Monday 15 July 2013

झाड़खंड का दुर्भाग्य !

१५ नवम्बर २००० को बिहार के प्राकृतिक संसाधन से भरपूर वनांचल क्षेत्र को झारखण्ड नाम देकर अलग कर दिया गया. तर्क यह दिया गया कि छोटे राज्य होने से विकास की संभावनाएं बढ़ेगी. अधिकांश उद्योग धंधे और खनिज सम्पदा इसी क्षेत्र में है, बिहार का बाकी हिस्सा मैदानी इलाका है, जहाँ कृषि पैदावार अच्छी होती है.
वस्तुत: राजनैतिक स्तर पर 1949 में जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन हुआ जो पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में पूरी तरह से दबंग पार्टी रही। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की भी माँग हुई जिसमें तत्कालीन बिहार के अलावा उड़ीसा और बंगाल का भी क्षेत्र शामिल था। आयोग ने उस क्षेत्र में कोई एक आम भाषा न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 1950 के दशकों में झारखंड पार्टी बिहारमें सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका में रहा, लेकिन धीरे धीरे इसकी शक्ति में क्षय होना शुरु हुआ। आंदोलन को सबसे बड़ा आघात तब पहुँचा, जब 1963 में जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी को बिना अन्य सदस्यों से विचार विमर्श किये कांग्रेस में विलय कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप छोटानागपुर क्षेत्र में कई छोटे-छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ जो आमतौर पर विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी और विभिन्न मात्राओं में चुनावी सफलताएँ भी हासिल करती थीं।
१५ नवम्बर २००० से १८ मार्च २००३ तक भाजपा के बाबूलाल मरांडी झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे. बाद में पार्टी में आतंरिक विरोध के चलते बाबूलाल मरांडी को कुर्सी छोड़नी पड़ी और अर्जुन मुंडा को मुख्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद शिबू सोरेन मात्र दस दिन के लिए मुख्य मंत्री बने, और समर्थन नहीं जुटा पाने के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा. फिर अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, अर्जुन मुंडा और फिर राष्ट्रपति शासन. अब उम्मीद है कि शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत शोरेन कांग्रेस के समर्थन से झारखण्ड के मुख्य मंत्री बनने वाले हैं, मतलब कुल १३ साल के ही अन्दर इस राज्य को तीन बार राष्ट्रपति शासन और नौ मुख्य मंत्री को झेलना पड़ा.
शिबू सोरेन का दुर्भाग्य या अति महत्वाकांक्षा ही कहा जायेगा कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद भी वे मुख्य मंत्री के रूप में ज्यादा दिन स्वीकार नहीं किये गए. इन्हें इस क्षेत्र का गुरूजीभी कहा जाता है. इन्हें दिशोम गुरुकी उपाधि से भी नवाजा गया है. शिबू सोरेन ने झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. कई बार सांसद और मंत्री भी बने. पर हमेशा विवादों में रहे. नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए इन्होने अपने पांच सांसदों के साथ घूस भी लिया था. साथ ही कई हत्याकांडों में आरोपित रहे, सजा भी काटी, बीमार भी रहे, पर पुत्र-मोह में अभी वे धृतराष्ट्र को भी मात देने वाले हैं.
