Thursday 4 December 2014

त्रिलोक सिंह ठकुरेला को राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान

साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को पंचवटी लोक सेवा समिति द्वारा हिन्दी पखवाड़े के समापन अवसर पर राष्ट्र-भाषा हिन्दी के संवर्द्धन में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। मोहन गार्डन स्थित रेड रोज माडल स्कूल, मोहन गार्डन में राष्ट्रपति के भाषा सहायक रहे डॉ. परमानंद पांचाल के सान्निध्य में आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि डॉ. महेश चंद शर्मा (पूर्व महापौर और दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष)अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान डॉ.विमलेश कांति वर्मा तथा डा. किशोर श्रीवास्तव (संयुक्त निदेशक समाज कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार), समारोह के अध्यक्ष शिक्षाविद् श्री परमानंद अग्रवाल तथा पंचवटी लोकसेवा समिति के संरक्षक डा.अम्बरीश कुमार ने त्रिलोक सिंह ठकुरेला (आबू रोड)को शॉल, सम्मान-पत्र, स्मृति-चिन्ह एवं  सद्साहित्य भेंट कर सम्मानित किया। अन्य हिन्दी सेवियों में मेहताब आजाद (देवबंद), डा. कीर्तिवर्धन (मुजफ्फरनगर), डा. माहे तलत सिद्दीकी (लखनऊ), डॉ. संगीता सक्सेना (जयपुर), डा. गीतांजलि गीत (छिंदवाडा), दिनेश बैंस (झांसी), सुरेन्द्र साधक (दिल्ली), प्रख्यात गजलकार अशोक वर्मा (दिल्ली), कमल मॉडल सी.सै. स्कूल, मोहन गार्डन की श्रीमती रजनी अरोडा तथा श्रीमती नीलम सहित अनेक विद्वानों को राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान प्रदान किया। श्री महेश चंद शर्मा ने राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं देववाणी संस्कृत के प्रति निष्क्रियता तथा अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार तथा आम जनता से इस ओर ध्यान देने की अपील की। डॉ.विमलेश कांति वर्मा ने हिंदी को राष्ट्र एकता की सबसे मजबूत कड़ी बताते हुए इसके अधिकाधिक प्रयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने पंचवटी लोकसेवा समिति द्वारा राष्ट्रभाषा को प्रोत्साहित करने की सराहना करते हुए सभी सम्मानित छात्रों एवं साहित्यकारों के प्रति अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित कीं। श्री अम्बरीश कुमार ने सभी से आत्मचिंतन करने तथा हिन्दी में ही हस्ताक्षर करने का संकल्प लेने का आह्वान किया तो समारोह में उपस्थित सैकड़ों हिन्दी प्रेमियों ने करतल ध्वनि से उनका अनुसरण करने की पुष्टि की। 
इससे पूर्व कार्यक्रम का आगाज रेड रोज माडल स्कूल के छात्रों द्वारा वंदेमातरम तथा सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण डा किशोर श्रीवास्तव द्वारा संचालित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन रहा।  
इस अवसर पर अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा क्षेत्र के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम संयोजक डा. विनोद बब्बर ने देश के विभिन्न भागों से आए अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि सभी के हृदय में हिंदी भाषा के प्रति जो समर्पण है वह विश्वास दिलाता है कि हिंदी सदा फलती-फूलती  रहेगी।

प्रस्तुति ---  श्रीमती साधना ठकुरेला

Wednesday 3 December 2014

‘सारांश समय का’ लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्रमें 'शब्द व्यंजना' और 'सन्निधि संगोष्ठी' के संयुक्त तत्वाधान में 'सारांश समय का' कविता-संकलन का लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसून लतांत ने की, जबकि लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्य अतिथि एवं रमणिका गुप्ता, डॉ. धनंजय सिंह, अतुल प्रभाकर विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित थे. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत थे तथा संचालन
महिमा श्री ने किया.
इस आयोजन में बड़ी संख्या में कवि, लेखक तथा साहित्य प्रेमी सम्मिलित हुए. कार्यक्रम दोपहर ढाई बजे से शाम सात बजे तक चला.
'सारांश समय का' कविता संकलन का संपादन बृजेश नीरज और अरुण अनंत ने किया है.  इस संकलन में अस्सी रचनाकारों की बेहतरीन कविताएँ सम्मिलित हैं जिसकी सराहना अतिथियों ने की. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कविताओं के चयन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संकलन हिन्दी साहित्य के लिए शुभ संकेत देता है. इसमें कई मुक्कमल कविताएँ हैँ. उन्होंने संकलन में सम्मिलित कई कविताओं का सस्वर पाठ कर रचनाकारों को प्रोत्साहित किया. 
उन्होंने कहा कि १२५ करोड़ के देश में अगर ८० लाख लोग भी यदि कवि हो जाएँ तो समाज बेहतर हो जाएगा.  कविता अभी संकट में हैकई विधाएँ लुप्त हो रही है उन पर भी काम होना चाहिए. वाचिक परम्परा समाप्त हो रही है, पहले एक शेर, एक कविता भी हलचल मचा देती थी. बिना साधन के जहाँ बिजली भी नहीं थी उस गाँव में भी कविता पढ़ी जाती थी. आज शब्दों की चाट परोसी जाती है.  हिन्दी में मंच पर हल्के स्तर की कविताऐं कही जाती हैं. एक अलग ही तरह का गणित है. गम्भीर रचनाकारों ने मंच से दूरी बना ली है. साहित्य का विघटन हुआ है. साम्प्रदायिकता पैदा की गई है. इससे कविता को बड़ा नुकसान हुआ है. उर्दू में ये बंटवारा नहीं है, मंच से दूरी नहीं है. निदा फ़ाज़ली ग़ज़ल पढ़ने मस्कट भी जाते हैं.


मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत का कहना था कि कविता अणु से अनंत की यात्रा है. कविता की विशेषता और लिखने से पहले की रचनाकारों की संवेदनाओं के घनीभूत होने की आवश्यकता के बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि कविता पाठक के सीधे ह्रदय तक पहुँचती है और हर पाठक अपनी तरह से उसकी अभिव्यंजना करता है. पाठक कविता के लिए तथ्य समाज से लेता है और स्वयं के साथ समाज को भी रचना के साथ जोड़ता है. कविता में जो असर और क्षमता है वह किसी अन्य विधा में नहीं है. कविता में जन समाज को आंदोलित करने की क्षमता है. स्वतंत्रता काल हो या आपातकाल कवियों ने अपनी लेखनी से समाज को झकझोरा भी और दिशा भी दी. समाज में व्याप्त संताप, पीड़ा, दुःख को कवियों ने बखूबी रेखांकित किया. उन्होंने कहा रचना सयास नहीं लिखी जाती है, ये उतरती है, माजिल होती है, प्रकट होती है. अपनी बात को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से जन-जीवन के कृष्णपक्ष को ही बड़ी संख्या में रेखांकित करने की परम्परा चल पड़ी है. देश और समाज में भोग गया यथार्थ इन रचनाओं में है पर अगर रचना को कालजयी करना है तो जीवन के शुक्लपक्ष को भी रेखांकित करना होगा.

रमणिका गुप्ता ने अपनी बात कहते हुए कहा आज जन सरोकार का चलन है उसी विषय को माध्यम बनाकर लिखा जाना चाहिए. लोगों तक आपकी बात पहुँचेगी, लोगों के विचारों में परिवर्तन आएगा. उन्होंने कहा मैं आदिवासीयों, पीड़ित दलितों और स्त्रियों के बीच उनके समस्याओं के निवारण के लिए लम्बे समय से काम कर रही हूँ आप भी इन सरोकारों को लेकर लिखें.
आयोजन दो सत्रों में चला. लोकार्पण सत्र में डॉ धनजंय सिंह, अतुल कुमार, लतांत प्रसून व संग्रह के सम्पादक द्वय ब्रिजेश नीरज और अरुन अनंत ने भी अपनी बात रखी.


लोकार्पण के बाद काव्य गोष्ठी में कवि और कवियत्रियों ने उत्साह के साथ अपनी प्रस्तुति दी. आयोजन की उपलब्धि रही कि हर विधा में रचना पढ़ी गयी. गीत, नवगीत, ग़ज़ल, घनाक्षरी, कुंडलिया, अतुकांतपद्य की सभी प्रचलित विधाओं की रचनाएँ सुनी और सुनायी गईं. कार्यक्रम के अंत में किरण आर्या ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

