किरण सिंह
शब्द चुनकर छन्द में गढ़
उठे मन के भावना भर
सुन्दर सॄजन कर डालूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
सुन्दर सॄजन कर डालूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
कोरा कागज़ मन मेरा है
जहाँ तुम्हारा चित्र सजा है
तेरे प्रीत से चित्र रंगा लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
जहाँ तुम्हारा चित्र सजा है
तेरे प्रीत से चित्र रंगा लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
नित्य भोर उठ प्रीति भैरवी
हाथ जोडकर करूँ पैरवी
रागिनियाँ संग राग मिला लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
हाथ जोडकर करूँ पैरवी
रागिनियाँ संग राग मिला लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
शाम सुनहरी सज रही है
ताल लय में बज रही है
तुझ संग गीतों को मैं गा लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
ताल लय में बज रही है
तुझ संग गीतों को मैं गा लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
रात चाँद और तारे प्रहरी
नयन देखते स्वप्न सुनहरी
कुछ पल तेरे संग बिता लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
नयन देखते स्वप्न सुनहरी
कुछ पल तेरे संग बिता लूँ
क्यों न तुझे ही विषय बना लूँ
No comments:
Post a Comment