उनके सुपुत्र झारखण्ड के मुख्य मंत्री तो आगामी १३.०७.१३ को बन जायेंगे, पर इसके लिए उन्हें कितना समझौता करना पड़ा है, यह तो धीरे धीरे सामने आने ही वाला है. कांग्रेस इन्हें पूरी तरह से चंगुल में ले चुकी है और हेमंत सोनिया के काल्पनिक गोद में बैठ चुके हैं. झारखण्ड विकास पार्टी के सांसद डॉ. अजय कुमार विधायको के खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुए, प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख चुके हैं. उनके अनुसार करोड़ो में बिकने वाले विधायक जनता का क्या काम करेंगे, यह बात किसी के समझ से बाहर नहीं है.
अब तक जितनी पार्टियों की सरकारें यहाँ बनी है सभी ने झारखण्ड का भरपूर दोहन किया है. विकास के नाम पर प्रगति- जीरो. आदिवासियों की हालत और बदतर हुई है, नक्सल आतंक बढ़ा है, उद्योगपतियों, ब्यावासयियों, राजनेताओं की भी हत्या आम बात है. सड़कें, राष्ट्रियों मार्गों की हालत बदतर है. बिजली की हालत ऐसी है कि कल शिबू सोरेन के घर जब मीटिंग चल रही थी, तभी बिजली गुल हो गयी, अन्य समयों की बात क्या कही जाय! उद्योग विस्तार में, केवल टाटा स्टील का जमशेदपुर स्थित कारखाने की क्षमता का विकास हुआ है. इसमे राज्य सरकार का योगदान नगण्य है. १२ मिलयन टन टाटा स्टील का प्रस्तावित ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है. अन्य औद्योगिक घराना यहाँ उद्योग लगाना चाहते हैं, पर राजनीतिक उठापटक के दौर में कुछ खास होता हुआ नहीं दीखता.
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा पहले भाजपा के साथ थी अब कांग्रेस के साथ है. इस तरह भाजपा का ह्रास हुआ और कांग्रेस की राजनीतिक ताकत में वृद्धि. ऐसे में बाबा रामदेव का शिबू शोरेन से आकर उनके घर में मुलाकात करना और पुराना सम्बन्ध बताना समझ से परे है. बाबा रामदेव की कूटनीति की, यहाँ क्या जरूरत थी; हो सकता है, बाद में समझ में आवे. पर जो कुछ राजनीतिक नाटक आजकल पूरे देश में चल रहा है, वह कहीं से भी भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है.
उत्तराखंड की त्रासदी का विद्रूप चेहरा और उसपर राजनीति दलों की, लाश पर की जाने वाली राजनीति भयावह है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अभी भी अनगिनत लाशें यत्र तत्र सर्वत्र दीख रही हैं. पूरी तरह से बर्बाद लोग या तो घर बार छोड़ने को मजबूर हैं या अपनी किस्मत का रोना रो रहे हैं. सरकार के अनुसार राहत कार्य पूरा हो चूका है. पर जो दृश्य देखने को मिल रहा है वह भयावह है. पूरा देश दिल खोलकर मदद कर रहा है, प्रधान मंत्री और राज्य सरकार की घोषनाएं हुई है, पर धरातल पर कितना उतरता है, देखना बाकी है.
पहले नरेन्द्र मोदी की केदारनाथ मंदिर को आधुनिक बनाने का प्रस्ताव और अब अमित शाह का राम मंदिर राग. भाजपा पूरी तरह हिंदुत्व की और बढ़ रही है और अन्य विपक्षी पार्टियाँ इसको विरोध करते हुए सेक्युलर राग अलापते हुए पास आती जा रही हैं. हस्र क्या होगा भविष्य के गर्भ में है. इस साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता में पूरा देश दो हिस्सों में बँट जायेगा और भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि का मुद्दा शांत हो जायेगा….
राजनीतिक पंडित अपना अपना आकलन करेंगे ..हमने अपना विचार प्रस्तुत किया है ..बस!
जय हिन्द!
             -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
 (यह लेख निर्झर टाइम्स के 15 जुलाई, 2013 के अंक में प्रकाशित है।)

