-डॉ.
अनिल मिश्र
"येन बद्धो बली राजा
दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन
त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।"
रक्षासूत्र एवम मंत्र द्वारा रक्षित कर
धर्म में स्थिर करने के अति पवित्र एवम शुभ त्योहार का नाम रक्षा बंधन है, इसीलिए अनगिनत
भारतीय त्योहारों में इसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
प्रतिवर्ष श्रावणमास की पूर्णिमा के दिन
ब्राह्मण अपने यजमानों के दाहिने हाथ पर एक सूत्र बाँधते थे, जिसे रक्षासूत्र कहा
जाता था। इसे ही आगे चलकर राखी कहा जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि यज्ञ में जो
यज्ञसूत्र बाँधा जाता था उसे आगे चलकर रक्षासूत्र कहा जाने लगा।
रक्षाबंधन की सामाजिक लोकप्रियता कब
प्रारंभ हुई, यह
कहना कठिन है। कुछ मान्यताएँ निम्नवत हैं-
• कुछ
पौराणिक कथाओं में इसका जिक्र है कि भगवान विष्णु के वामनावतार ने राजा बलि के
रक्षासूत्र बाँधा था और उसके बाद ही उन्हें पाताल जाने का आदेश दिया था। आज भी
रक्षासूत्र बाँधते समय एक मंत्र बोला जाता है उसमें इसी घटना का जिक्र होता है।
• परंपरागत
मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन का संबंध एक पौराणिक कथा से माना जाता है, जो कृष्ण व युधिष्ठिर
के संवाद के रूप में भविष्योत्तर पुराण में वर्णित बताई जाती है। इसमें राक्षसों
से इंद्रलोक को बचाने के लिए गुरु बृहस्पति ने इंद्राणी को एक उपाय बतलाया था जिसमें
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्राणी ने इंद्र के तिलक लगाकर उसके रक्षासूत्र बाँधा
था जिससे इंद्र विजयी हुए।
• वर्तमानकाल
में परिवार में किसी या सभी पूज्य और आदरणीय लोगों को रक्षासूत्र बाँधने की परंपरा
भी है।
• वृक्षों
की रक्षा के लिए वृक्षों को रक्षासूत्र तथा परिवार की रक्षा के लिए माँ को
रक्षासूत्र बाँधने के दृष्टांत भी मिलते हैं।
येन
बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया
जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बाँधे गए थे, उसी से तुम्हें बाँधता
हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो,
चलायमान न हो।
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार
इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बाँधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान को
कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बाँधे
गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गए थे,
उसी सूत्र से मैं तुम्हें बाँधता हूँ, यानी धर्म के लिए
प्रतिबद्ध करता हूँ। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे! तुम
स्थिर रहना, स्थिर
रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म
के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
शास्त्रों में कहा गया है - इस दिन
अपरान्ह में रक्षासूत्र का पूजन करें, उसके उपरांत रक्षाबंधन का विधान है। यह
रक्षाबंधन राजा के पुरोहित द्वारा, यजमान के ब्राह्मण द्वारा, भाई के बहिन द्वारा
और पति के पत्नी द्वारा दाहिनी कलाई पर किया जाता है। संस्कृत की उक्ति के अनुसार-
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत।
स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे
भवेत्।।
अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके
रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है।
रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएँ काम
करती हैं-
• जिस
व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना।
• दूसरे
रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना।
इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह, शांति और रक्षा का
बंधन है। इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है।
सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और
सिद्धांत या मंत्र भी। पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र बाँधने
की बात की गई है वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा
केवल उसका प्रतीक है।
रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा
जाता है जो इस प्रकार है-
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:।
तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।
जो भी हो मैं तो इस पावन पर्व पर आप सभी
को अपनी अनंत मंगलकामनाएँ अर्पित कर रहा हूँ।
बहुत सुन्दर आलेख!
ReplyDeleteAti mahatvpoorn jankaree aabhar mishr ji.
ReplyDelete