Sunday 28 December 2014

संगीता शर्मा की दो कविताएँ

          संगीता शर्मा ‘अधिकारी’

चाय की प्याली

चाय की प्याली का
होठों तक आते-आते रुक जाना
उड़ने देना भाप को
ऊँचा और ऊँचा
उस ऊँचाई के ठीक नीचे से
सबकी नज़रे बचा
प्याली का बट जाना
दो हिस्सों में
आज भी बहुत सताता है
आज भी बहुत याद आता है ।
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ग्लोबल वार्मिंग

बाहर-भीतर
भिन्न व्यवहार करना
गिरगिट की मानिंद
रंग बदलना
स्वयं का दंभ भरना
अपनी कुटिल हँसी में
सैकड़ों को निपटाना
तो कोई आपसे सीखे

यही विशेषण
आपको कुर्सी पर जमाए हुए है
किन्तु ‘सावधान‘
ग्लोबल वार्मिंग में
सब कुछ
पिघलने लगा है |

Saturday 27 December 2014

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा की दो लघुकथाएँ

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

बाल श्रम
कई प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पदधारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थीं. पर्स और फाइल को मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गईं. झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से उनकी गोद में कूद गया.

"रमिया! पहले एक ग्लास पानी ला... फिर एक कप गर्म-गर्म चाय......" 

दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिए सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.

"ये बता री, आज पप्पी को टहलाया था?"


"माफ़ कर दो मेम साब, सारा दिन बर्तन माँजने, घर की सफाई और कपडे धोने में निकल गया इसलिए आज पप्पी को टहला नहीं पाई...."
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आइना 

नीलम, जब से तुम इस घर में ब्याह के आई तभी से घर-बाहर, टॉयलेट आदि की साफ-सफाई करती रही हो. अब ये सब कैसे होगा डॉक्टर ने तुम्हें शारीरिक श्रम हेतु मना किया है। क्यों न इस कार्य हेतु किसी को रख लिया जाए. 
नीलम ने सकुचाते हुए कहा, मुझे कोई आपत्ति नहीं पर आप तो महात्मा गाँधी के सच्चे अनुयायी हैं। 

अनुपमा सरकार की कविता



                अनुपमा सरकार

हाथों की लकीरों में


जाने क्या ढूँढती हूँ
हाथों की इन लकीरों में
शायद उलझे सपने, झूठी ख्वाहिशें
बेतरतीब ख्वाब, अनसुलझे सवाल और...
और क्या!

अरे! ढूँढने से कभी कुछ मिला है क्या?
ये लकीरें, तकदीरें तो
पलटती ही रहती हैं हर पल
मौसम की तरह
बस, जब जो मिले
वह काफी नहीं होता

है जीवन एक अनंत सफर
और हम अनथक पथिक
राहें समझते-समझते
मंज़िलें बदल जाती हैं

Sunday 21 December 2014

क्यों न तुझे ही

किरण सिंह

शब्द चुनकर छन्द में गढ़ 
उठे मन के भावना भर
सुन्दर सॄजन कर डालूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ


कोरा कागज़ मन मेरा है
जहाँ तुम्हारा चित्र सजा है
तेरे प्रीत से चित्र रंगा लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ


नित्य भोर उठ प्रीति भैरवी
हाथ जोडकर करूँ पैरवी
रागिनियाँ संग राग मिला लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ


शाम सुनहरी सज रही है
ताल लय में बज रही है
तुझ संग गीतों को मैं गा लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ


रात चाँद और तारे प्रहरी
नयन देखते स्वप्न सुनहरी
कुछ पल तेरे संग बिता लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ


Sunday 14 December 2014

अभिनव अरुण को ‘’आगमन साहित्य सम्मान‘’

