Sunday 2 December 2012

ये तो नहीं कि ग़म नहीं


                       -फ़िराक़ गोरखपुरी


ये तो नहीं कि ग़म नहीं
हाँ! मेरी आँख नम नहीं 

तुम भी तो तुम नहीं हो आज 
हम भी तो आज हम नहीं 

अब खुशी की है खुशी
ग़म भी अब तो ग़म नहीं 

मेरी नशिस्त है ज़मीं 
खुल्द नहीं इरम नहीं 

क़ीमत--हुस्न दो जहाँ 
कोई बड़ी रक़म नहीं 

लेते हैं मोल दो जहाँ 
दाम नहीं दिरम नहीं

सोम--सलात से फ़िराक़ 
मेरे गुनाह कम नहीं 

मौत अगरचे मौत है
मौत से ज़ीस्त कम नहीं


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