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ISSN : 2349-7122

Wednesday, 4 September 2013

आनन्द भयो..

जय श्री कृष्ण मित्रों! 
मुझे आशा ही नही पूर्ण विश्वास है आपने यह सप्ताह बड़ी धूम के साथ मनाया होगा। एक तो अपने नटखट लाला कान्हा के जन्मदिन ने भक्तिरस में सराबोर किया, दूजे कल यानि 31 अगस्त महान साहित्यकारा अमृता प्रीतम जी का जन्मदिन। 
सभी लोग अपने अंदाज में खुशियों संवेदनाओं का इज़हार करते हैं। हम साहित्य से ताल्लुक रखते हैं तो हमारी लेखनी की गमक भी डोल, नगाड़े से कम थोड़ी है। 
आइये, चलते हैं आज के संकलित सूत्रों पर और आनन्द लेते आपकी लेखनीकृत संगीत का-





  
पेट खाली हैं मगर भूख जताये न बने पीर बढ़ती ही रहे 
पर वो सुनाये न बने ढूंढते हैं कि किरन इक तो नजर आए कोई रात गहरी हो ... 



: बदलती ऋतु की रागिनी , सुना रही फुहार है। 
 उड़ी सुगंध बाग में, बुला रही फुहार है।   
 कहीं घटा घनी-घनी , कहीं पे धूप... 



        रानी दी           
 बहुत दिनों बाद मै अपने मायके (गाँव) जा रही थी | 
बहुत खुश थी मै कि मै अपनी रानी दी से मिलूँगी (रानी ..


: फिर छू गया दर्द कोई हवा ये कैसी चली यादों ने ली
 फिर अंगड़ाई आँख मेरी भर आई हवा ये कैसी चली …… 
 सब्र का  हर वो पल  म... 




  





बहुत दिनों से संकलन में आपकी रचनाओं के साथ कोई वेदोक्ति नहीं शामिल की दोस्तों, कुछ हल्कापन सा नहीं लग रहा? तो एक छोटी सी उक्ति के साथ आज के संकलन को विराम की ओर ले चलते हैं-

 ''कद्व ऋतं कनृतं क्व प्रत्ना।'' -ऋ.वे.१/१०५ 
 (क्या उचित है क्या अनुचित निरन्तर विचारते रहो।) 


बस! इसी साथ आज्ञा दीजिए,
अगले रविवार को फिर मिलेंगे 
आपकी ही कुछ नई रचनाओं के साथ...

आपका सप्ताह शुभ हो। 
जयहिन्द! 
सादर
 वन्दना (01/09/2013)
(क्षमा करे मित्रो रविवार कि पोस्ट भूलवश ड्राफ्ट मे ही सेव रह गई थी)

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