          आगमन वार्षिक सम्मान समारोह रविवार दिनांक 23 नवम्बर 14 को कैलाश हॉस्पिटल, नोएडा के प्रेक्षागृह  में आयोजित किया गया | कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ० केशरी लाल वर्मा (चेयरमैन, तकनीकी एवं वैज्ञानिक शब्दावली आयोग एवं निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली) ने की  तथा "काव्य-संध्या" सत्र की अध्यक्षता मशहूर शायर डॉ० गुलज़ार देहलवी एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रो० लल्लन प्रसाद ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ० मधुप मोह्टा (वरिष्ठ साहित्यकार एवं भारतीय विदेश सेवा) तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सर्वश्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई (उपमहानिदेशक, आकाशवाणी, नई दिल्ली), डॉ० हरि सुमन विष्ट (सचिव, हिंदी अकादमी, दिल्ली), डॉ० रमा सिंह (वरिष्ठ गीतकार एवं कवयित्री) एवं आलोक यादव (क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त, बरेली) उपस्थित रहे। इस अवसर पर आकाशवाणी वाराणसी में वरिष्ठ उद्घोषक एवं युवा ग़ज़लकार अभिनव अरुण को साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए ‘’आगमन साहित्य सम्मान २०१४‘’ प्रदान किया गया इस अवसर पर 4 पुस्तकों एवं 1 एल्बम का लोकार्पण भी  हुआ। देशभर से 20 से अधिक कवि-कवयित्रियों व साहित्यकारों को सम्मानित किया गया तथा 70 से अधिक रचनाकारों ने काव्यपाठ किया। कार्यक्रम का सञ्चालन लोकप्रिय गीतकार डॉ० अशोक मधुप, आकाशवाणी उदघोषिका सुश्री अल्पना सुहाषिनी एवं
हास्य व्यंग्य कवयित्री सुश्री बलजीत कौर ने किया। कार्यक्रम का संयोजन आगमन समूह के संस्थापक एवं संयोजक श्री पवन जैन एवं श्री एम० के० चोपड़ा द्वारा किया गया। श्री मनोज कामदेव ने सभी आए हुए अतिथियों, साहित्यकारों, कवियों एवं पत्रकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
                                                                       -       
अभिनव अरुण

माँ


- राम दत्त मिश्र अनमोल

सपने में माँ मिलती है।
कली हृदय की खिलती है।।

करुणा की है वो मूरत,
आँसू देख पिघलती है।

सुखी रहे मेरा जीवन,
नित्य मनौती करती है।

बिठा के मुझको गोदी में,
सौ-सौ सपने बुनती है।

उसकी तो नाराजी भी,
आशीषों-सी फलती है।

नहीं किसी के दल में है,
नहीं किसी से जलती है।

भटक न जाऊँ कभी कहीं,
थाम के अँगुली चलती है।

दुख-तम हरने को  ‘अनमोल’,
दीप सरीखी जलती है।।

‘सारांश समय का’ लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्रमें 'शब्द व्यंजना' और 'सन्निधि संगोष्ठी' के संयुक्त तत्वाधान में 'सारांश समय का' कविता-संकलन का लोकार्पण समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया.


कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसून लतांत ने की, जबकि लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्य अतिथि एवं रमणिका गुप्ता, डॉ. धनंजय सिंह, अतुल प्रभाकर विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित थे. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत थे तथा संचालन
महिमा श्री ने किया.
इस आयोजन में बड़ी संख्या में कवि, लेखक तथा साहित्य प्रेमी सम्मिलित हुए. कार्यक्रम दोपहर ढाई बजे से शाम सात बजे तक चला.
'सारांश समय का' कविता संकलन का संपादन बृजेश नीरज और अरुण अनंत ने किया है.  इस संकलन में अस्सी रचनाकारों की बेहतरीन कविताएँ सम्मिलित हैं जिसकी सराहना अतिथियों ने की. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कविताओं के चयन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संकलन हिन्दी साहित्य के लिए शुभ संकेत देता है. इसमें कई मुक्कमल कविताएँ हैँ. उन्होंने संकलन में सम्मिलित कई कविताओं का सस्वर पाठ कर रचनाकारों को प्रोत्साहित किया. 
उन्होंने कहा कि १२५ करोड़ के देश में अगर ८० लाख लोग भी यदि कवि हो जाएँ तो समाज बेहतर हो जाएगा.  कविता अभी संकट में हैकई विधाएँ लुप्त हो रही है उन पर भी काम होना चाहिए. वाचिक परम्परा समाप्त हो रही है, पहले एक शेर, एक कविता भी हलचल मचा देती थी. बिना साधन के जहाँ बिजली भी नहीं थी उस गाँव में भी कविता पढ़ी जाती थी. आज शब्दों की चाट परोसी जाती है.  हिन्दी में मंच पर हल्के स्तर की कविताऐं कही जाती हैं. एक अलग ही तरह का गणित है. गम्भीर रचनाकारों ने मंच से दूरी बना ली है. साहित्य का विघटन हुआ है. साम्प्रदायिकता पैदा की गई है. इससे कविता को बड़ा नुकसान हुआ है. उर्दू में ये बंटवारा नहीं है, मंच से दूरी नहीं है. निदा फ़ाज़ली ग़ज़ल पढ़ने मस्कट भी जाते हैं.


मुख्य वक्ता अरुण कुमार भगत का कहना था कि कविता अणु से अनंत की यात्रा है. कविता की विशेषता और लिखने से पहले की रचनाकारों की संवेदनाओं के घनीभूत होने की आवश्यकता के बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि कविता पाठक के सीधे ह्रदय तक पहुँचती है और हर पाठक अपनी तरह से उसकी अभिव्यंजना करता है. पाठक कविता के लिए तथ्य समाज से लेता है और स्वयं के साथ समाज को भी रचना के साथ जोड़ता है. कविता में जो असर और क्षमता है वह किसी अन्य विधा में नहीं है. कविता में जन समाज को आंदोलित करने की क्षमता है. स्वतंत्रता काल हो या आपातकाल कवियों ने अपनी लेखनी से समाज को झकझोरा भी और दिशा भी दी. समाज में व्याप्त संताप, पीड़ा, दुःख को कवियों ने बखूबी रेखांकित किया. उन्होंने कहा रचना सयास नहीं लिखी जाती है, ये उतरती है, माजिल होती है, प्रकट होती है. अपनी बात को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से जन-जीवन के कृष्णपक्ष को ही बड़ी संख्या में रेखांकित करने की परम्परा चल पड़ी है. देश और समाज में भोग गया यथार्थ इन रचनाओं में है पर अगर रचना को कालजयी करना है तो जीवन के शुक्लपक्ष को भी रेखांकित करना होगा.

रमणिका गुप्ता ने अपनी बात कहते हुए कहा आज जन सरोकार का चलन है उसी विषय को माध्यम बनाकर लिखा जाना चाहिए. लोगों तक आपकी बात पहुँचेगी, लोगों के विचारों में परिवर्तन आएगा. उन्होंने कहा मैं आदिवासीयों, पीड़ित दलितों और स्त्रियों के बीच उनके समस्याओं के निवारण के लिए लम्बे समय से काम कर रही हूँ आप भी इन सरोकारों को लेकर लिखें.
आयोजन दो सत्रों में चला. लोकार्पण सत्र में डॉ धनजंय सिंह, अतुल कुमार, लतांत प्रसून व संग्रह के सम्पादक द्वय बृजेश नीरज और अरुन अनंत ने भी अपनी बात रखी.


लोकार्पण के बाद काव्य गोष्ठी में कवि और कवियत्रियों ने उत्साह के साथ अपनी प्रस्तुति दी. आयोजन की उपलब्धि रही कि हर विधा में रचना पढ़ी गयी. गीत, नवगीत, ग़ज़ल, घनाक्षरी, कुंडलिया, अतुकांतपद्य की सभी प्रचलित विधाओं की रचनाएँ सुनी और सुनायी गईं. कार्यक्रम के अंत में किरण आर्या ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

                                                                   - महिमा श्री


केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

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