संगीता सिंह ''भावना''
टूटते सपनों को देखा
सिसकते अरमानों को देखा
दूर जाती हुई खुशियों को देखा
भीगी पलकों से .......
बिखरते अरमानों को देखा ,
अपनों का परायापन देखा .
परायों का अपनापन देखा
रिश्तों की दुनिया देखी
थमती सांसों ने .....
धीरे से फिर जिन्दगी को हँसते देखा ..
भावनाओं की व्याकुलता देखा
आँखों में तड़प देखा
नफरतों की आँधियों को देखा
रिश्तों के बंधन में .....
कितने ही अजीब और असहज पल देखा
बुलंदियों का शिखर देखा
सपनों की उड़ान देखा
हर एहसासों की कड़वी सच्चाई देखा
हर पल यहाँ ..||
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