ऋतुराज बसंत! शरद ऋतु की समाप्ति तथा ग्रीष्म
के आगमन अर्थात् समशीतोष्ण वातावरण के प्रारम्भ होने का संकेत है बसंत। यह
सृजनात्मक शक्ति के नव पल्लवन की ऋतु है। यह मौसम प्रकृति की सरसता में ऊर्जा का
संचार करता है। यही कारण है कि इस मौसम में न केवल प्रकृति का कण-कण खिल उठता है
वरन मानव, पशु-पक्षी सभी उल्लास से भर जाते हैं। तरंगित मन, पुलकित जीवन का मौसम बसंत
जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आशा
व विश्वास उत्पन्न करता है; नए सिरे से जीवन को शुरू करने का संकेत देता है।
भारतीय सभ्यता- संस्कृति का सर्वोच्च त्यौहार
होली बसंत ऋतु में मनाया जाता है। होली उल्लास का पर्व है। होली प्रतीक है अल्हड़ता
का, उमंग
का, रंगों
का। होली के माध्यम से जीवन में उत्साह का संचार होता है। इस मौसम की मादकता से
कोई अछूता नहीं रहता है। चारों ओर बिखरे रंग और उन्मुक्त हास-परिहास के बीच व्यक्ति
इस आनंद-पर्व से अनुप्राणित होकर रंग-रस से सराबोर हो उठता है।
इस मौसम ने साहित्यकारों को भी
अनुप्राणित किया है। यही कारण है कि हिन्दी साहित्य बसंत, फागुन और होली की रचनाओं
से भरा पड़ा है! ऐसी ही कुछ चुनिन्दा रचनाओं का संकलन हम धरोहर के दूसरे भाग के रूप
में इस अंक के साथ लेकर आपके समक्ष उपस्थित हैं। आपको यह संकलन कैसा लगा, यह तो
आपकी प्रतिक्रियाओं से ही हमें पता चलेगा, जिनका हमें बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
- बृजेश नीरज
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