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ISSN : 2349-7122

Friday, 6 September 2013

शिक्षक दिवस पर आरती शर्मा का लेख


प्रिय पाठकों,
सादर नमस्कार!
जैसा की आप सभी जानते है, आने वाले वाले ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है. यह दिन आते ही मुझे अपने विद्यालय मे बिताये हर लम्हे याद आ जाते है. वो बचपन, वो सहेलियां वो पसंदीदा शिक्षक और उनसे जुड़ी हर वो बात जिसने मेरे जीवन पर बहुत ही गहरा प्रभाव छोड़ा है. उस समय तो हमे शिक्षक की डांट भी बहुत बुरी लगती थी, लेकिन अब जब हमारा सामना वास्तविकता से हो चुका है और भले बुरे का भी काफी हद तक ज्ञान हो चुका तो याद आता है हम कितने अज्ञानी थे की एक अच्छे शिक्षक की हमें पहचान नही थी. यदि वह हमे डांटता या मारता था तो उसके पीछे कहीं न कहीं हमारी ही भलाई होती थी. आज चाहकर भी वो दिन वापस नहीं आ सकते. आपको अपनी ही एक घटना बताती हूँ जिसने मुझे हिंदी मे प्रथम बना दिया था. यह घटना उस समय की है जब मैं सातवीं कक्षा में थी. जैसा की इस उम्र में होता ही है मुझे अपनी सहेली से बहुत लगाव था. हिंदी का पीरियड था.  मैं अपनी सहेली से बातें करने में मशगुल थी. मेरी हिंदी की शिक्षिका का नाम उमा अगरवाल था. मैं इस बात से अनजान थी की मेरी शिक्षिका का ध्यान मेरी तरफ है. उन्होंने मुझे अचानक ही आवाज़ लगाकर खड़ा किया और पढ़ाये जा रहे विषय से सम्बंधित १ प्रश्न पूछा. मेरा ध्यान बातों में होने के कारण मैं प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाई. बस मेरा इतना ही कहना था कि मुझे इसका उत्तर नहीं पता, उन्होंने लगातार मुझे २-३ जोरदार थप्पड़ मार दिए. मैं समझ नहीं पाई और रोने लगी. अगला पीरियड गणित का था वो शिक्षिका मुझे बेहद पसंद करती थी. मुझे रोता देखकर उन्होंने पूछा कि क्या बात है तो मेरी सहेली ने बता दिया इस पर वो बोली कि हिंदी की शिक्षिका को एसा नहीं करना चाहिए था ये एक बहुत ही होनहार विद्यार्थी है. ये सुनकर मैं और भी जोर से रोने लगी. तब उन्होंने कहा की मैं बात करुँगी उनसे, आप चुप हो जाओ. फिर अगले पीरियड मे हिंदी की शिक्षिका ने मुझे बुलाया और कहा की आगे से एसा नहीं होना चाहिए और कल टेस्ट है पूरी तैयारी के साथ आना नहीं तो कक्षा में नहीं बैठने दूंगी. ये बात मेरे अहम् पर एक बहुत बड़ा धक्का थी. मैंने जी-जान से तैयारी की और अगले दिन टेस्ट दिया. मैं सबसे अव्वल रही मेरे २० में से १९ नंबर आये जो अधिकतम थे. मेरा रुझान हिंदी की तरफ और भी बढ़ गया वो शिक्षिका भी मुझे बेहद पसंद करने लगी और हर छोटे-बड़े कार्य का कार्यभार मुझे सौंपने लगी. मैं भी बेहद खुश थी. इससे पहले मेरी हिंदी विषय में कोई रूचि नही थी पर उस शिक्षिका की वजह से ही आज मैं आप सब के सामने अपने विचार लिख रही हूँ. ये सब उन्हीं की देन है. मैं अर्थशास्त्र में स्नातक हूँ फिर भी मेरा हिंदी से बहुत लगाव है. मैं तो शिशक दिवस उन्हीं को समर्पित करती हूँ. जिन्होंने मेरी दिशा ही बदल दी. गुरु से बड़ा दर्जा तो भगवान का भी नही है. कबीर जी ने भी क्या खूब कहा है ”गुरु गोबिंद दोनों खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो मिलाय”. गुरु में ही इतनी सामर्थ्य है, इतना ज्ञान है कि वो हमें साक्षात् भगवान से मिला सकता है, गुरु शब्द का सन्धिविच्छेद किया जाये तो गु+रु होता है. ‘गु’ का मतलब ‘अंधकार’ और ‘रु’ का मतलब ‘भगाने वाला’ होता है. ‘गुरु’ का मतलब हुआ ‘अंधकार को भगाने वाला’. हमारे जीवन से अज्ञान रूपी अंधकार को भगाने वाला गुरु ही है. उनके बारे में तो जितना लिखा जाये उतना ही कम है. फिर भी अपनी पंक्तियों को समेटते हुआ इतना ही कहना चाहूँगी कि आज जो हम शिक्षक दिवस मनाते है अंतर्मन से उसके महत्व को समझें कि गुरु बिना ज्ञान नहीं है, हमें कदम-कदम पर गुरु की सिखाई हुई शिक्षाएं याद आती हैं और वही हमारा सही मार्गदर्शन करती हैं. विद्यालय बालक की प्रथम सीढ़ी है. यहीं से उसे जीवन का मार्गदर्शन मिलता है, उसकी नींव रखी जाती है जो एक उज्जवल भविष्य का शुभारम्भ होती है और यह कार्य एक अच्छे और अनुभवी शिक्षक के द्वारा ही किया जा सकता है.
धन्यवाद .


आरती शर्मा

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