अँधेरों में जब लिपटी थी रूह मेरी
तुम आए एक रौशनी बनकर
तुम आए एक रौशनी बनकर
थी चारों तरफ स्याही निराशा की
तुम आए थे उम्मीद बनकर
तुम आए थे उम्मीद बनकर
अमावस की रात मैं थी बनी हुई
तुम आए तब पूर्णिमा का चाँद बनकर
तुम आए तब पूर्णिमा का चाँद बनकर
सुलझाने लग गयी मैं जब पहेलियाँ
सवाल बना दिया तुमने परिचय मुझसे तेरा
सवाल बना दिया तुमने परिचय मुझसे तेरा
करने लगी थी मैं मुस्कुराने की कोशिश
तुम चले गए क्यों रूठे हुए, अजनबी बनकर
तुम चले गए क्यों रूठे हुए, अजनबी बनकर
- मंजु शर्मा
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