अलीशा माँ की उँगली पकड़े लगभग घिसटती-सी चली जा रही थी। उसकी नजरें सड़क के
दोनों ओर दुल्हन-सी सजी मिठाई और राखी की दुकानों पर टिकी थीं।
दोनों जब पुष्पा दीदी के घर पहुँचे तो वहाँ भी रक्षा बंधन के पर्व पर जश्न
का माहौल था।
पुष्पा दीदी की पौत्री अंशिका जब अपने भाई अंशु की कलाई में रक्षा सूत्र
बाँध रही थी तब कोने में शांत बैठी अलीशा के दिल में उठ रहे भावों को अंशु ने पढ़
लिया। अंशिका जब रक्षा सूत्र बाँध चुकी तो अंशु ने थाली में से एक रक्षा सूत्र
उठाया और अलीशा को थमाते हुए अपनी कलाई उसकी ओर बढ़ा दी।
अलीशा सकपकाते हुए बोली, “मैं मुसलमान....”
अंशु बोला, “तुम और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ मेरी बहन हो!”
- प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर लघुकथा | सादर बधाई
ReplyDeleteलघु कथा -रक्षा बंधन को स्थान दिये जाने हेतु आभार , सादर
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