Sunday 4 November 2012

Poem - Vandana Tiwari



जग का आधार 




अनदेखी अनछुई सी...

डोर या बन्ध, है जग dk आधार ये।

अद्भुत् अनूभूति, है ईश का आभास ये।।
संवेदी सहलाती हुई...
कोमल मैत्री की जकड़न,
विस्फुटित माँ का चुम्बन,
विरहाग्नि का शीतल शमन,
सुखद संगीत, है साहित्य का आकार ये।
अद्भुत अनुभूति...
अपराजिता शक्ति...
मिलन कि प्यास
यादों से मिटती,
रिश्तों की ज्योति
समर्पण से जलती,
देवत्व पाषाण का, है मन्त्रों का सार ये।
अद्भूत अनुभूति, है जग का आधार ये।।
चलती सी छाईं...
प्रेमी की प्रणय कामना,
विह्वल अश्रु की साधना,
इक पूर्णता की भावना,
कवियों कीकल्पना,है गेkपियोंका महारास ये।
अद्भुत अनुभूति , है ईश का आभास ये ।।
उदधि सी गहराई...
परे है Kkfu;ksa के Kku से,
मुक्त है ,मान अभिमान से,
तृप्त है आत्म-बलिदान से,
प्रीति है ये प्रेम है..
है मानस मधुमास ये,
सुधा की विन्दु, है जीवन का प्राण ये।
अद्भुत अनुभूति, है ईश का आभास ये...
                               जग का आधार ये।
                       -oUnuk frokjh
                                 Lkkf[ku] gjnksbZ

No comments:

Post a Comment

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...