Tuesday, 12 August 2014

जिएँ शुद्ध हवा में

  शिज्जु शकूर

मुहल्ले की तंग गलियों से
सड़क पर आने तक
बस में बैठे-बैठे 
बाइक से गुजरते
दिख ही जाते हैं
रास्ते के दोनों तरफ
कूड़े के ढेर
नाक बंद किए हुए इंसानों को
मुँह चिढ़ाते

इनमें पलती बीमारियाँ
किसको दुःख देती हैं
यह कुसूर किसका है?

हम इंसानों की नादानियाँ
पर्यावरण की अनदेखी
बेसाख़्ता कटते पेड़
सोचिए
इन सबका क्या अंजाम होगा?
झुलसाती गर्मी
चिटकती धरती
सूखे खेत
कभी सूखती कभी उफनती नदी
सैलाब
जो छोड़ जाता है पीछे
मातम करते इंसान

आओ दोस्तों
एक कदम मैं चलता हूँ
एक तुम चलो
मैं अपने घर से शुरू करूँ
तुम अपनी शुरूआत करो
तुम अपना घर साफ करो
मैं अपना
एक पेड़ मैं लगाता हूँ
एक तुम लगाओ
आओ
जिएँ शुद्ध हवा में ….

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