- महिमा श्री


Thursday 27 November 2014

'सारांश समय का' लोकार्पण समारोह

'शब्द व्यंजना' और 'सन्निधि संगोष्ठी' के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 22/11/2014 को अपराह्न 01.30 बजे से सायं 6:00 बजे तक कमरा न. 203, अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में 'सारांश समय का' साझा कविता-संकलन का विमोचन/ लोकार्पण समारोह तथा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। 
बृजेश नीरज जी व अरुन शर्मा अनंत जी द्वारा सम्पादित 80 रचनाकारों की पुस्तक की एक सहभागी आपकी दोस्त "नीलू 'नीलपरी" भी है।
मुख्य अतिथि रमणिका गुप्ता जी, लक्ष्मीशंकर बाजपेयी जी, धनञ्जय सिंह जी, प्रसून लतांत जी रहे। मंच की संचालिका महिमा ने अपना कार्य बखूबी निभाया। किरण आर्या के संयोजन से सारा समारोह बहुत अच्छा बन पड़ा। कविता, शायरी, ग़ज़ल, कुण्डलिया आदि की स्वर लहरी से समां बंध गया। उपस्थित रचनाकारों के साथ हमने भी काव्य पाठ किया।
वरिष्ठ कवि और मेरे बाबा धनञ्जय सिंह जी और बृजेश नीरज जी से प्रथम बार मिलना बहुत सुखद रहा। मेरे फेसबुक मामू अशोक अरोरा जी की उपस्थिति सुखकर लगी।

राहुल पुरुषोत्तम द्वारा कैमरे में कैद की कुछ फ़ोटो साझा कर रही हूँ।
- नीलू नीलपरी 









Wednesday 26 November 2014

आन्ना अख़्मातवा

आन्ना अख़्मातवा

जन्म: 11 जून 1889
निधन: 5 मार्च 1966
उपनाम  आन्ना अख़्मातवा
जन्म स्थान  ओडेसा, उक्राइना।

मैं तुम्हारी जगह लेने आई हूँ, सखी! 

तुम्हारी जगह लेने आई हूँ, सखी!
धधकते दावानल के बीच
- मैं तुम्हारी जगह लेने आई हूँ, सखी !

तुम्हारी आँखों की ज्योति मन्द पड़ गई है
आँसू भाप बन कर उड़ गए हैं बादल सरीखे
और बालों से झलकने लगा है उम्र का भूरापन।

तुम समझ नहीं पा रही हो चिड़िया का गाना
न तो सितारों की सरगोशियाँ
और न ही दामिनी की द्युति का दर्प।

जब कोई स्त्री बजा रही हो खंजड़ी
तो मत सुनो और कुछ
और मत डरो कि टूटेगा सन्नाटे का साम्राज्य।

धधकते दावानल के बीच
- मैं तुम्हारी जगह लेने आई हूँ, सखी !

- मुझे दफ़्न करने वालों
बताओ कहाँ है तुम्हारी कुदालें और बेलचे ?
अरे ! तुम्हारे पास तो है फक़त एक बाँसुरी
कोई गिला नहीं
कोई इल्जाम आयद नहीं
बहुत दिन हो गए मेरी वाणी को मूक हुए ।

आओ, मेरे वस्त्र धारण करो
मेरे डर का खामोशी से दो जवाब
बहने दो बयार जो तुम्हारे बालों को सहलाती हो
बकायन की गंध का मजा लो
तुमने बहुत लम्बे पथरीले रास्ते तय किए
यहाँ तक पहुँचने की खातिर
और इस आग से उजाले का उत्खनन करने में।

दूसरे के लिए जगह त्यागकर
कोई है जो चला गया है आत्मनिर्वासित
भटकता - अटकता
अब तो जैसे कोई अंधी स्त्री निरख - परख रही हो
अनचीन्हे - सँकरे रास्ते के मार्गदर्शक चिन्ह।

और अब भी
उसके हाथों में थमी है खँजड़ी
जो लपटों की तरह लहराने को है बेताब
कभी वह हुआ करती थी श्वेत परचम की मानिन्द
और वह अब भी है प्रकाश स्तम्भ से प्रवाहित
उजाले की उर्जस्वित कतार।

धधकते दावानल के बीच
- मैं तुम्हारी जगह लेने आई हूँ , सखी !

जब कोई स्त्री बजा रही हो खंजड़ी
तो मत सुनो और कुछ
और मत डरो कि टूटेगा सन्नाटे का साम्राज्य.

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह

Monday 10 November 2014

डमरू घनाक्षरी

(१)
सहजसफललखमतअचरजकरउसजनपरकरवरदसरसलख 
डगमगडगमगहरपगहरक्षणतबलखनभपररखउसपरनख 
तनमनधनतजबसभगवनभजसररजधररससरससरसचख 
हटचलभकधतमतकररतरहजलजजलसमबनवहमनरख 
कृतिकार
- डॉ.आशुतोष वाजपेयी 

(२)

जल बरसतडमरू घनाक्षरी

पवन बहन लग, सर सर सर सर,
जल बरसत जस झरत सरस रस
लहर लहर नद , जलद गरज नभ,
तन मन गद गद ,उर छलकत रस
जल थल चर सब जग हलचल कर,
जल थल नभ चर ,मन मनमथ वश।
सजन लसत,धन , करत पर,
मन मन तरसत ,नयनन मद बस

- डा. श्यामगुप्त 

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

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