Sunday 4 November 2012

Poem - Harivansh Rai Bachchan



लो दिन बीता, लो रात गई




 - बच्चन

लो दिन बीता, लो रात गई,
सूरज ढलकर पच्छिम पहुँचा,
डूबा, संध्या आई, छाई,
     सौ संध्या-सी वह संध्या थी,
क्यों उठते-उठते सोचा था,
     दिन में होगी कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।

धीमे-धीमे तारे निकले,
धीरे-धीरे नभ में फैले,
     सौ रजनी-सी वह रजनी थी
क्यों संध्या को यह सोचा था,
     निशि में होगी कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।

चिड़ियाँ चहकीं, कलियाँ महकी,
पूरब से फिर सूरज निकला,
     जैसे होती थी सुबह हुई,
क्यों सोते-सोते सोचा था,
     होगी प्रातः कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।





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