फिर भटकती
चिट्ठियों से लौट आए दिन
चिट्ठियों से लौट आए दिन
आज यह उन्मुक्त
सा वातावण
छोड़ दो इस रात
झूठे आचरण
प्यार की इस
घड़ी को
सिर झुकाए दिन
यह समय
यह प्रणय यह निवेदन
कर अधर दृग
वय संधियों के क्षण
पंखुरी परसे
हवा से
महमहाए दिन
तुम वलय सी
शिंञ्जिनी सी
बाहु लय में
एक संगति सुखद
सुंदर सुख
हृदय में
प्राण वंशी के
स्वरों में
गुनगुनाए दिन
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteएक सुंदर प्रेम नवगीत है पाण्डेय जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर | सादर
ReplyDelete