बहू जो बन गई बेटी

आज तो सुबह सुबह ही पड़ोस के मोहन बाबू के घर से लड़ने झगड़ने की जोर जोर से आवाजें आने लगी| लो जी, आज के दिन की अच्छी शुरुआत हो गई सास बहू की तकरार से| ऐसा क्यों होता है जिस बहू को हम इतने चाव और प्यार से घर ले कर आते है, फिर पता नही क्यों और किस बात से उसी से न जाने किस बात से नाराजगी हो जाती है| जब मोहन बाबू के इकलौते बेटे अंशुल की शादी एक, पढ़ी लिखी संस्कारित परिवार की लड़की रूपा से हुई थी तो घर में सब ओर खुशियों की लहर दौड़ उठी थी| मोहन बाबू ने बड़ी ईमानदारी और अपनी मेहनत की कमाई
से अंशुल को डाक्टर बनाया| मोहन बाबू की धर्मपत्नी सुशीला इतनी सुंदर बहू पा कर फूली नही समा रही थी लेकिन सास और बहू का रिश्ता भी कुछ अजीब
सा होता है और उस रिश्ते के बीचों बीच फंस के रह जाता है बेचारा लड़का, माँ का सपूत और पत्नी के प्यारे पतिदेव, जिसके साथ उसका सम्पूर्ण जीवन
जुड़ा होता है| कुछ ही दिनों में सास बहू के प्यारे रिश्ते  की मिठास खटास में बदलने लगी| आखिर लडके की माँ थी सुशीला, पूरे घर में उसका ही
राज था, हर किसी को वह अपने ही इशारों पर चलाना जानती थी और अंशुल तो उसका राजकुमार था, माँ का श्रवण कुमार, माँ की आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर| ऐसे में रूपा ससुराल में अपने को अकेला महसूस करने लगी लेकिन वह सदा अपनी सास को खुश रखने की पूरी कोशिश करती लेकिन पता नही उससे कहाँ चूक हो जाती और सुशीला उसे सदा अपने ही इशारों पर चलाने की कोशिश में
रहती| कुछ दिन तक तो ठीक रहा लेकिन रूपा मन ही मन उदास रहने लगी| जब कभी दबी जुबां से अंशुल से कुछ कहने की कोशिश करती तो वह भी यही कहता, ''अरे भई माँ है'' और वह चुप हो जाती| देखते ही देखते एक साल बीत गया और धीरे धीरे रूपा के भीतर ही भीतर अपनी सास के प्रति पनप रहा आक्रोश अब ज्वालामुखी बन चुका था| अब तो स्थिति इतनी विस्फोटक हो चुकी थी किदोनों में बातें कम और तू तू मै मै अधिक होने लगी| अस्पताल से घर आते ही माँ और रूपा की शिकायतें सुनते सुनते परेशान हो जाता बेचारा अंशुल| एक
तरफ माँ का प्यार और दूसरी ओर पत्नी के प्यार की मार, अब उसके लिए असहनीय
हो चुकी थी| आखिकार एक हँसता खेलता परिवार दो भागों में बंट गया और मोहन बाबू के बुढापे की लाठी भी उनसे दूर हो गई| बुढापे में पूरे घर का बोझ अब
मोहन बाबू और सुशीला के कन्धों पर आ पड़ा| उनका शरीर तो धीरे धीरे साथ देना छोड़ रहा था, कई तरह की बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था, उपर से दोनों भावनात्मक रूप से भी टूटने लगे| दिन भर बस अंशुल की बाते ही करते रहते ओर उसे याद करके आंसू बहाते रहते| उधर बेचारा अंशुल भी माँ बाप से
अलग हो कर बेचैन रहने लगा, यहाँ तक कि अपने माता पिता के प्रति अपना कर्तव्य पूरा न कर पाने के कारण खुद अपने को ही दोषी समझने लगा और इसी
कारण से पति पत्नी के रिश्ते में भी दरार आ गई| समझ में नही आ रहा था की आखिकार दोष किसका है? रूपा ससुराल से अलग हो कर भी दुखी ही रही| यही सोचती रहती अगर मेरी सास ने मुझे दिल से बेटी माना होता तो हमारे परिवार में सब खुश होते| उधर सुशीला अलग परेशान| वह उन दिनों के बारे
सोचती जब वह बहू बन कर अपने ससुराल आई थी, उसकी क्या मजाल थी कि वह अपनी सास से आँख मिला कर कुछ कह भी सके, लेकिन वह भूल गई थी कि उसमे और रूपा में एक पीढ़ी का अंतर आ चुका है| उसे अपनी सोच बदलनी होगी, बेटा तो उसका
अपना है ही वह तो उससे प्यार करता ही है, उसे रूपा को माँ जैसा प्यार देना होगा अपनी सारी  दिल की बाते बिना अंशुल को बीच में लाये सिर्फ रूपा
ही के साथ बांटनी होगी| उसे रूपा को  अपनाना होगा, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से उसका साथ देना होगा| देर से आये दरुस्त आये| सुशीला को अपनी गलती का अहसास हो चुका  था और वह अपने घर से निकल  पड़ी रूपा को
मनाने|
            - रेखा जोशी
परिचय
रेखा जोशी
जन्म : 21 जून 1950 ,अमृतसर
शिक्षा : एम् एस सी [भौतिक विज्ञान] बी एच यू
आजीविका : अध्यापन, के एल एम् डी एन कालेज फार वीमेन, फरीदाबाद
हेड आफ डिपार्टमेंट, भौतिकी विभाग [रिटायर्ड]
कार्यकाल में आल इण्डिया रेडियो, रोहतक से विज्ञान पत्रिका के अंतर्गत अनेक बार वार्ता प्रसारण, कई जानी मानी हिंदी की मासिक पत्रिकाओं में लेख
एवं कहानियों का प्रकाशन।
अन्य गतिविधिया :
1- जागरण जंक्शन.काम पर ब्लॉग लेखन
२- ओपन बुक्स आन लाइन पर ब्लॉग लेखन
३- गूगल ओशन आफ ब्लीस  पर रेखा जोशी .ब्लाग स्पॉट.काम पर लेखन
४- कई इ पत्रिकाओं में प्रकाशन
(यहरचनानिर्झर टाइम्स के 15 जुलाई, 2013 के अंक में प्रकाशित है।)

