यह यशोदा जी की पहली कविता है।
हे ईश्वर.....
सदियों से बने हुए हो
मूर्ति तुम....
...........
तुम्हें परोस कर
खिलाने का बहाना
अब त्याग दिया
लोगों ने ....
अब
नोच-नोच कर
खाने लगे हैं तुम्हें ही
तुम पर आस्थावान
लोगों को
मोहरा बनाकर .....
- यशोदा
इससे अच्छी व्याख्या आज के धर्म और आस्था की नहीं हो सकती।
ReplyDeleteशुक्रिया बृजेश भाई
Deleteवर्ड व्हेरिफिकेशन हटवा दें
आपने तो लिखा है ''मै किसी भी प्रकार की लेखिका नही हूं'' इस कविता मे मुझे एक उत्कृष्ट लेखिका के दर्शन हुए.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबधाई यशोदा.
शुभकामनाएं.
अनु