हमारे समाज में कहानी का इतिहास मानव सभ्यता के इतिहास जितना ही पुराना है। प्राचीन काल से ही कहानी-किस्से मानव समाज के किसी न किसी रूप में अनिवार्य हिस्से रहे हैं। हम राजा-रानियों की कहानी से लेकर परीकथाओं, साहस-शौर्य गाथाओं, धर्म-नीति और सत्य-कथाओं, सहित कहानी के विविध रूपों के साक्षी रहे हैं। समय, देश-काल और परिस्थितियों के अनुसार कहानी के स्वरूप में भी परिवर्तन हुए हैं। आज लिखी जा रही कहानियों में अपने समय का प्रतिबिंब है, वे आपको केवल मनोरंजन और शिक्षा देने के उद्देश्य से नहीं लिखी जातीं बल्कि आपके आस-पास के खुरदुरे यथार्थ, अपने समय के साथ उपजी विकृतियों, विषमताओं, विद्रूपताओं से आपका परिचय करवाती हैं, जिन्हें पढ़कर आप चिन्तन को विवश हो जाते हैं कि समाज में क्या होना चाहिए और क्या हो रहा है, इस प्रकार कहानीकार अपने उद्देश्य में सफल हो जाता है।
सुपरिचित रचनाकार अरुण अर्णव खरे साहित्य की
लगभग सभी विधाओं में सृजनरत हैं और हाल ही में उनका कहानी सँग्रह 'भास्कर राव इंजीनियर' प्रकाशित होकर पाठकों के सम्मुख आया है। उनके इस कहानी संग्रह में विविध विषयी 14 कहानियाँ संग्रहीत हैं। इन कहानियों से गुजरते वक्त पाठकों को
लगेगा कि वह ऐसी घटनाओं, कहानियों
अथवा पात्रों को कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अपने समाज, अपने आस-पास देख
चुका है। अरुण जी की यह कहानियाँ निश्चित ही उनके जीवनानुभव से उपजी हैं इसलिए पाठक
को इनमें गहरे यथार्थ-बोध का अनुभव होता है।
इन कहानियों में उनके पेशे इंजीनियरिंग का भी प्रभाव, यानी इंजीनियरिंग की पढ़ाई, कोचिंग, एंट्रेंस एग्जाम, दफ्तर की कार्य-प्रणाली आदि सहज रूप से
कहानी का हिस्सा बनते हैं। उनकी कहानियाँ आज के समाज की तमाम चिन्ताओं को प्रकट करते
हुए, पाठक की सम्वेदना को झकझोरने का
महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। वरिष्ठ साहित्यकार भालचंद्र जोशी ने अपनी भूमिका में
लिखा भी है- "अरुण अर्णव खरे की इन कहानियों को पढ़ते हुए भाषा की संवेदन-ऊष्मा
और भावनात्मक विश्वसनीयता के लिए श्रम करते एक जिम्मेदार लेखक के सामाजिक सरोकार
भी स्पष्ट होते हैं।"
संग्रह की प्रथम कहानी 'दूसरा राज महर्षि' आज के उस कटु यथार्थ से हमारा परिचय करवाती है, जिसमें माँ-बाप अपने बच्चों पर अपनी महत्वाकांक्षाओं का
बोझ डाल देते हैं और जीवन में प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा, सफलता के लिए बच्चों पर
भारी दबाव डालते हैं, जिसके कारण बच्चे डिप्रेशन
सहित कई समस्याओं का शिकार होकर कहीं के नहीं रहते। 'भास्कर राव इंजीनियर' सँग्रह
की शीर्षक कहानी है। इंजीनियरिंग की वर्षों तक परीक्षा पास न करने वाला भास्कर राव
एक भला व्यक्ति दूसरों की सदैव मदद करने वाला, अपने गाँव में बिजली की चिन्ता करने वाला, जुनून का पक्का, अंततः इंजीनियरिंग की डिग्री
हासिल कर लेता है, कहानी पाठक के ह्रदय को
छू जाती है। 'देवता' कहानी आदमी के दोगलेपन को उजागर करती महत्वपूर्ण कहानी है। अच्छे-खासे
होनहार लड़के सूरज को साहब निरंजन उनके विभाग में बाबू की नौकरी लगवा देते हैं, उनका खुद का बेटा पढ़ने में फिसड्डी है, फिर भी उसे डोनेशन देकर इंजीनियरिंग करवाते है, पत्नी एवम बेटी के विरोध करने पर उनका यह कहना कि पढ़-लिखकर सब
अफसर बन जाएँगे तो हमारे घर काम कौन करेगा। कहानी बड़ी मार्मिक बन पड़ी है। 'कौवे' कहानी
हमारे समाज में फैले अन्धविश्वास को लेकर बुनी गई है, अगर किसी के सिर पर कौवा बैठ जाए तो उसकी मृत्यु की खबर रिश्तेदारों को भेजकर इसके
अपशकुन से बचा जा सकता है। 'दीपदान' बच्चों के खेल-खेल में आँखों की रोशनी चले जाने पर कथा नायक अपने आपको जीवन भर अपराधी मानता है, और अंततः अपनी आँखों को दान कर स्वयं मौत को गले लगा लेता है। 'आफरीन' हिन्दू-मुस्लिम प्रेम विवाह की बेजोड़ कहानी है। किस प्रकार कट्टर ब्राह्मण
मिसेज रचना त्रिवेदी को उनकी बहू अपने सौम्य व्यवहार से अंततः अपना बना लेती है। 'समरसता' आज आरक्षण
की बहुत बड़ी विसंगति पर एक प्रश्न चिन्ह छोड़ती हुई कहानी है। कैसे एक ही समाज के दो
परिवारों को सरकार की असंगत नीति के कारण, एक को लाभ और दूसरे को हानि झेलना पड़ती है। 'स्टेन्ट' कहानी चिकित्सा जैसे समाज सेवा
के धर्म को डॉक्टरों ने पैसा कमाने का घिनौना पेशा बना लिया है, जहाँ आपके विश्वास का कैसे निर्ममतापूर्वक खून किया जा रहा है, पाठक पढ़कर तिलमिला उठता है। 'सलामी' गुमनामी में मरने वाले खिलाड़ी
की कहानी है, जो अपना जीवन दूसरे की खातिर होम
कर देता है। 'पुरस्कार' कहानी किस प्रकार सफलता के बाद हम अपने गुरु और मार्गदर्शक को भूल सफलता का श्रेय
किसी और को देने की भूल कर बैठते हैं, को लेकर लिखी गई है। 'मकान' संग्रह
की अंतिम कहानी है, जिसमें बताया गया है कैसे
आज की पीढ़ी पैकेज और दौलत की चकाचौंध में अपने घर, परिवार और नाते-रिश्ते सबकुछ भुलाकर अपने
ही सीमित, स्वार्थी संसार में जीना चाहते
हैं।
इस प्रकार इस संग्रह की सभी कहानियाँ पठनीय
हैं, जो पाठक को शुरू से अंत तक बांधे
रहती हैं। कहानियों की भाषा सहज-सरल है।
कृति का आवरण आकर्षक और मुद्रण साफ-सुथरा
है। प्रकाशक और लेखक दोनों को इस महत्वपूर्ण कहानी संग्रह हेतु बहुत-बहुत बधाई।
रचनाकार- अरुण अर्णव खरे
पृष्ठ -
प्रकाशक- लोकोदय प्रकाशन
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घनश्याम मैथिल ‘अमृत’
भोपाल
मो0- 9589251250
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