करीम पठान अनमोल
जन्मतिथि- 19 सितंबर 1989
जन्मस्थान- सांचोर (जालोर)
शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी)
लेखन विधाएँ- ग़ज़ल, गीत, कविता, दोहा, कहानी आदि विधाओं में लेखन
सम्प्रति- वेब पत्रिका 'साहित्य रागिनी' में प्रधान संपादक
प्रकाशन- ग़ज़ल संग्रह 'इक उम्र मुकम्मल' प्रकाशित (2013)
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित
पता- बहलिमों का वास, सांचोर
(जालोर) राज. 343041
मो.- 09829813958
ई-मेल k.k.pathan.anmol@gmail.com
करीम पठान अनमोल की कविताएँ
हाँ...मैं कवि हूँ
हाँ...मैं कवि हूँ
वेदना, विडंबना
और विरह की
धुंधली-सी
एक छवि हूँ
हाँ...मैं कवि हूँ
जेठ दुपहरी में
नभ के माथे पर
अपने ही संताप में
तपता हुआ
संतप्त रवि हूँ
हाँ...मैं कवि हूँ
जीवन-यज्ञ में
अभीष्ट की
कामना लिए
अंग-अंग
आहुत होता
स्वयं हवि हूँ
हाँ...मैं कवि हूँ
तीन क्षणिकाएँ तुम्हारे लिए
(1)
सुनो!
तुम्हारी कविता के शब्द
मेरी कलम का
हाथ थामकर
बहुत दूर
निकल जाना चाहते हैं
किसी ऐसी जगह
जहाँ वे अपने
दिल की बात
कह सकें मुझसे
बेझिझक
बिना रोक-टोक के
(2)
तुम्हें पता है?
तुम्हारी कविताओं के प्रतीक
बाक़ायदा
जीवित हो उठते हैं
कभी-कभी
जैसे 'चाँद' और मुझमें
कोई फ़र्क नहीं रहता
'जलता चिराग'
इंतज़ार की शक़्ल ले लेता है
'उदास शाम'
बेचैनी बन
मेरी रगों में दौड़ने लगती है
(3)
तुम
एक नदी
मेरे व्यक्तित्व के
समंदर में
ऐसे आ मिली
कि भर गया
मेरा सारा खालीपन
अब मैं मुकम्मल हूँ
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा प्यार
एक सागर
जितना डूबता हूँ
उतना गहराता है
भरी रहती है
मेरी रूह
लबालब
इक मिठास से
वो मिठास
आती है
तुम्हारे अहसास से
कभी कभी सोचता हूँ
लिखूँ तुम पर
प्यार भरी कई कविताएँ
लेकिन
तुम्हारा प्यार
एक अहसास
जितना कहता हूँ
उतना ही अनकहा रह जाता है...
माँ..
माँ..
समस्त पृथ्वी पर
व्याप्त प्रेम
जिसकी गोद में आकर
प्रेम की
सभी परिभाषाएँ,
सभी सीमाएँ
समाप्त हो जातीं हैं
माँ..
दिल में बसा
एक कोमल अहसास
जिसके आगे
दुनिया की
सारी मिठास
फीकी पड़ जाती है
माँ..
हमेशा
पूरी होने वाली
एक दुआ
जो औलाद के साथ
क़दम-दर-क़दम
चलती रहती है
माँ..
पहली पाठशाला
जहाँ बच्चा
बोलना, हँसना,
रोना, खेलना के साथ
ऐसी बातें सीखता है
जो दुनिया की
किसी पाठशाला में
नहीं सिखाई जाती
माँ..
एक ऐसा शब्द
जिसे विश्व की
किसी भी भाषा में
परिभाषित
नहीं किया जा सकता
चाँद मिल गया है
ठण्ड रातभर
तापती रही
यादों का अलाव
फ़िक्र के धुएँ से
लाल हो गयी है
आँखें
सितारे
ठिठुरकर
बन गये हैं
ओस की बूँदें
पहर दर पहर
भेजा है
मैंने एक संदेश
तुम्हारे नाम
अभी तक
नींद
लौटी नहीं है
ख़्वाबों के पनघट से
अभी तक
मन
तुम्हारे सिरहाने
बैठा है
ताक रहा है
इसका भी मन
कब भरता है
तुम्हें देखने से
अभी अभी ही
अजां हुई है
अभी अभी ही
शंख बजा है
मंदिर में भी
सुनाई दी है
भोर की दस्तक
अभी अभी ही
इक पंछी ने
ख़बर सुनाई
तुम ठीक हो।
अभी अभी ही
खिल उठा है
उदास मौसम का
चेहरा
अब उठ जाओ!
दिन निकल आया है
अँधेरी सुरंग से बाहर
और
रात में खोया चाँद
मिल गया है
अति सुंदर रचनाओं ने मन मोह लिया
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