सुरेन्द्र अग्निहोत्री
सावधान ! यह चंचल मन
प्रेम-प्रीत की बातें करता
फिर सहलाता है कंगन
छल से दपर्ण में भी
रूप देख इठलाता मन
सावधान ! यह चंचल मन
दुर्गम-पथ का राही वन
राह भुलाता यह दुश्मन
तन से मन की बातें करता
धक-धक करता रहता तन
सावधान ! यह चंचल मन
पलक मूँद कर जब बैठा था
पायल की करता है रूनझुन
सिन्दूरी शामों में यह तो
मस्त योगी सा घूमे वन-वन
सावधान ! यह चंचल मन
दोहरी-तिहरी मात दिलाता
मौन नदी का अपनापन
नस-नस में बहता रहता है
तेरा ही अब मतवालापन
सावधान ! यह चंचल मन
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