गज़ल
वफ़ा है
ग़र ज़हां मॆं तॊ हमॆं भी आज़माना है ॥
फ़रॆबी
है ज़माना ग़र पता सच का लगाना है ॥१॥
कटॆ जॊ
शीश सैनिक कॆ सभी सॆ पूछतॆ धड़ वॊ,
बता दॊ
हिन्द का कितना हमॆं कर्जा चुकाना है ॥२॥
कहॆं रॊ
कर शहीदॊं की मज़ारॊं कॆ सुमन दॆखॊ,
नहीं है
लाज सत्ता कॊ फ़कत दामन बचाना है ॥३॥
हमारॆ
ख़ून सॆ लथ-पथ, हुयॆ
इतिहास कॆ पन्नॆ,
हमॆशा
मुल्क की ख़ातिर, हमॆं
जीवन लुटाना है ॥४॥
मिलॆ यॆ
चन्द वादॆ हैं, हमारॆ
खून की कीमत,
शहीदॊं
की शहादत पर, यही
मरहम लगाना है ॥५॥
शराफ़त
की करॆ बातॆं, मग़ज मॆं
रंज पालॆ है,
शरीफ़ॊं
का तरीका यॆ, बड़ा ही
कातिलाना है ॥६॥
चुनौती
है तुझॆ तॆरॆ, अक़ीदॆ
की इबादत की,
खुलॆ
मैदान मॆं आजा, अगर
जुर्रत दिखाना है ॥७॥
नहीं
दॆतॆ दिखाई अब, यहाँ जॊ
लॊग कहतॆ थॆ,
मुहब्बत
थी मुहब्बत है, मुहब्बत
का ज़माना है ॥८॥
शियासत
मौन बैठी है पहन कर चूड़ियाँ दॆखॊ,
शहादत
सॆ बड़ा उनकी नज़र मॆं वॊट पाना है ॥९॥
कभी कॊई
बताता ही,नहीं है
"राज" मुझकॊ यॆ,
हमारॆ
दॆश का रुतबा, हुआ अब
क्यूँ ज़नाना है ॥१०॥
शियासत मौन बैठी है पहन कर चूड़ियाँ दॆखॊ,
ReplyDeleteशहादत सॆ बड़ा उनकी नज़र मॆं वॊट पाना है.
बहुत खूब!
भले सरकार हो जिसकी हमें आंसू बहाना है....
कहॆं रॊ कर शहीदॊं की मज़ारॊं कॆ सुमन दॆखॊ,
ReplyDeleteनहीं है लाज सत्ता कॊ फ़कत दामन बचाना है ॥....शानदार