Sunday 14 July 2013

जीवन

सादर अभिनन्दन सुधी वृन्द... 
महानुभावों! 
       आज बड़े ही हर्ष के साथ आपसे मुखातिब हो रही हूं,जिसके दो कारण हैं। एक तो यह कि एक लम्बे अन्तराल के बाद पूरे हृदय के साथ आपके समक्ष उपस्थित हो पा रही हूं और दूसरा ये कि हमारे सहयोगी आदरणीय श्री अरुन शर्मा जी के आँगन 'कन्या रत्न' का अवतरण हुआ है। हम अरुन भाई से हम मिठाई नहीं खा सकते कोई बात नहीं पर शब्द सुमन तो साझा कर सकते हैं न! इस खुशी के अवसर आदरणीय अरुन जी के साथ सम्पूर्ण समाज को,मैं एक महिला होने के नाते, महान विद्वान समर्सेट माम (Somerset Maughm) के कुछ शब्द समर्पित करना चाहूंगी- 
''A woman will always sacrifice herself if YOU give her opportunity. It is Favourite FORM for SELF INDULGENCE.'' 
        अब चलते हैं कुछ ऐसे लिंक्स पर, जो मुझे प्रभावित करने में सफल रहे। बाकी आप जरूर बताइगा कैसा लगा आज का संकलन-

मूल्यों के गिरते स्तर पर , ये कैसा भारत निर्माण ... नैतिकता के शव पे खड़ा , आज का बदलता हिंदुस्तान .... ये कैसा भारत निर्माण ... 















The bride kissed her father and placed some thing in his hand.  Everyone in the room was wondering what was given to the father by the...


आँगन में बिखरे रहे , चूड़ी कंचे गीत आँगन की सोगात ये , सब आँगन के मीत आँगन आँगन तितलियाँ , उड़ती उड़ती जायँ इक आँगन का हाल ल...





 खामोशियों के बंद दरवाज़े जिस आँगन में खुलते हैं वहाँ समय और गति के सारे समीकरण अपना अर्थ खो बैठे हैं...यहाँ एक ऐसा ब्लैक होल है जहां आकाश ...




  अन्त करते हैं ऋग्वेद की एक वेदोक्ति से- 
अचिकित्वांचिकितुषश्चिदत्र कवीन्पृच्छामि विद्मने न विद्वान। 
वि यस्तस्तम्भ षडिमा रजांस्यजस्य रूपे किमपि स्विदेकम्
 (मनुष्य संसार के विभिन्न रहस्यों को जानने का प्रयत्न अवश्य करे। जब तक वह संसार का आत्मिक और परमार्थिक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता तब तक मनुष्य जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं होता है।)

फिर मिलेंगे... 
तब तक के लिए नमस्कार!

