नारी संवेदना
लिपट कफ़न में आबरू को खो गयी बेटी।
बाप के कन्धों पे अर्थी में सो गयी बेटी।।
ये तख्तो-ताज व ताकत बहुत निकम्मी है।
अलविदा कह तेरे कानून को गयी बेटी।।
हम शहादत के नाम पर हिसाब माँगेंगे।
इस हुकूमत से तो वाजिब जबाब माँगेंगे।।
चिताएँ खूब सजा दी हैं आज अबला की।
हर हिमाकत पे तुझ से इन्कलाब माँगेंगे।।
पंख तितली का कुतर कर गए बयान तेरे।
तालिबानी की शक्ल में हुए फरमान तेरे।।
कुर्सियाँ पा के हुए तुम भी बदगुमान बहुत।
अस्मतें सारी लूट ले गए दरबान तेरे।।
लाश झूली जो दरख्तों पे शर्म सार हुए।
जुर्म को जुर्म ना कहने के इश्तिहार हुए।।
अब है लानत तेरी मनहूस बादशाहत को।
हौसले पस्त तो बेटी के बेशुमार हुए।।
वो मुहब्बत का जनाजा निकाल ही देंगे।
तहजीब- ए- तालिबान दिल में डाल ही देंगे।।
शजर की शाख पे लटकी ये आबरू देखो।
कली ना खिल सके गुलशन उजाड़ ही देंगे।।
तुम तो शातिर तेरी ताकत भी कातिल हो गयी।
अब तेरी सरकार बेबस और जाहिल हो गयी।।
इंतकामी फैसला फाँसी लटकती बेटियाँ।।
चुन के लाये थे तुझे ये सोच गाफिल हो गयी।।
देश के नाम
वो शगूफों को तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
नफरतों का जहर वो दिल में डाल देते हैं ।।
कितने शातिर हैं ये कुर्सी को चाहने वाले ।
अमन – सुकूं का कलेजा निकाल लेते हैं ।।
सच की चिनगारी से हस्ती तबाह कर देंगे |
हड्डियाँ बन के हम फीका कबाब कर देंगे ||
दौलते-मुल्क पे कब्ज़ा हुआ अय्याशों का |
वक्त आने पे हम सारा हिसाब कर देंगे ||
हम शहीदों की हसरतों पे नाज करते हैं |
उनकी जज्बात को हम भी सलाम करते हैं ||
वतन को बेचने वालों जरा संभल जाना |
तुम्हारे हश्र का अहले- मुकाम रखते हैं ||
तुमने लूटा है वतन हमको बनाना होगा |
देश के दर्द को आँखों में सजाना होगा ||
भूख से रोती जिंदगी को मौत दी तुमने |
धन जो काला है उसे देश में लाना होगा ||
वो हुक्मराँ हैं हम पलकें बिछाए बैठे हैं |
बात जो खास है उसको छिपाये बैठे हैं ||
वो रिश्वतों के बादशाह कहे जाते हैं |
एक दूकान वो घर में लगाये बैठे हैं ||
उनके मकसद के चिरागों को जलाते क्यों हो |
बचेगा देश भरोसा ये जताते क्यों हो ||
जो कमीशन में खा गये हैं फ़ौज की तोपें |
उनकी बंदूक से उम्मीद लगाते क्यों हो ||
वो शहादत को फरेबी करार कर देंगे ।
अब शहीदों को भी वो दागदार कर देंगे ।।
सारी तहजीब डस गयी है सियासी नागिन ।
वतन की शाख को वो तार - तार कर देंगे ।।
प्रणय के स्वर
तेरी पाजेब की घुघरू ने दिल से कुछ कहा होगा |
लबों ने बंदिशों के सख्त पहरों को सहा होगा ||
यहाँ गुजरी हैं रातें किस कदर पूछो ना तुम हम से |
तसव्वुर में तेरी तस्वीर का हाले- बयाँ होगा ||
यहाँ ढूँढ़ा वहाँ ढूँढा ना जाने किस जहाँ ढूँढा |
किसी बेदर्द हाकिम से गुनाहों की सजा ढूँढा ||
वफाओं के परिंदे उड़ गये हैं इस जहाँ से अब |
जालिमों के चमन में मैंने कातिल का पता ढूँढा |।
शमाँ रंगीन है फिर से गुले गुलफाम हो जाओ |
मोहब्बत के लिए दिल से कभी बदनाम हो जाओ ||
चुभन का दर्द कैसा है जख्म तस्लीम कर देगा |
वक्त की इस अदा पे तुम भी कत्ले आम हो जाओ ||
ये साकी की शराफत थी जाम को कम दिया होगा |
तुम्हारी आँख की लाली को उसने पढ़ लिया होगा ||
बहुत खामोशियों से मत पियो ऐसी शराबों को |
छलकती हैं ये आँखों से कलेजा जल गया होगा ||
तुम्हारे हर तबस्सुम की यहाँ पर याद आएगी |
कमी तेरी यहाँ हर शख्स को इतना सताएगी ||
तुम हमसे दूर जाके भी ये वादा भूल न जाना |
चले आना प्रेम की डोर जब तुमको बुलाएगी ||
तुम्हारी झील सी आँखों में अक्सर खो चुके हैं हम ।
प्यास जब भी हुई व्याकुल तो बादल बन चुके हैं हम।।
ये अफसानों की है दुनिया मुहब्बत की कहानी है ।
सयानी हो चुकी हो तुम सयाने हो चुके हैं हम ।।
कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानों को क्या जाने।
मुहब्बत की नहीं जिसने वो बलिदानों को क्या जाने ।।
ये दरिया आग का है इश्क में जलकर जरा देखो ।
शमा देखी नहीं जिसने वो परवानों को क्या जाने ।।
तेरे जज्बात के खत को अभी देकर गया कोई ।
दफ़न थीं चाहतें उनको भी बेघर कर गया कोई ।।
हरे जख्मों के मंजर की फकत इतनी निशानी है ।
हमें लेकर गयी कोई तुम्हें ले कर गया कोई ।।
मिलन की आस को लेकर, वियोगी बन गया था मै।
ज़माने भर के लोगों का विरोधी बन गया था मै ।।
रकीबों के शहर में जुल्म के ताने मिले इतने ।
बद चलन बन गयी थी तुम तो भोगी बन गया था मै।।
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