Friday 22 March 2013

छोड़ दि‍या हमने भी ....

छोड़ दि‍या हमने भी ....: (((...TODAY IS NO SMOKING DAY...))) चल.... आज अंति‍म बार तेरी याद को तेंदू पत्‍ते में भर कस कर  एक धागे से लपेट दूं और सुलगा के उसे लगा...

एक थी गौरैया .

Tere bin: अब की सजन मैं ..होली.....

रचनाकार: विजय शिंदे का आलेख - निरक्षरता से... मुक्ति तक का अद्भुत सफर

Shabd Setu: तेरा यह क्रमशः टूटना

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल::   मिली दौलत , मिली शोहरत , मिला है मान उसको क्यों  मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है  . किसी का दर्...

मेरा मन: पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

भूली-बिसरी यादें : कट गयी दीवार:   गर्दे हैरत से अट  गयी दीवार, आइना देख कट गयी दीवार।   लोग  वे मंजरों से डरा करते थे , अब के काया पलट गयी दीवार,  ...

8 comments:

  1. dhanyavad..nd aabhar.....acchhe links ...

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  2. मेरी रचना के लि‍ए धन्‍यवाद...अच्‍छे लिंक्‍स सजाए हैं आपने

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  3. ब्रजेश जी आपको वारकरी संप्रदाय के एक अनुयायी पर लिखा आलेख पसंद आया, मुझे धन्यता मिली। साथ ही इसे अपने ब्लॉग के लिंक पर जोड कर अपने दोस्तों एवं ब्लॉग पाठकों तक पहुंचाया इसलिए आभारी हूं। इसी तरह हमारा स्नेह बना रहेगा और कभी प्रत्यक्ष मिलने का मौका भी मिलेगा।

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    1. विजय जी, जब हम सामाजिक रूप से सक्रिय होते हैं तो किसी धर्म, समाज, जाति, क्षेत्र से बंधे नहीं रह सकते। यह सामाजिक एकता के लिए भी उचित नहीं है। मुझे आपका लेख अच्छा लगा। आपके स्नेह के लिए आभारी हूं। दुनिया बहुत छोटी है। निश्चित रूप से हम मिलेंगे।
      निर्झर टाइम्स एक साप्ताहिक समाचार पत्र है। सीमित संसाधनों से बहुत छोटे स्तर से इसकी शुरूआत की गयी है। इस पत्र से सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों को जोड़ने का मेरा प्रयास है।
      आशा है आप स्नेह बनाए रखेंगे।

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  4. प्रसंसनीय कदम,मेरी रचना को इस योग्य समझने के लिए आभार.

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केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

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