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डॉ अनिल मिश्र
सुभान
अल्लाह! क्या हनक, क्या शोखी, क्या तेजी! सारे रसों, सारे अलंकारों को अपने में
समाहित किए इस काव्यदेवी का स्थायी भाव ईमानदारी ही माना था, समालोचकों ने। ज़बान
कभी शीरी तो कभी मिर्ची। बात का लहजा और कथ्य क्या कहने, कहीं कोमल कान्त पदावली,
कहीं ग़ज़ल की नाज़ुकी, कहीं श्रृंगार की मिठास, कहीं कसीदों की कारीगरी तो कहीं वीर
रस की नितांत गर्म तासीर। नई वाली मैडम के इस सर्वांगपूर्ण व्यक्तित्व ने सभी को
सम्मोहित कर रखा था। अधीनस्थ तो अधीनस्थ, बड़े सा’ब से लेकर
बूढ़े वाले मंत्री जी तक सभी इस चुम्बकीय आकर्षण के परिधिगत थे। जिस कार्य को जब,
जैसे, जहाँ चाहा, किया। जिस कार्य के लिए उन्होंने हाँ कहा, हाँ तथा जिसे ना कह
दिया, ऊपर तक ‘ना’ ही हो गया।
अपने
काम से काम रखने वाले, दुनियादारी में कच्चे, पर मूल्यों के पक्के, विभागीय
खेमेबाजी से अलग प्रशांत खेमका जी, जो जल्दी किसी से प्रभावित नहीं होते थे, मैडम
जी से इतने अभिभूत हुए कि उनके दिल की गहराई मैडम जी के व्यक्तित्व एवं कार्यशैली
की पहाड़ जैसी ऊँचाई से पट गई। जहाँ जाते, जिससे मिलते, मैडम जी का गुणगान उसी तरह
करते जिस तरह नारद जी भगवान् का।
सब
कुछ सुन्दर और प्रभावी ढंग से चल रहा था, पर विधि का विधान तो संविधान से भी परे
है। खेमका साहब को बड़े सा’ब का आदेश मिला कि तत्काल जूनागंज जनपद को प्रस्थान करें तथा वहाँ ‘विभागीय अधिकारियों द्वारा बड़ा घोटाला’ शीर्षक से
प्रकाशित दैनिक अख़बारीय ख़बर पर अपनी विस्तृत आख्या संस्तुति सहित शासन को एक
सप्ताह के अन्दर उपलब्ध कराएँ। आदेश में यह भी निर्देशित था कि विभाग के वरिष्ठ
अधिकारी श्री ख़बरी ख़ान भी आप की सहायता के लिए आप के साथ जाएँगे।
विषय
संवेदनशील था और विधानसभा सत्र के बीच समाचार पत्र में आया अथवा लाया गया था, अतः
खेमका साहब को रात में ही सूदूर जनपद के लिए मो० ख़बरी ख़ान जी के साथ विभागीय कार
से प्रस्थान करना पड़ा। यद्यपि ख़ान साहब के साथ यह उनकी पहली यात्रा थी पर खेमका
साहब सुनते रहते थे कि ख़बरी ख़ान साहब अपने नाम के अनुरूप वाकई ख़बरों की ख़ान हैं।
उनके पास मंत्री से लेकर संतरी तक के साँस लेने तक की पुरानी से पुरानी और नई से
नई पुख्ता ख़बर अपने मूल स्वरुप में विद्यमान रहती है बिलकुल वैसे ही जैसे साधकों
के पास सिद्धियाँ। ख़ान साहब के लिए यह भी मशहूर था कि वे सिर्फ ख़बरें रखते ही नहीं
बल्कि छेड़े जाने पर उसे किसी के भी सामने बेख़ौफ़ हूबहू बाँच भी देते हैं। खैर!
खेमका
जी ‘विभागीय अधिकारियों द्वारा बड़ा घोटाला’ ख़बर से आहत
तो थे ही, उनके मुख से निकल पड़ा, “ख़ान साहब! शासन को शर्मिंदा कर देते हैं ये
अधिकारी। बेड़ागर्क कर दिए हैं ये घोटालेबाज़। कब सुधरेंगें ये लोग? कब शांत होगी
इनकी पैसों की पिपासा।” खेमका जी का एक के बाद एक चार वाक्य सुनते ही ख़ान साहब के
अन्दर का ख़ान खड़ा हो गया और थोड़ी कड़वी ज़बान में बोला, “खेमका जी! वह तो दूर के
छोटे से जिले के छोटे से घोटाले की बात है जिसे आप जानते नहीं, जानने जा रहे हैं।”
ख़बरी
ख़ान जी, खेमका जी की इज्ज़त करते थे पर उनकी दुनियादारी की नादानी पर नाराज़ भी रहते
थे। आज मौका मिला था और भड़ास बाहर निकल आई। गुस्से को दबाते हुए बोले, “खेमका जी! दीपक तले अँधेरा होता है। आप जिसकी तारीफ़ करते थकते नहीं, उसके
बारे में कुछ बोलूँ?”
...
और उन्होंने जब प्रकाश की गति से मैडम के कुछ चुनिन्दा कार्यों के विकेंद्रीकरण से
केन्द्रीयकरण की महत्वपूर्ण कार्यवाही के ‘दान-प्राप्ति-दर्शन’ का पटाक्षेप किया तो खेमका जी के दिल का भूगोल मैडम जी के व्यक्तित्व और
गुप्त कृतित्व के द्वंद के भूचाल से ऐसा बदला कि मैडम जी के प्रभावशाली व्यक्तित्व
की पहाड़ी से पटी खेमका जी के दिल की गहराई बंगाल की खाड़ी में तब्दील हो गई।
जाँच
के इस दौरे से लौटते समय जब खेमका जी अपनी रिपोर्ट की रूप-रेखा सोच रहे थे तभी
उनका मोबाइल बज उठा।
...नई वाली मैडम का तबादला हो गया। वह नए ठिकाने के लिए फुर्र हो चुकी
थीं। नई जगह, नए लोग और नई वाली मैडम का वही पुराना प्रभावशाली अंदाज़। वहाँ पर भी
लोग यहाँ तक कि मूल्यों के मूर्तिमान स्वरुप मानवेन्द्र मुखर्जी जी भी उनके
व्यक्तित्व के चुम्बकीय प्रभाव से अभिभूत होते जा रहे थे और उनके दिल की गहराई भी
मैडम जी की कार्यशैली के पहाड़ की ऊँचाई से पटती जा रही थी; पटती जा रही थी....
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