Thursday, 2 October 2014

रचनाकार

मधुकर अष्ठाना
जन्म- 27-10-1939
शिक्षा- एम.ए. (हिंदी साहित्य एवं समाजशास्त्र)
प्रकाशन- सिकहर से भिनसहरा (भोजपुरी गीत संग्रह), गुलशन से बयाबां तक (हिंदी ग़ज़ल संग्रह) पुरस्कृत, वक़्त आदमखोर (नवगीत संग्रह), न जाने क्या हुआ मन को (श्रृंगार गीत/नवगीत संग्रह), मुट्ठी भर अस्थियाँ (नवगीत संग्रह), बचे नहीं मानस के हंस (नवगीत संग्रह), दर्द जोगिया ठहर गया (नवगीत संग्रह), और कितनी देर (नवगीत संग्रह), कुछ तो कीजिये (नवगीत संग्रह) | इसके अतिरिक्त तमाम पत्र-पत्रिकाओं तथा दर्जनों स्तरीय सहयोगी संकलनों में गीत/नवगीत संग्रहीत |
सम्मान-पुरस्कार- अब तक 42 सम्मान व पुरस्कार
विशेष- ‘अपरिहार्य’ त्रैमासिक के अतिरिक्त संपादक, ‘उत्तरायण’ पत्रिका में सहयोगी तथा ‘अभिज्ञानम’ पत्रिका के उपसंपादक | कई विश्वविद्यालयों में व्यक्तित्व व कृतित्व पर लघुशोध व शोध |
वर्तमान में जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी, परिवार कल्याण विभाग, उ.प्र. से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन |
संपर्क सूत्र- ‘विद्यायन’ एस.एस. 108-109 सेक्टर-ई, एल.डी.ए. कालोनी लखनऊ |
उनके एक नवगीत की कुछ पंक्तियाँ-
जग ने जितना दिया
ले लिया
उससे कई गुना
बिन मांगे जीवन में
अपने पन का
जाल बुना |

सबके हाथ-पाँव बन
सब की साधें
शीश धरे
जीते जीते
सबके सपने
हर पल रहे मरे

थोपा गया
माथ पर पर्वत 
हमने कहाँ चुना |

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