Sunday, 14 December 2014

लघु कथा- रक्षा बंधन

अलीशा माँ की उँगली पकड़े लगभग घिसटती-सी चली जा रही थी। उसकी नजरें सड़क के दोनों ओर दुल्हन-सी सजी मिठाई और राखी की दुकानों पर टिकी थीं। 
दोनों जब पुष्पा दीदी के घर पहुँचे तो वहाँ भी रक्षा बंधन के पर्व पर जश्न का माहौल था। 
पुष्पा दीदी की पौत्री अंशिका जब अपने भाई अंशु की कलाई में रक्षा सूत्र बाँध रही थी तब कोने में शांत बैठी अलीशा के दिल में उठ रहे भावों को अंशु ने पढ़ लिया। अंशिका जब रक्षा सूत्र बाँध चुकी तो अंशु ने थाली में से एक रक्षा सूत्र उठाया और अलीशा को थमाते हुए अपनी कलाई उसकी ओर बढ़ा दी। 
अलीशा सकपकाते हुए बोली, “मैं मुसलमान....” 

अंशु बोला, “तुम और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ मेरी बहन हो!
- प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

Friday, 12 December 2014

हाइकु गीत

रक्त रंजित
हो रहे फिर फिर
हमारे गाँव।

हर तरफ
विद्वेष की लपटें
हवा है गर्म,

चल रहा है
हाथ में तलवार
लेकर धर्म,

बढ़ रहें हैं
अनवरत आगे
घृणा के पाँव।

भय जगाती
अपरचित ध्वनि
रोकती पथ,

डगमगाता
सहज जीवन का
सुखद रथ,

नहीं मिलती
दग्ध मन को कहीं
शीतल छाँव।
--- त्रिलोक सिंह ठकुरेला 

राहुल देव - परिचय



राहुल देव
जन्म- 20 मार्च 1988
माता- श्रीमती मंजू श्रीवास्तव
पिता- श्रीप्रकाश
शिक्षा- एम.ए. (अर्थशास्त्र), बी.एड.
प्रकाशित– एक कविता संग्रह, पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतरजाल मंचों पर कवितायें/लेख/ कहानियां/ समीक्षाएं आदि|
शीघ्र प्रकाश्य- एक बाल उपन्यास एक कविता संग्रह तथा एक कहानी संग्रह|
सम्मान- अखिल भारतीय वैचारिक मंच, लखनऊ तथा हिंदी सभा, सीतापुर द्वारा पुरुस्कृत|
रूचि- साहित्य अध्ययन, लेखन, भ्रमण
सम्प्रति- उ.प्र. सरकार के एक विभाग में कार्यरत|
संपर्क सूत्र- 9/48 साहित्य सदन, कोतवाली मार्ग, महमूदाबाद (अवध), सीतापुर, उ.प्र. 261203
मो.– 09454112975
ईमेल- rahuldev.bly@gmail.com