Sunday 7 July 2013

रसखान के दोहे

प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम जानत कोइ।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥

कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार।
अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥

काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सर्य।
इन सबहीं ते प्रेम है, परे कहत मुनिवर्य॥

बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि।
सुद्ध कामना ते रहित, प्रेम सकल रसखानि॥

अति सूक्ष्म कोमल अतिहि, अति पतरौ अति दूर।
प्रेम कठिन सब ते सदा, नित इकरस भरपूर॥

प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान।
जो आवत एहि ढिग बहुरि, जात नाहिं रसखान॥

भले वृथा करि पचि मरौ, ज्ञान गरूर बढ़ाय।
बिना प्रेम फीको सबै, कोटिन कियो उपाय॥

दंपति सुख अरु विषय रस, पूजा निष्ठा ध्यान।
इन हे परे बखानिये, सुद्ध प्रेम रसखान॥

प्रेम रूप दर्पण अहे, रचै अजूबो खेल।
या में अपनो रूप कछु, लखि परिहै अनमेल॥


हरि के सब आधीन पै, हरी प्रेम आधीन।
याही ते हरि आपु ही, याहि बड़प्पन दीन॥

Saturday 29 June 2013

पिता

सभी मित्रों को नमस्कार!
आज के साप्ताहिक प्रसारण में प्रस्तुत हैं -
'गुजारिश' (http://guzarish6688.blogspot.in/) द्वारा पितृ दिवस पर आयोजित प्रतियोगिता में चयनित रचनायें।

(1)

  पिता

घिरा जब भी अँधेरों में सही रस्ता दिखाते हैं ।
बढ़ा कर हाँथ वो अपना मुसीबत से बचाते हैं ।।


बड़ों को मान नारी को सदा सम्मान ही देना ।

पिता जी प्रेम से शिक्षा भरी बातें सिखाते हैं ।।


दिखावा झूठ धोखा जुर्म से दूरी सदा रखना ।

बुराई की हकीकत से मुझे अवगत कराते हैं ।।


सफ़र काटों भरा हो पर नहीं थकना नहीं रुकना ।

बिछेंगे फूल क़दमों में अगर चलते ही जाते हैं ।।


ख़ुशी के वास्ते मेरी दुआ हरपल करें रब से ।

जरा सी मांग पर सर्वस्व वो अपना लुटाते हैं ।।


मुसीबत में फँसा हो गर कोई बढ़कर मदद करना ।

वही इंसान हैं इंसान के जो काम आते हैं ।।


                               - अरुण शर्मा 'अनन्त

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(2)

पिता 


चलते-चलते कभी न थकते,ऐसे होते पाँव!

पिता ही सभी को देते है,बरगद जैसी छाँव!! 


परिश्रम करते रहते दिनभर,कभी न थकता हाथ!

कोई नही दे सकता कभी, पापा जैसा साथ!!


बच्चो के सुख-दुःख की खातिर,दिन देखें न रात!

हरदम तैयार खड़ें रहते,देने को सौगात!!


पिता नही है जिनके पूछे,उनके दिल का हाल!

नयन भीग जाते है उनके,हो जाते बेहाल!!


हमारे बीच में नही पिता,तब आया है ज्ञान!  

हर पग पर आशीर्वाद मिले,चाहे हर संतान!!  


                                       - धीरेन्द्र सिंह भदौरिया

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(3)

  "बाबुल की दुआएं लेती जा -जा तुझको सुखी संसार मिले"
 "जिस द्वार पे जाए डोली उसी द्वार से निकले अर्थी "
 "मुझे चढ़ना है स्वर्ग की सीढियाँ 
इसलिये चाहिए कुलदीपक "
 आज का पिता 
नहीं कहता ये सब बातें। 
बेटा चिराग तो बेटी रौशनी 
बेटा सांस  तो बेटी ज़िन्दगी
बेटा मुस्कान तो बेटी है खुशी 
बेटा फूल तो बेटी कोमल- कली 
दोनों ही उसकी आँखों का तारा   
दोनों के कंधों का लेता है सहारा 
उसके बुढापे का दोनों हैं आसरा   


