आप सभी का मूर्ख दिवस पर हार्दिक स्वागत। होली के तुरन्त बाद ‘मूर्ख दिवस’ कुछ अलग ही रंग लेकर आया है। इस रंगे बिरंगे माहौल में साहित्य के कुछ रंग आपके समक्ष प्रस्तुत हैं-
1- मेरी संवेदना: होली और तुम्हारी याद
2- hum sab kabeer hain: प्रेम
3- मेरी धरोहर: मैं शरणार्थी हूं तेरे वतन में..........सुमन वर्मा: कितना दर्द है मेरे जिगर में गली-गली मैं जाऊं आग से ...
4- Kashish - My Poetry: ‘उजले चाँद की बेचैनी’- भावों की सरिता: अपनी शुभ्र चांदनी से प्रेमियों के मन को आह्लादित करता, चमकते तारों से घिरा उजला चाँद भी अपने अंतस में कितना दर्द छुपाये रहता ...
5- मेरी धरोहर: अब क़ुरेदो ना इसे राख़ में क्या रखा है .......काति...: तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला ज़िन्दगी ने मुझे द...
6- ज़रूरत: विक्रम वेताल १०/ नमकहराम: आज होली पर राजा विक्रम जैसे ही दातुन मुखारी के लिए निकला वेताल खुद लटिया के जुठही तालाब के पीपल पेड़ से उतर कंधे पर लद गया दोनों न...
7- जोश में होश खोना | भूली-बिसरी यादें
8- मेरा रचना संसार: मैं तेरा कितना हुआ हूँ ये मुझे याद नहीं...: न जाने कैसे भुलाने लगे हैं लोग मुझे, गए दिनों में गिनाने लगे हैं लोग मुझे। मैं तेरा कितना हुआ हूँ ये मुझे याद नहीं, हाँ तेरी कसम...
बहुत सुन्दर लिंक्स..मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार..
ReplyDeleteआपका स्वागत है।
Deleteबहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग देखकर , बहुत सुंदर . शुभकामनाएं .
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर
आपका आभार!
Deleteबहुत ही बेहतरीन पठनीय लिंकों में अपनी रचना देख अच्छा लगा,सराहनीय प्रयास.
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleterachna ko sthaan dene ke liye hraday se abhaar...!!!
ReplyDeleteWelcome!
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