त्याग और समर्पण ही सच्चा प्रेम है

एक स्त्री का जब जन्म होता है तभी से उसके लालन-पालन और संस्कारों में स्त्रीयोचित गुण डाले जाने लगते हैं| जैसे-जैसे वह बड़ी होती है उसके
अन्दर वे गुण विकसित होने लगते हैं| प्रेम, धैर्य, समर्पण, त्याग ये सभी भावनाएँ वह किसी के लिए संजोने लगती है और यूँ ही मन ही मन किसी अनजाने-अनदेखे राजकुमार के सपने देखने लगती है और उसी अनजाने से मन ही मन प्रेम
करने लगती है| किशोरावस्था का प्रेम यौवन तक परिपक्व हो जाता है, तभी दस्तक होती है दिल पर और घर में राजकुमार के स्वागत की तैयारी होने लगती है| गाजे-बाजे के साथ वह सपनों का राजकुमार आता है, उसे ब्याह कर ले जाता है जो वर्षों से उससे प्रेम कर रही थी, उसे लेकर अनेकों सपने बुन रही थी|
उसे लगता है कि वह जहाँ जा रही है किसी स्वर्ग से कम नही, अनेकों सुख-सुविधाएँ बाँहें पसारे उसके स्वागत को खड़े हैं| इसी झूठ को सच मानकर
वह एक सुखद भविष्य की कामना करती हुई अपने स्वर्ग में प्रवेश कर जाती है| कुछ दिन के दिखावे के बाद कड़वा सच आखिर सामने आ ही जाता है| सच कब तक छुपा रहता और सच जानकर स्त्री आसमान से जमीन पर आ जाती है| उसके सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं| फिर भी वह राजकुमार से प्रेम करना नहीं छोड़ती| आँसुओं को आँचल में समेटती वह अपनी तरफ़ से प्रेम समर्पण और त्याग करती
हुई आगे बढ़ती रहती है| पर, आखिर कब तक? शरीर की चोट तो सहन हो जाती है पर हृदय की चोट नहीं सही जाती| आत्मविश्वास को कोई कुचले सहन होता है पर आत्मसम्मान और चरित्र पर उँगली उठाना सहन नहीं होता, वह भी अपने सबसे करीबी और प्रिय से| वर्षों से जो स्त्री अपने प्रिय के लम्बी उम्र के
लिए निर्जला व्रत करती है, हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे मत्था टेकती है, हर समय उसके लिए समर्पित रहती है, उसकी दुनिया सिर्फ और सिर्फ उसी तक होती है | एक लम्बी पारी बिताने के बाद भी उससे वह मनचाहा प्रेम नहीं मिलता है, न ही सम्मान तो वह बिखर जाती है| उसके सब्र का बाँध टूट जाता है और फिर उसका प्रेम नफरत
में परिवर्तित होने लगता है, फिर भी उस रिश्ते को जीवन भर ढोती है वह, एक बोझ की तरह|दूसरी तरफ़ क्या वह पुरुष भी उसे उतना ही प्रेम करता है? जिसके लिए एक स्त्री ने सब कुछ छोड़कर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया| वह उसे जीवन भर
भोगता रहा, प्रताड़ित करता रहा, अपमानित करता रहा और अपने प्रेम की दुहाई देकर उसे हर बार वश में करता रहा| क्या एक चुटकी सिन्दूर उसकी माँग में
भर देना और सिर्फ उतने के लिए ही उसके पूरे जीवन उसकी आत्मा, सोच, उसकी रोम-रोम तक पर आधिकार कर लेना यही प्रेम है उसका? क्या किसी का प्रेम जबरदस्ती या अधिकार से पाया जा सकता है? क्या यही सब एक स्त्री एक पुरुष  के साथ करे तो वह पुरुष ये रिश्ता निभा पाएगा या बोझ की तरह भी ढो पाएगा इस रिश्ते को? क्या यही प्रेम है एक पुरुष का स्त्री से? नहीं, प्रेम उपजता है हृदय की गहराई से और उसी के साथ अपने प्रिय के लिए त्याग और समर्पण भी उपजता है| सच्चा प्रेमी वही है जो अपने प्रिय की खुशियों के लिए समर्पित रहे, न केवल सिर्फ छीनना जाने, कुछ देना भी जाने| वही सच्चा प्रेम है जो निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे के प्रति किया जाए, नहीं तो प्रेम का धागा एक बार टूट जाए तो लाख कोशिशों के बाद भी दुबारा नहीं जुड़ता उसमें गाँठ पड़ जाती है और वह गाँठ एक दिन रिश्तों का नासूर बन जाता है, फिर रिश्ते जिए नहीं जाते, ढोए जाते हैं एक बोझ की तरह| शायद इसीलिए रहीम
दास ने कहा है-
             
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय |
             
टूटे से फिर ना जुरै, जुरै गाँठ परि जाय ||


                                      - मीना पाठक
                                                                          कानपुर, उत्तर प्रदेश

Thursday, 11 December 2014

एक सवाल

अँधेरों में जब लिपटी थी रूह मेरी
तुम आए एक रौशनी बनकर

थी चारों तरफ स्याही निराशा की
तुम आए थे उम्मीद बनकर

अमावस की रात मैं थी बनी हुई
तुम आए तब पूर्णिमा का चाँद बनकर

सुलझाने लग गयी मैं जब पहेलियाँ
सवाल बना दिया तुमने परिचय मुझसे तेरा

करने लगी थी मैं मुस्कुराने की कोशिश
तुम चले गए क्यों रूठे हुए, अजनबी बनकर
- मंजु शर्मा 

