Monday, 18 August 2014

कबीर के दोहे

पर नारी पैनी छुरी, विरला बांचै कोय
कबहुं छेड़ि न देखिये, हंसि हंसि खावे रोय।

पर नारी का राचना, ज्यूं लहसून की खान।
कोने बैठे खाइये, परगट होय निदान।।

कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।

शब्द न करैं मुलाहिजा, शब्द फिरै चहुं धार।
आपा पर जब चींहिया, तब गुरु सिष व्यवहार।।

कागा काको धन हरै कोयल काको देत
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनी करि लेत

शब्द बराबर धन नहीं, जो कोय जानै बोल
हीरा तो दामों मिलै, सब्दहिं मोल न तोल

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