2015 और 2014 के उस एक क्षण के मिलन में 2015 ने 2014 से पूछा, "बड़े भाई, आपका आशीर्वाद दें, साथ ही अपना अनुभव भी बताएँ, मुझे 365 दिनों का श्वास मिला है, ये दिन कैसे काटूँ ताकि जीवन शांत और अर्थपूर्ण रहे|"
2015 ने कहा, "कोशिश करो कि प्रकृति और मानव के बीच एक सेतु बनो ताकि दोनों एक दूसरे से लाभान्वित हों, उन सारे तत्वों को संभाल कर रखो जो कि मानव-जीवन के लिए उपयोगी हैं| मानव की और अधिक चिंता मत करो, उन्हें तुम्हारे 365 दिनों की उम्मीद देने वाले बहुत से हैं| मानव एक दिन लड़ेगा और दूसरे दिन शांति की बात करेगा| उसके लिए प्रकृति की सुरक्षा से अधिक आवश्यक है स्वयं का भोग, उसके लिये ईश्वरीय शांति पाने से ज़रूरी है अपनी भड़ास निकालना और सत्कर्मों से अधिक आवश्यक है- मीठी-मीठी बातें करना| ये सभी के सभी तुम्हारे दिनों का हवाला देकर होंगे|
लेकिन, एक आवश्यक सच सदैव याद रखना कि तुम्हारे अंतिम दिवस पर कोई रोयेगा नहीं, कोई यह नहीं कहेगा कि तुमने 365 दिनों तक मानव का साथ दिया, प्रत्येक व्यक्ति 2016 के स्वागत में ही खुशियाँ मनायेगा| यह तो मानव का कर्म है, पर तुम इस छोटी सी बात के लिए अपने धर्म से विमुख मत होना|"
- चंद्रेश कुमार छतलानी