Thursday, 4 December 2014

‘लाल डोरा और अन्य कहानियाँ’ का लोकार्पण

       
6 नवम्बर, 2014 को 7वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला, इलाहाबाद में प्रो. राजेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कथाकार महेन्द्र भीष्म के कहानी संग्रह लाल डोरा और अन्य कहानियाँका लोकार्पण व परिचर्चा संपन्न हुई।  मुख्य वक्ता श्री प्रकाश मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि महेन्द्र भीष्म को मैंने उनकी कृतियों से जाना है। महेन्द्र भीष्म समाज के अछूते वर्ग को क्रेन्द्रित करते हुए अपनी रचनाएँ गढ़ते हैं। मुख्य अतिथि डॉ. अनिल मिश्र के अनुसार कथाकार महेन्द्र भीष्म संवेदनशील कथाकार हैं. उनकी कहानियाँ पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर करने का माद्दा रखती हैं।  हेल्प यू ट्रस्ट के प्रमुख न्यासी श्री हर्ष अग्रवाल ने महेन्द्र भीष्म के उपन्यास किन्नर कथाका जिक्र करते हुए कहा कि इस उपन्यास ने किन्नरों के प्रति लोगों का नजरिया बदल दिया। कथा संग्रह लाल डोराकी कहानियाँ चमत्कृत करती हैं और मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों की याद दिला जाती हैं।  रेवान्त की संपादिका अनीता श्रीवास्तव ने लाल डोरामें संग्रहीत कहानियों को केन्द्र में लेते हुए कहा कि सामाजिक यथार्थवाद की बुनियाद पर टिकी महेन्द्र भीष्म की कहानियाँ जीवन के अनेक मोड़, अनेक उतार-चढ़ाव के ग्राफ को दर्शाती हुई संवेदना को प्रगाढ़ करती हैं।प्रकृति के समीप होते हुए भी भीष्म की कहानियाँ भाषा और शिल्प की दृष्टि से कसी हुई हैं।  महेन्द्र भीष्म ने अपनी रचनाधर्मिता पर बोलते हुए कहा कि लेखन मेरे लिए जहाँ सामाजिक प्रतिबद्धता है वहीं लिखना मेरे लिए ठीक वैसे ही है जैसे जिन्दा रहने के लिए साँस लेना।
       कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. राजेन्द्र कुमार ने कहा कि कहानी की विषय-वस्तु के क्षेत्र में महेन्द्र भीष्म काफी समृद्धिशाली हैं। लेखक को बधाई देते हुए उन्होंने आगे कहा कि कथाकार महेन्द्र भीष्म से साहित्य जगत को बहुत उम्मीदें हैं। अच्छी बात यह है कि वे अनछुए विषयों को छू रहे हैं और अच्छा लिख रहे हैं।
       कार्यक्रम का संचालन संजय पुरूषार्थी ने किया।


‘लाल डोरा और अन्य कहानियाँ’ का लोकार्पण

       
6 नवम्बर, 2014 को 7वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला, इलाहाबाद में प्रो. राजेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कथाकार महेन्द्र भीष्म के कहानी संग्रह लाल डोरा और अन्य कहानियाँका लोकार्पण व परिचर्चा संपन्न हुई।  मुख्य वक्ता श्री प्रकाश मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि महेन्द्र भीष्म को मैंने उनकी कृतियों से जाना है। महेन्द्र भीष्म समाज के अछूते वर्ग को क्रेन्द्रित करते हुए अपनी रचनाएँ गढ़ते हैं।मुख्य अतिथि डॉ. अनिल मिश्र के अनुसार कथाकार महेन्द्र भीष्म संवेदनशील कथाकार हैं. उनकी कहानियाँ पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर करने का माद्दा रखती हैं।  हेल्प यू ट्रस्ट के प्रमुख न्यासी श्री हर्ष अग्रवाल ने महेन्द्र भीष्म के उपन्यास किन्नर कथाका जिक्र करते हुए कहा कि इस उपन्यास ने किन्नरों के प्रति लोगों का नजरिया बदल दिया। कथा संग्रह लाल डोराकी कहानियाँ चमत्कृत करती हैं और मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों की याद दिला जाती हैं।  रेवान्त की संपादिका अनीता श्रीवास्तव ने लाल डोरामें संग्रहीत कहानियों को केन्द्र में लेते हुए कहा कि सामाजिक यथार्थवाद की बुनियाद पर टिकी महेन्द्र भीष्म की कहानियाँ जीवन के अनेक मोड़, अनेक उतार-चढ़ाव के ग्राफ को दर्शाती हुई संवेदना को प्रगाढ़ करती हैं।प्रकृति के समीप होते हुए भी भीष्म की कहानियाँ भाषा और शिल्प की दृष्टि से कसी हुई हैं।  महेन्द्र भीष्म ने अपनी रचनाधर्मिता पर बोलते हुए कहा कि लेखन मेरे लिए जहाँ सामाजिक प्रतिबद्धता है वहीं लिखना मेरे लिए ठीक वैसे ही है जैसे जिन्दा रहने के लिए साँस लेना।
       कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. राजेन्द्र कुमार ने कहा कि कहानी की विषय-वस्तु के क्षेत्र में महेन्द्र भीष्म काफी समृद्धिशाली हैं। लेखक को बधाई देते हुए उन्होंने आगे कहा कि कथाकार महेन्द्र भीष्म से साहित्य जगत को बहुत उम्मीदें हैं। अच्छी बात यह है कि वे अनछुए विषयों को छू रहे हैं और अच्छा लिख रहे हैं।
       कार्यक्रम का संचालन संजय पुरूषार्थी ने किया।


अपनों का साथ और सरकार के संबल से संवरते वरिष्ठ नागरिक

  विवेक रंजन श्रीवास्तव -विभूति फीचर्स             एक अक्टूबर को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाती है। यह परंपरा सन् 1...