- राम दत्त मिश्र ‘अनमोल’
सपने में माँ मिलती है।
कली हृदय की खिलती है।।
करुणा की है वो मूरत,
आँसू देख पिघलती है।
सुखी रहे मेरा जीवन,
नित्य मनौती करती है।
बिठा के मुझको गोदी में,
उसकी तो नाराजी भी,
आशीषों-सी फलती है।
नहीं किसी के दल में है,
नहीं किसी से जलती है।
भटक न जाऊँ कभी कहीं,
थाम के अँगुली चलती है।
दुख-तम हरने को ‘अनमोल’,
दीप सरीखी जलती है।।
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