स्व. संजय मिश्र 'हबीब'
कह मुकरी
गोदी में सिर रख सो जाऊँ
कभी रात भर संग बतियाऊँ
रस्ता मेरा देखे दिन भर
क्या सखि साजन? ना सखि बिस्तर
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ग़ज़ल
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
क्या पता अच्छा या बुरा लाया।
चैन दे, तिश्नगी उठा लाया।
जो कहो धोखा तो यही कह लो,
अश्क अजानिब के मैं चुरा लाया।
क्यूँ फिजायें धुआँ-धुआँ
सी हैं,
याँ शरर कौन है छुपा लाया।
बाग में या के हों बियाबाँ में,
गुल हों महफूज ये दुआ लाया।
लूटा वादा उजालों का करके,
ये बता रोशनी कुजा लाया?
मेरा साया मुझी से कहता है,
अक्स ये कैसा बदनुमा लाया।
लो सलाम आखिरी कजा लायी,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।
हो मेहरबाँ 'हबीब' उसुर मुझपे,
इम्तहाँ रोज ही जुदा लाया।
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लघुकथाएँ
चाबी
राजकुमार तोते को दबोच लाया और सबके सामने उसकी
गर्दन मरोड़ दी. “तोते के साथ राक्षस भी मर गया” इस विश्वास के साथ प्रजा जय-जयकार करती हुई सहर्ष अपने-अपने कामों में लग गई।
उधर दरबार में ठहाकों का दौर तारीं था. हंसी के बीच एक कद्दावर, आत्मविश्वास भरी गंभीर आवाज़ गूँजी. “युवराज! लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि हमने अपनी ‘जान’ तोते में से निकालकर अन्यत्र छुपा दी है. प्रजा की प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है कि आपकी युक्ति काम आ गई. राक्षस के मारे जाने के उत्साह और उत्सव के बीच प्रजा अब स्वयं अपने हाथों से ‘सत्तारानी’ के कक्ष कि चाबी आपको सौंपकर जाएगी.”
राजकुमार के होंठों के साथ ही पूरे दरबार में एक आशावादी मुस्कुराहट नृत्य करने लगी।
उधर दरबार में ठहाकों का दौर तारीं था. हंसी के बीच एक कद्दावर, आत्मविश्वास भरी गंभीर आवाज़ गूँजी. “युवराज! लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि हमने अपनी ‘जान’ तोते में से निकालकर अन्यत्र छुपा दी है. प्रजा की प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है कि आपकी युक्ति काम आ गई. राक्षस के मारे जाने के उत्साह और उत्सव के बीच प्रजा अब स्वयं अपने हाथों से ‘सत्तारानी’ के कक्ष कि चाबी आपको सौंपकर जाएगी.”
राजकुमार के होंठों के साथ ही पूरे दरबार में एक आशावादी मुस्कुराहट नृत्य करने लगी।
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अध्यादेश
शरीर पर बेदाग
पोशाक, स्वच्छ जेकेट,
सौम्य पगड़ी एवं चेहरे पर विवशता,
झुंझलाहट, उदासी और आक्रोश के मिले जुले भाव लिए वे गाड़ी से
उतरे. ससम्मान पुकारती अनेक आवाजों को अनसुना कर वे तेजी से समाधि स्थल की ओर बढ़
गए. फिर शायद कुछ सोच अचानक रुके, मुड़े और चेहरे पर स्थापित विभिन्न भावों की सत्ता के
ऊपर मुस्कुराहट का आवरण डालने का लगभग सफल प्रयास करते हुए धीमे से बोले- “मैं जानता हूँ, जो आप पूछना चाहते हैं. देखिए,
आप सबको, देश को यह समझना चाहिए और समझना होगा कि ‘गांधी’ जी के पदचिह्नों पर, उनके दिखाए, बताए, सुझाए रास्तों पर चलना ही हमारी प्रथम प्राथमिकता
एवं प्रतिबद्धता है.” कहकर वे मुड़े और तेजी से चलते हुये भीतर प्रवेश कर
गए. शीघ्र ही वातावरण में ‘गांधीजी’ के प्रिय भजन की स्वर लहरियाँ तैरने लगीं. “वैष्णव जन तो....“
अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि...उत्कृष्ट लेखन !!
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
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