Friday 12 December 2014

हाइकु गीत

रक्त रंजित
हो रहे फिर फिर
हमारे गाँव।

हर तरफ
विद्वेष की लपटें
हवा है गर्म,

चल रहा है
हाथ में तलवार
लेकर धर्म,

बढ़ रहें हैं
अनवरत आगे
घृणा के पाँव।

भय जगाती
अपरचित ध्वनि
रोकती पथ,

डगमगाता
सहज जीवन का
सुखद रथ,

नहीं मिलती
दग्ध मन को कहीं
शीतल छाँव।
--- त्रिलोक सिंह ठकुरेला 

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