मिश्रा, डॉ. अलका प्रमोद, रंजना श्रीवास्तव ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए स्त्री के अधिकारों और समानता के लिए स्वयं संघर्ष करने का आह्वान किया| विजय पुष्पम् पाठक ने परिचर्चा को बहस में तब्दील कर दिया जिससे विषय पर खूब चर्चा हुयी| ऐडवा की सीमा राणा, एस.ऍफ़.आई. के प्रवीण पाण्डेय, कलम सांस्कृतिक मंच के ऋषि श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए| धन्यवाद ज्ञापन नलिन रंजन सिंह ने किया|
इस अवसर पर गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, प्रताप दीक्षित, राजेंद्र वर्मा, अजीत प्रियदर्शी, ज्ञान प्रकाश चौबे, राहुल देव, बृजेश नीरज, नसीम साकेती, शरदेन्दु मुखर्जी, राजा सिंह, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, अवधेश श्रीवास्तव, राजीव मोहन, गोपाल नारायण श्रीवास्तव, के.के. चतुर्वेदी आदि साहित्य प्रेमी मौजूद थे|
अध्यक्षता करते हुए कवयित्री सुशीला पुरी ने कहा कि स्त्री प्रश्न स्त्री के बजाय पुरुषों के लिए जरुरी हैं| यह भी जरुरी है कि हमारा स्त्री विमर्श शहरों तक ही सीमित न रहे, गाँवों तक भी पहुँचे| विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. संध्या सिंह ने आधुनिक सन्दर्भों में स्त्री विमर्श के रैखिक विकास क्रम को प्रस्तुत किया| डॉ. रंजना अनुराग ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पित्रसत्तात्मक समाज में स्त्री सदियों से पीड़ित रही है| अनीता श्रीवास्तव, कुंती मुखर्जी, कवयित्री संध्या सिंह, डॉ. निरांजलि सिन्हा, अनुजा शुक्ला, दिव्या शुक्ला, माधवी मिश्रा, डॉ. अलका प्रमोद, रंजना श्रीवास्तव ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए स्त्री के अधिकारों और समानता के लिए स्वयं संघर्ष करने का आह्वान किया| विजय पुष्पम् पाठक ने परिचर्चा को बहस में तब्दील कर दिया जिससे विषय पर खूब चर्चा हुयी| ऐडवा की सीमा राणा, एस.ऍफ़.आई. के प्रवीण पाण्डेय, कलम सांस्कृतिक मंच के ऋषि श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए| धन्यवाद ज्ञापन नलिन रंजन सिंह ने किया|
इस अवसर पर गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, प्रताप दीक्षित, राजेंद्र वर्मा, अजीत प्रियदर्शी, ज्ञान प्रकाश चौबे, राहुल देव, बृजेश नीरज, नसीम साकेती, शरदेन्दु मुखर्जी, राजा सिंह, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, अवधेश श्रीवास्तव, राजीव मोहन, गोपाल नारायण श्रीवास्तव, के.के. चतुर्वेदी आदि साहित्य प्रेमी मौजूद थे|