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ISSN : 2349-7122

Sunday, 14 September 2014

दो मुक्तक

 मनोज शुक्ल "मनुज"

जाति धर्म से बढ़कर जिसको प्रिय है देश वही नेता है


जिसके मन में लालच, भय न रहा अवशेष वही नेता है



जो नेता सुभाष, आजाद, भगत सी कुर्बानी दे सकता हो



जो विकास, सुख, शांति का ले आये सन्देश वही नेता है 




मन्दिर मन्दिर, मस्जिद मस्जिद ढूँढा मुझको ना धर्म मिला 


टहला घूमा मैं धर्म नगर मुझको न कृष्ण का कर्म मिला



धार्मिक उन्मादों दंगों ने जाने कितने जीवन निगले 



मुझको तो मानवता में ही मानव जीवन का मर्म मिला 






अपनों का साथ और सरकार के संबल से संवरते वरिष्ठ नागरिक

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