Tuesday, 19 April 2016

प्रदीप कुशवाहा की कविता

मेरे पन्ने -----------

- प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

जीवन पृष्ठ मेरे
हाथों में तेरे
खुली किताब की तरह
कुछ चिपके पन्ने कह रहे
दास्तान पढ़ने को
है अभी बाक़ी
लौट आया हूँ फिर
चाहता हूँ
रुकूँ अभी
हवा के तेज झोंके
जीवन पृष्ठों को
तेजी से बदलते हुए
चिपका हूँ
दीवार के साथ
बूझेगा अब कौन
न है मधुशाला
न उसमे साकी 

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