                                  - पुनीता सिंह 

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(4)

ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू ...
छोड़ इस लोक को ऐ बाबुल
परलोक में अब रहता है तू
 कैसे बताऊं तुझको ऐ बाबुल
मेरे मन में अब बसता है तू
 बन गए हैं सब अपने पराये
न होकर कितना खलता है तू
 देख माँ की अब सूनी कलाई
आँखों से निर्झर बहता है तू
 पुकारे तुझको ‘मन’ साँझ सवेरे
मंदिर में दिया बन जलता है तू  
 ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू....
ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू..... !!

                               - सु..मन
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अब आज्ञा दीजिए!

नमस्कार!


Monday 24 June 2013

हे प्रभु आनंद दाता


हे प्रभु ! आनंद दाता !! ज्ञान हमको दीजिये |
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये ||
हे प्रभु

लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें |
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें ||
हे प्रभु

निंदा किसी की हम किसीसे भूल कर भी न करें |
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें ||
हे प्रभु ………

सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें |
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें ||
हे प्रभु ………

जाये हमारी आयु हे प्रभु ! लोक के उपकार में |
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में ||
हे प्रभु ………

कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा !
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा ||
हे प्रभु ………

प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें |
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें ||
हे प्रभु…

योगविद्या ब्रह्मविद्या हो अधिक प्यारी हमें |
ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करके सर्वहितकारी बनें ||
हे प्रभु…

-        रामनरेश त्रिपाठी

Saturday 22 June 2013

ज़रूरत

सभी साथियों को मेरा नमस्कार!

आज बहुत दिनों बाद आपसे रूबरू हो सकी हूं। आप सबके लिए आज आप ही लोगों के बीच से कुछ लिंक्स चुनकर लायी हूं। देखिए, शायद आपको पसंद आएं!

बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं? बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं? बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।


खूब धन देखिए कमा लाया साथ कितनी वो बद्दुआ लाया काफिले छूट ही गए पीछे कर्म तेरा वो जलजला लाया धूप का साथ काफ...


मर्द की हकीकत  ''प्रमोशन के लिए बीवी को करता था अफसरों को पेश .''समाचार पढ़ा ,पढ़ते ही दिल और दिमाग विषाद और क्रोध स...


PIC-GOOGLE पिछले महीने जावेद अख्तर जी  ने संसद के एक सत्र के दौरान एक मुद्दा उठाया था मातृत्व के सन्दर्भ में ...उनका एक प्रश्न सचमुच दि...


सारा मानवीय इतिहास त्रासदी और अत्याचार की कहानियों से भरा हुआ है। मानव के विकास के क्रम में जब पहली बार किसी मानव के हाथ में किसी प्रक...


मेरे हर प्रेम निवेदन के आक्रोश के संतोष के विक्षोभ के केंद्र में तुम रहते हो एक बिंदु की तरह तुम स्थिर रहते हो अपने स्थान पर और मैं भिन्न...


  --१-- धूप में चलते हुए, इस ख़ुश्क ज़मीन पर  क़दम ठिठके  ज़रा छाँव मिली लगा किसी दरख्त के नीचे आ पहुंची हूँ. ...


उत्तराखंड  की त्रासदी पर हे महादेव! ये तो हम सब जानते हैं , कि आप संहार के देवता है लेकिन हे केदार ! आप तो हैं बड़े उदार , आप तो भो...




(१) आहत खाकर बाण, मृत्यु शय्या पर लेटे, पूछ रहा है देश, कहाँ हैं मेरे बेटे। बचा रहे हैं प्राण, कहीं छुप के वारों से, या वो नीच कपूत, ग...


हकों की बात मत करना मोहब्बत की करो बातें हकों की बात मत करना , कटें खिदमत में दिन-रातें हकों की बात मत करना ! मुनासिब है रहो...
अब आज्ञा दीजिए!
नमस्कार!

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...