मनोज शुक्ल "मनुज"
(१)
यह देश जहाँ रणचंडी, काली, दुर्गा पूजी जाती हैं,
यह देश जहाँ गार्गी, अनुसुइया, पाला आदर पाती हैं.
यह देश जहाँ लक्ष्मीबाई, इंदिरा जी ने बलिदान दिया,
यह देश जहाँ दुर्गा भाभी ने आजादी का ज्ञान दिया.
यह देश जहाँ माया, ममता, जयललिता शासन करती हैं,
यह देश जहाँ सोनिया गांधी सत्ता में भी दम भरती हैं.
हैं जहाँ किरण बेदी, पी.टी.ऊषा, मीरा, सुषमा स्वराज,
प्रतिभा पाटिल थीं महामहिम करतीं वसुंधरा अभी राज. .
नारी की शक्ति गर्जना जब चहुँ ओर सुनाई देती है,
कुछ नपुंसकों कापुरुषों को कमजोर दिखाई देती है.
यह प्रण समाज को लेना है बन जाएँगे जीवंत काल,
जो बहू बेटियों को ताके उसकी लेंगे आँखें निकाल.
जो पहुँचेगी तन तक बलात वह भुजा उखाड़ी जाएगी,
जो देह करेगी कृत्य घृणित जिन्दा ही गाड़ी जाएगी.
दुःशासन का फिर लहू द्रोपदी के केशों को धोएगा,
जो सीता पर कुदृष्टि डाली रावण प्राणों को खोएगा.
(२)
धन की गर्मी बढ़ रही, मचा हुआ उत्पात.
बुद्धि दम्भ से झूमती, बिकते हैं ज़ज्बात.
सूख गयी संवेदना, हुआ 'मनुज' बेचैन.
बरसे बरखा नेह की तब मानों बरसात.
(३)
मार कुंडली बुद्धि पर, शंका बैठी आय.
संचित सिंचित स्नेह को, गई तुरत ही खाय.
गई तुरत ही खाय, जिंदगी हुई खार है,
नहीं आस-विश्वास 'मनुज' तब ख़ाक प्यार है.
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