Sunday, 31 August 2014

यादें

दिन भर अपनी चमक से
कोना-कोना गरमाता
यह सूरज अब
धीरे-धीरे
अपनी गुफा की तरफ़ जाएगा
हौले से निकलता चाँद
फलक से
इस ढलती शाम पर

गहरा जाएगा
फिर से यादें तेरी
मुझे ले जाएँगी
ख़्वाबों के शहर में

और एक दिन का इन्तजार
फिर से एक उम्र में
ढल जाएगा !!
- ranju bhatia

No comments:

Post a Comment

युग को प्रतिमान बनाती आलोचना

  जब एक कवि आलोचक की भूमिका में होता है तब सबसे बड़ा खतरा आलोचना की भाषा का होता है। कवि स्वभावतः अनुभवशील संवेदनशील सृजक होता है तो आलोचक तर...